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भीमा कोरेगांव मामले में जेल में बंद 7 एक्टिविस्ट भूख हड़ताल पर

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भीमा कोरेगांव मामले में जेल में बंद 7 एक्टिविस्ट भूख हड़ताल पर चले गए हैं। ये सभी कई सालों से जेल में बंद हैं। और इनके मामलों की सुनवाई भी नहीं हो रही है। पिछली तीन सुनवाइयों से इन कार्यकर्ताओं को कोर्ट में पेश ही नहीं किया गया। जिसके विरोध में ये सभी भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं। बताया जा रहा है कि कल कोर्ट के आदेश के बावजूद नवी मुंबई पुलिस इन एक्टिविस्टों को तलोजा सेंट्रल जेल से एनआईए कोर्ट तक जाने के लिए एस्कार्ट की व्यवस्था नहीं कर पायी। इसको देखकर सभी एक्टिविस्ट बेहद नाराज हो गए और सभी ने एक साथ मिलकर भूख हड़ताल पर जाने का फैसला लिया।

मामले में कुल 16 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। एक मौत और कुछ जमानतों के बाद 7 पुरुष और एक महिला अभी भी जेल में हैं। हड़ताल पर जो लोग बैठे हैं उनमें मानवाधिकार मामलों के वकील सुरेंद्र गाडलिंग, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू, प्रिजनर राइट्स एक्टिविस्ट रोना विल्सन, सांस्कृतिक कार्यकर्ता सुधीर धावले और आदिवासी अधिकार एक्टिविस्ट महेश राउत शामिल हैं।

एक्टिविस्ट ज्योति जगताप को भी इसी मामले में गिरफ्तार किया गया था और उन्हें बाइकुला महिला जेल में रखा गया है। बताया जा रहा है कि उनको कोर्ट में पेश किया गया है।

सभी 16 आरोपियों को अर्बन नक्सल कह कर पुकारा जाता है। और इन सभी को बेहद कड़ी धारा यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था।

त्योहार, चुनाव और वीआईपी लोगों की यात्रा सुरक्षाकर्मियों की संख्या को प्रभावित कर देती है। जिसका सीधा प्रभाव कैदियों को जेल से लेकर कोर्ट और फिर अस्पताल ले जाने में पड़ता है।

अभी जो जेल में मौजूद हैं उनमें गाडलिंग खुद अपना बचाव कर रहे हैं अगर उनको कोर्ट में पेश नहीं किया गया तो इसका मतलब है कि अपना आवेदन पेश करने का मौका उन्हें नहीं मिलेगा और न ही कोर्ट के सामने वह अपना पक्ष रख पाएंगे।

पिछली सुनवाई के दौरान गाडलिंग समेत दूसरे आरोपियों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये पेश किया गया था। उस समय कोर्ट ने पुलिस को विशेष रूप से सभी आरोपियों को उसके सामने पेश करने का निर्देश दिया था। पुलिस ने आदेशों का उल्लंघन किया।

जेल में मौजूद वीडियो कांफ्रेंसिंग सेवा में एक ग्लिच हो गया है जिसके चलते गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को आनलाइन अब पेश नहीं किया जा सकता है। वीडियो कांफ्रेंसिंग सेवा के अक्सर इसी तरह से बीमार रहने के बावजूद ज्यादातर राज्य अभी भी कैदियों की सुनवाई वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये ही करना चाहते हैं।

गाडलिंग का बेटा सुमित जो पेशे से वकील है, ने अपने पिता से दोपहर के करीब बात की थी। सुमित ने वायर को बताया कि यह साप्ताहिक फोन काल थी जिसकी मेरे पिता जी को इजाजत है। बातचीत में मेरे पिता ने मुझे बताया कि पुलिस द्वारा कोर्ट के निर्देशों के उल्लंघन के खिलाफ उन सभी ने भूख हड़ताल पर जाने का फैसला लिया है। जबकि कानूनी तौर पर वह सुनवाई के लिए ले जाने के लिए बाध्य हैं।

बाबू की पत्नी भी दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। उन्होंने भूख हड़ताल पर जाने की बात सुनकर चिंता जाहिर की।

महाराष्ट्र सरकार ने इस बात का संज्ञान लिया है कि कैदियों को बहुत लंबे समय से कोर्ट के सामने पेश आने में दिक्कत हो रही है। और कोर्ट अक्सर राज्य को जेल से कोर्ट ले जाने के लिए एस्कार्ट नहीं मुहैया कराने के लिए डाट पिलाता है।

एक सरकारी आदेश में कुछ सालों पहले स्थानीय यूनिट में और ज्यादा पुलिसकर्मियों को नियुक्त करने का आदेश पारित हुआ था। उसके बावजूद जमीन पर कोई बदलाव नहीं आया।

कैदियों को केवल अपने परिवार के सदस्यों से मिलने दिया जाता है और उन्हें कुछ घंटों का खुला माहौल तभी मिल पाता है जब उन्हें कोर्ट में पेशी के लिए ले जाया जाता है।

एलगार परिषद मामले में कई लोग कई सालों से जेल में बंद हैं। कुछ तो 2018 से ही बंद हैं। उनके ढेर सारे आवेदन विचार के लिए लंबित हैं। जिसमें केस से डिस्चार्ज करने के आवेदन भी शामिल हैं।

जिनको जमानत मिल चुकी है उनमें कवि वरवर राव, एकैडमिशियन आनंद तेलतुंबडे और शोमा सेन, पत्रकार गौतम नवलखा, वकील सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और एक्टिविस्ट वर्नन गोंसाल्वेस शामिल हैं। उनके जमानत के फैसले ढेर सारे आधारों पर लिए गए हैं। जिसमें सबूतों का अभाव भी शामिल है।

84 वर्षीय पादरी स्टेन स्वामी, जो इसी मामले में गिरफ्तार होकर जेल में बंद थे, अभी उनके जमानत के आवेदन पर सुनवाई हो पाती उससे पहले ही उनकी मौत हो गयी। उनके वकीलों ने कोविड-19 के दौरान उन्हें समय पर दवा मुहैया न कराने का आरोप लगाया है।

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