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 *इंदौर में इप्टा द्वारा 4 दिन का कला उत्सव!*

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*जिसकी शुरुआत गांधीवादी विख्यात नाट्य मनीषी प्रसन्ना द्वारा श्रमदान के पहले पाठ से शुरू हुई।*

*इत्तेफाक था प्रोग्राम स्थल से चंद कदमों की दूरी पर इंदौर वासियों को याद दिलाता और  प्रेरणा देता गांधी हाल था।*

*लम्बे समय से प्रदेश और स्थानीय सत्ता उसकी लाठी और चरखे की जितनी विरोधी है उतना ही उससे भयभीत भी है इसलिए जिसके विकास की एक परिभाषा नाम बदलना है वो इसका नाम बदल नहीं सकी।*

*उसने नाट्य शिविर में भाग लेने वाले वरिष्ठ जनों को उस हाल में अच्छी खासी भीड़ के साथ इंदौर के रंगकर्मियों के बीच सबसे अधिक लोकप्रिय चेहरा बाबा डिके के प्रस्तुत नाटक की भी याद दिलाई।*

*प्रसन्ना जी ने नाट्य कला के लगभग सभी महत्वपूर्ण अंगों के बारे में बातचीत की सरल शैली में शिविर में भाग लेने वालों को बहुत कुछ सिखाया और रंगकर्म के लिए प्रेरणा के साथ श्रम और सादगी के महत्व को भी समझाया।*

*शिविर समापन के अवसर की पूर्व संध्या पर वृक्षारोपण कर आज के एक सबसे  आवश्यक मुद्दे पर्यावरण की रक्षा के लिए भी चेताया।*

*10 जुन को रंगोत्सव का चौथा और आखिरी दिन था।*

*यह पूरा दिन देश के जाने-माने रंगकर्मी हबीब तनवीर साहब को समर्पित रहा।*

*सुबह “” बीते दिनों की चंद यादें “” कार्यक्रम में लखनऊ से आए इप्टा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष राकेश, पटना से आए राष्ट्रीय महासचिव तनवीर अख्तर और प्रलेस के राष्ट्रीय सचिव इंदौर के ही विनीत तिवारी जिनकी इस रंगोत्सव को इंदौर में आयोजित करने में प्रमुख भूमिका रही, इन सबने हबीब साहब के नाटकों की विशिष्ट छत्तीसगढ़ी लोक शैली और उनके साथ बिताए अनुभवों को दोपहर‌ तक साझा किया।*

*हबीब तनवीर साहब की ही याद में पहले हबीब साहब के नाटकों में रही अदाकारा फ्लोरा बोस ने इप्टा से जुड़े कुछ नवागत कलाकारों के साथ अजगर वजाहत लिखित नाटक “जिन लाहौर नहीं वेख्या ओ जन्मया ही नहीं” के कुछ हिस्सों का बहुत ही सुन्दर प्रदर्शन किया। उसके बाद हबीब साहब के नाटक “चरणदास चोर’ की छत्तीसगढ़ से  आयी प्रमुख अभिनेत्री पूनम तिवारी विराट और उसके साथ आए अन्य कलाकारों ने नाटकों के ही छत्तीसगढ़ी गीतों को उसी लोक शैली में गा कर समां बांध दिया और रंगोत्सव की समापन की शाम को इंदौर के रंगकर्मियों और उनके प्रेमियों के लिए यादगार बना दिया।*

विजय दलाल

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