*_भाजपा के किसी चुने हुए नेता पर पहली बार लगा “खोटे काम” का आरोप, पर कही कोई हलचल ही नही_*
_अपने पार्षद पर दुष्कर्म की गम्भीर धाराओं में केस दर्ज होने पर भाजपा शर्मसार_ *_महिला कांग्रेस आंदोलनरत, पार्षद को सरंक्षण देने वाले भाजपा नेताओं को भी लिया निशाने पर_* _प्रदेश व शहर कांग्रेस की इतने बड़े मूददे पर चुप्पी रहस्यमय, पार्षद हुआ फ़रार_ \
_*हतप्रभ है वे लोग जो भाजपा को पसन्द करते हैं। हैरत में है वो वर्ग जो भाजपा को अन्य दलों की तुलना में ” पार्टी विथ ए डिफरेन्स” के रूप में देखता-समझता और महसूस भी करता हैं। उस दल का एक नेता, जो जनता द्वारा चुना हुआ है, दुष्कर्म का आरोपी के रूप में सामने आता हैं। ये चिंता का विषय नही होना चाहिए, दल के लिए भी और जनजन के लिए भी? अन्य दल के लिये भी ये क्या सिर्फ राजनीतिक लाभ हानि का विषय होना चाहिए कि शुचिता की राजनीति का मुद्दा होना चाहिए? इंदौर जैसे शहर में, जो भाजपा का गढ़ है, वहां भाजपा के एक पार्षद पर दुष्कर्म की धाराओं में केस दर्ज होने के बाद भी ऐसा नीरव सन्नाटा पसरा हुआ है जैसे ये कोई बड़ी बात नही। प्रतिपक्ष के लिए भी ये पुतले दहन तक सीमित हैं। जनसामान्य इसे लेकर बेहद विचलित व शर्मसार भी है लेकिन राजनीतिक दल शायद इससे बेफिक्र हैं। अन्यथा भाजपा-कांग्रेस का कोई तो बड़ा नेता इस विषय पर ईमानदारी से बात रखता। क्या भाजपा में अब कोई ” पालक ” नही बचा? अगर है तो उसे आगे आकर इस घटना पर सचाई सामने रखना चाहिए न? कि ये दुष्कर्म का मामला भी भाजपा की अंदरूनी शह मात की राजनीति का हिस्सा हैं? अगर हिस्सा है भी तो ये शहर भाजपा की बपौती नही, जो मन आये करते रहो। इंदौर जानना चाहता है शानू शर्मा जैसे लोग भाजपा में कैसे आये, किसके जरिये आये, क्या कर रहें हैं? और ऐसे कितने और शेष हैं?*_
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*नितिनमोहन शर्मा*
क्या अब “नई भाजपा” की “खाल” इतनी मोटी हो गई है कि वह दुष्कर्म जैसे घिनोने अपराध पर भी विचलित नही होती? पार्टी के एक चुने हुए नेता पर बलात्कार की गम्भीर धाराओं में केस दर्ज हो गया लेकिन कही कोई हलचल ही नही। न दुःख, न चिंता-फिक्र कि इससे जनसामान्य में भाजपा को लेकर क्या सन्देश जाएगा? जिम्मेदारो में खानापूर्ति के महज बयान जारी कर दिए- कानून अपना काम करेगा, बस। भाजपा क्या करेगी? ऐसे नेताओं के साथ जिनके कथित कारनामों ने समूची पार्टी को शर्मसार कर दिया। क्या ये गम्भीर घटना एक तरह से “कमलदल” पर कलंक नही? अगर है तो ये कलंक कैसे धुलेगा, इसका जिम्मेदार कौन? इसकी जड़ खोदेगी भाजपा? या ऐसे ही ” दागदार” नेताओ को पार्टी में प्रश्रय मिलता रहेगा और पद-कद भी।
*जिस पार्षद नितिन शर्मा उर्फ शानू पर दुष्कर्म का मामला दर्ज हुआ है, उसका ट्रेक रिकार्ड तो पार्टी के कर्णधारों के पास पहले से ही था। तो फिर वो पार्षद का टिकट कैसे पा गया? वह भी सम्बंधित वार्ड में ज़मीनी नेताओ को दरकिनार कर। जिस इलाके में पार्षद ने कारनामा किया, वहां का तो बच्चा बच्चा जानता था कि शानू का “कामकाज” क्या हैं? तो फिर पार्टी ने, पार्टी के “मूल” को छोड़, ” ब्याज” को क्यो थाम लिया? इस वार्ड से तो पार्टी के एक से बढ़कर एक मूल कार्यकर्ता थे। फिर ब्याज का धंधा करने वाले नेता से लाड़ क्यो लड़ाया गया? अब उसी लाडले के कारण पूरी पार्टी पर कलंक लग गया और कलंकित हो गई भाजपा की विधानसभा 4 भी और नगर निगम परिषद भी।*
