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400 करोड़ का मंदिर परिसर

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राममोहन पाठक

अविनाशी काशी के अधिष्ठाता काशी विश्वनाथ का मंदिर सदियों से करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है। सनातन-हिंदू धर्म की मान्यताओं में द्वादश ज्योतिर्लिंग देश के विभिन्न भागों में स्थापित हैं और सभी आस्था-विश्वास और धर्म के स्तर पर पूरे देश को जोड़ते हैं। काशी में गंगा नदी के बाएं किनारे पर स्थित इस मंदिर का वर्तमान अपने अस्तित्व के विभिन्न चरणों और संकटों से गुजरने का साक्षी है। मंदिर वर्ष 1194 से 1777 के बीच कई बार उजड़ा और स्थापित हुआ। यह मुगल शासकों की आंखों की किरकिरी भी रहा। एक प्राचीन विश्वनाथ मंदिर तोड़ा गया तो वहां आज 1236-1240 के वर्षों में बनी रजिया बेगम की मस्जिद है। अगली बार तोड़ा गया तो आज वहां ज्ञानवापी मस्जिद है। लेकिन, इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने 1777 में वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया, जिसके दो शिखरों को स्वर्णमंडित कराने के लिए पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने 1835 में एक हजार किलो सोना दान में दिया।

आलोचना रुकी

बनारस की तंग-सकरी गलियों के बीच स्थित यह मंदिर विश्वभर के हिंदुओं और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है, लेकिन सुविधाओं के अभाव में उसका स्वरूप अत्यंत भव्य नहीं था। 2014 में काशी के नवनिर्वाचित सांसद नरेंद्र मोदी ने ‘मैं आया नहीं हूं, मुझे गंगा मां ने बुलाया है’, कहकर अपनी आस्था व्यक्त की थी और गुजरात के ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर में बने भव्य सोमनाथ कॉरिडोर के अपने अनुभव और आस्था के आधार पर काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर की 8 मार्च 2019 को आधारशिला रखी। इसका उद्घाटन-लोकार्पण प्रधानमंत्री 13 दिसंबर 2021 को इस संकल्प के साथ कर रहे हैं कि ‘काशी विश्वनाथ का यह भव्य दरबार बाबा विश्वनाथ और बाबा के भक्तों को समर्पित है।’

इतिहासकारों के अनुसार, 13वीं शताब्दी के अंत में अविमुक्तेश्वर परिसर में नया विश्वनाथ मंदिर बना और जौनपुर के शर्की मुगल शासकों द्वारा 1436-1458 के बीच मंदिरों को तोड़े जाने तक हिंदुओं की आस्था का केंद्र रहा। आज काशी विश्वनाथ के दो और मंदिर हैं। इनमें से एक उद्योगपति बिरला द्वारा निर्मित काशी हिंदू विश्वविद्यालय का और दूसरा, स्वामी करपात्री जी द्वारा मुख्य मंदिर में हरिजन प्रवेश के बाद निर्मित काशी विश्वनाथ मंदिर (मीरघाट) शामिल हैं। वैसे, सर्वाधिक मान्यता ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में स्थित मुख्य विश्वनाथ मंदिर की है। इसके भव्य विस्तार के लिए प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रॉजेक्ट ‘काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर’ के रूपाकार ग्रहण करने के बाद अब मंदिर का पूरा क्षेत्र ही तब्दील हो चुका है। वैसे, इसे और अधिक विस्तार देने और भव्य बनाने के अगले चरण की भी योजना तैयार है, जिसे इस लोकार्पण के बाद प्रारंभ किया जाना है।

वर्ष 1777-1780 में निर्मित प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर के नए कॉरिडोर के 30 हजार वर्गमीटर क्षेत्र में एक साथ 40-45 हजार श्रद्धालुओं के पहुंचने और निश्चित क्रम से दर्शन की व्यवस्था पुरानी धक्कामुक्की और भीड़भाड़ वाली अव्यवस्था का स्थान लेगी। मंदिर परिसर में ही देश भर से निमंत्रित प्रायः दो हजार साधु-संतों से प्रधानमंत्री का संवाद इस धार्मिक आयोजन को राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करेगा।

