मुनेश त्यागी
किसान आंदोलन, आजादी के बाद का सबसे बड़ा और लंबा चलने वाला आंदोलन था, जिसमें देश और दुनिया के लाखों लोगों ने भाग लिया और करोड़ों लोगों ने समर्थन किया। इस आंदोलन में 500 से ज्यादा किसान संगठन शामिल थे। खेत मजदूर, मझोले और छोटे किसान इसका समर्थन कर रहे थे। यह सभी किसानों का आंदोलन था।
इस आंदोलन के किसानों ने सभी किस्म के सरकारी अत्याचार सहकर आगे बढ़ने में कामयाबी हासिल की और सरकार की दमनकारी नीतियों का मुकाबला किया। इसकी खूबी यह थी कि यह सरकारी दमन के आगे झुका नही। सरकार ने आंदोलन को बदनाम करने के लिए, वह सब किया, जो वह कर सकती थी। आंदोलन में भाग ले रहे किसानों को खालिस्तानी, माओवादी, कम्युनिस्ट, टुकड़े टुकड़े गैंग, चीन पाकिस्तान का समर्थन आदि बताया, मगर किसानों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और आंदोलन को अपना समर्थन देते रहे। किसान आंदोलन में हिस्सा ले रहे किसानों ने इससे हार नही मानी, सारे किसान बहादुरी से लड़ते रहे।
इस किसान आंदोलन की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है यह है कि यह किसान आंदोलन शांतिपूर्ण ढंग से एक साल तक चलता रहा। सरकार ने और उसके लग्गे भग्गों ने इसे हिंसक बनाने की बहुत कोशिश की मगर वह नाकाम रही।
इस आंदोलन का राजनीतिक प्रभाव पड़ा, जो सरकार के खिलाफ गया। किसान आंदोलन ने केरल, बंगाल, तमिलनाडु, यूपी पंजाब में बीजेपी को हटाओ और हराओ का नारा दिया और लोगों ने इस नारे को सपोर्ट किया और सरकार राज्य विधानसभा से लेकर गांव गलियों के सभी चुनावों में हारती चली गई।
सरकार इस ऐतिहासिक आंदोलन से डर गई और उसे तीनों कानून वापस लेने पड़े। किसान आंदोलन ने कारपोरेट और सांप्रदायिक ताकतों की एकता का हमला झेला। यह देशी-विदेशी कारपोरेट की सरकार की हार है, एक बड़ा तमाचा है। इस आंदोलन में सरकार की नवउदारवादी नीतियों का जमकर विरोध किया गया और इसका वैश्विक प्रभाव यह है कि पिछले 30 साल से इतना बड़ा आंदोलन दुनिया भर में कहीं नहीं चला और विजय नहीं हुआ मगर भारत में किसान विरोधी, जन विरोधी कारपोरेट सरकार की हार हुई। सरकार को झुकना पड़ा। यह एक साथ संयुक्त आंदोलन की जीत है।
देखते-देखते यह आंदोलन पंजाब, हरियाणा, यूपी, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल, उत्तराखंड और देश के विभिन्न राज्यों में फैल गया और यह पूरे देश का आंदोलन बन गया। इस आंदोलन ने पिछले एक साल में तीन बार भारत बंद का आह्वान किया, जो सफल रहा। सरकार को तीनों कानूनों के साथ-साथ बिजली बिल वापस लेना पड़ा, एमएसपी को कानूनी दर्जा देने के लिए एक कमेटी बनानी पड़ी, शहीदों के परिवारों को मदद देने का आश्वासन देना पड़ा, किसानों के खिलाफ 48 हजार से ज्यादा केस वापस लेने की सहमति देनी पड़ी और पराली जलाने के किसान विरोधी प्रावधानों को वापस लेना पड़ा।
कुल मिलाकर देखें तो यह आंदोलन संघर्षरत जनता की जीत है और अनुशासन ईमानदारी और प्रतिबद्धता की जीत है, यह जनता की एकता की जीत है, यह प्रतिबंध, ईमानदार सुलझे हुए, एकजुट नेतृत्व की जीत है। किसानों मजदूरों विद्यार्थियों नौजवानों बुद्धिजीवी और मीडिया कर्मियों की संयुक्त एकता व अभियान की जीत है। पिछले 30 साल से नव उदारवादी नीतियों की ऐतिहासिक हार है।
इस जीत ने उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के जनविरोधी, किसान और मजदूर विरोधी रथ को रोक दिया है और उसकी नीतियों को परास्त कर दिया है। यह दुनिया का पिछले 30 सालों का बेमिसाल और विजेता आंदोलन है इस आंदोलन का प्रभाव पूरी दुनिया में पड़ेगा और विभिन्न तबकों के लोग अपनी एकजुटता कायम कर अपनी रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सामाजिक सुरक्षा और देश के संसाधनों का देश की जनता के विकास के लिए प्रयोग करने की मांगों को लेकर नये नये आंदोलनों में आगे बढ़ेंगे। यह ऐतिहासिक और बेमिसाल किसान आंदोलन क्रांति की पूर्ववेला है।