माना कि आजकल लंबे समय साथ रहने के बाद भी महिलाओं, युवतियों द्वारा दुष्कर्म का मामला दर्ज करवा दिया जाता हैं। क्या शानू पर लगी धारा 376 भी उसी श्रेणी की घटना हैं? अगर है तो फिर नेताजी पर प्रकरण दर्ज कैसे हो गया? वह भी भाजपा के राज में? पुलिस यू तो आमतौर पर ऐसे मामलों से बचती है और अगर कारवाई की तरफ बढ़ती भी है तो एफआईआर जैसे विषय को बहुत ठोक बजाकर ही दस्तावेज बनाती हैं। पार्षद शर्मा पर दुष्कर्म की गम्भीर धाराओं में केस दर्ज होना तो प्रारम्भिक तौर पर ये बताता है कि नेताजी के खिलाफ पुलिस को कुछ पुख्ता सबूत हाथ आये है। रिपोर्ट दर्ज करने में भी 20-22 घण्टे लग गए। तब तक क्या हो रहा था, पुलिस के स्तर पर और पार्षद के स्तर पर? ये भी जांच का विषय नही होना चाहिए क्या?
*भाजपा के किसी चुनै हुए नेता पर खोटे काम का इस तरह का केस दर्ज होना सबको चौका रहा है। उस दल में ये कलंक लगा, जहां शुचिता की राजनीति का डमरू दिन दिनभर बजता हैं। जहां बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, लाडली बहना, प्यारी भंजिया का 24 घण्टे राग गूंजता हैं। जो दल महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का मुकुट धारण करता है, उसी दल में महिला का चीरहरण हो जाता हैं..!! है न हैरत की बात। लेकिन ये हैरतअंगेजी दल व उसके नेताओ में नजर नही आ रही। सिवाय सामान्यजन के, जो भाजपा को अन्य दलों की तुलना में थोड़ा सम्मानित नजर से देखता हैं। आमजन को ये बहुत खटका की भाजपा के नेता भी खोटे खटकरम में लिप्त हैं। कारनामा भी ऐसे क्षेत्र से सामने आया है जिसे भाजपा में पुनीत पावन ” अयोध्या” कहा जाता हैं। अब ये पार्टी की जिम्मेदारी बनती है कि वो ये कलंक अपने माथे से धोएं या पोछे।*
बात कोर्ट कानून की नही, भाजपा की रीति, नीति व सिद्धांतो की हैं। जो दल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे वैचारिक संगठन से पुष्पित व पल्लवित होता है, उस दल की बरसो बरस की सामाजिक प्रतिष्ठा पर ये गहरा आघात हैं। लेकिन ये आघात तो इतने बड़े कांड के बाद भी पार्टी नेताओं की भावभंगिमाओं में कही नजर नही आ रहा। 48 घण्टे से ज्यादा हो गए पार्षद शर्मा पर बलात्कार की धाराओं में केस दर्ज हुए लेकिन पार्टी में किसी भी स्तर पर इस घटना को लेकर चिंता की स्थिति नजर नही आ रही। सिवाय नगर इकाई व निगम् परिषद के औपचारिक बयानों के। तो क्या अब “सत्ता वाली भाजपा” को दुष्कर्म जैसी घटनाएं भी विचलित नही करती? वो भी जब दुष्कर्म का प्रकरण अपने ही दल के एक पार्षद पर दर्ज हो गया हो। मामले के खुलासे के बाद पार्षद महोदय तो फरार हो गए। तो क्या पार्टी भी इस मूददे पर फरारी काटेगी? या जनता की अदालत में तथ्यों के साथ पेश होगी?