विश्वनाथ कॉरिडोर की संरचना-डिजाइन के समय से ही काशी के प्राचीन स्वरूप और धरोहरों से छेड़छाड़ के आरोप लगते रहे, लेकिन कॉरिडोर के वर्तमान स्वरूप के सामने आने पर करीब 50 प्राचीन मंदिरों को संरक्षित और पुनः स्थापित किए जाने से काशी के ऐतिहासिक मंदिरों का अस्तित्व बच सका है। क्षेत्र में शंकराचार्य द्वारा स्थापित सरस्वती प्रतिमा और मंदिर के साथ ही पुराणों में वर्णित नवग्रहेश्वर, अन्नपूर्णा, व्यासेश्वर, अविमुक्तेश्वर, बद्री नारायण आदि 22 देव विग्रहों-मूर्तियों की विधिवत प्राण प्रतिष्ठा के बाद देवों का मानसिक आह्वान किया गया। इसके बाद से देवमंदिरों को तोड़े जाने की आलोचना के मुखर स्वर थम गए हैं। मंदिर कॉरिडोर के मुख्य परिसर में अहिल्याबाई की मूर्ति की स्थापना राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। प्राचीन सरस्वती फाटक के पास स्थापित ‘देव गैलरी’ भक्तों की आस्था और आकर्षण का केंद्र बनी है।

विश्वनाथ मंदिर चौक से सीधे गंगा दर्शन की योजना विश्वनाथ कॉरिडोर के अस्तित्व में आने पर मूर्तरूप ले चुकी है। कॉरिडोर में बने अतिथिगृह में पांच सितारा होटलों जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराने के प्रयास भी मूर्तरूप ले चुके हैं। राजस्थान के मूर्ति-मंदिर स्थापत्य विशेषज्ञों के निर्देशन में संपन्न पुनः स्थापना से राजस्थान-उत्तर प्रदेश के धार्मिक संबंध मजबूत हुए हैं। महाशिवरात्रि, श्रावण के सोमवार आदि महत्वपूर्ण धार्मिक पर्वों पर तीन-चार लाख भक्तों के सुगम दर्शन हेतु ललिता घाट से मंदिर तक निर्मित 25-30 फीट चौड़ा कॉरिडोर-मार्ग, 3500 वर्गमीटर में निर्मित विस्तृत मंदिर चौक, सजे हुए भव्य प्रवेश द्वारों से सुसज्जित यह मंदिर परिसर, उन लोगों के लिए सुखद आश्चर्य का दृश्य होगा, जो हाल में मंदिर नहीं आए हैं।

कॉरिडोर योजना ने पूरे विश्वनाथ मंदिर के भूगोल को भी बदला है। विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के बीच स्थित ऐतिहासिक कुआं-ज्ञानवापी कूप 352 साल बाद मंदिर का हिस्सा बन सका। कथाओं के अनुसार औरंगजेब द्वारा प्राचीन मंदिर तोड़े जाने के समय पुजारी ने इसी कुएं में शिवलिंग को छिपा दिया था। 400 करोड़ रुपये लागत की काशी विश्वनाथ कॉरिडोर योजना के उद्घाटन-लोकार्पण के अवसर पर देश की सभी प्रमुख नदियों के जल से बाबा विश्वनाथ का अभिषेक कार्यक्रम ऐतिहासिक और संपूर्ण कॉरिडोर योजना के लक्ष्य ‘यादगार यात्री अनुभव’ को पूरा करने के लिए संकल्प का अवसर होगा।

वर्चुअल संग्रहालय भी बनेगा

मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु सहित देश के 20 हजार मंदिरों में बाबा धाम के उद्घाटन कार्यक्रम के प्रसारण के साथ इस योजना को जन-जन तक पहुंचाने की योजना को मूर्तरूप दिए जाने का संकल्प लिया गया है। कॉरिडोर में बन रहे आभासी (वर्चुअल) संग्रहालय में थ्री डी तकनीक द्वारा मंदिर में गंगा का आभास और अनुभव प्राप्त किया जा सकेगा।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हिमालय से भगीरथ की तपस्या के बाद निकली गंगा की वेगवती-हहराती धारा को शंकर ने अपने जटाजूट में रोका था। गंगा, बाबा विश्वनाथ के चरणों को नमन के लिए अपने दक्षिण-पूर्व प्रवाह की धारा की दिशा बदल कर काशी में उत्तरवहिनी हो गईं। विश्वनाथ कॉरिडोर इस पौराणिक मान्यता को मूर्तरूप देने का प्रयास है। गंगा की धारा या गंगा घाट से मंदिर के बीच के सारे अवरोध समाप्त कर गंगा-विश्वनाथ को एकाकार करना कॉरिडोर की उपलब्धि है।

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