अग्नि आलोक

कई रहस्यों से पर्दा उठाएगा आदित्य एल-1,आखिर ऊपर से क्यों गर्म है सूरज, कैसे बनते हैं तूफान

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करीब 1,480 किलो वजनी आदित्य अपने साथ सात उपकरण लेकर गया है। इनके जरिये पृथ्वी के निकटतम तारे से जुड़े कई रहस्यों को खोलने में मदद मिलेगी। पूरी तरह भारतीय इस मिशन से हम सूर्य और वहां हाइड्रोजन व हीलियम गैसों के स्वभाव और सौर गतिविधियों के बारे में वे बातें जान सकेंगे, जो पृथ्वी या पृथ्वी की कक्षा में मौजूद उपग्रहों से जानी नहीं जा सकतीं।विजिबल इमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (वीईएलसी) से सूर्य के कोरोना और इससे होने वाले उत्सर्जन के बदलावों की जानकारी मिलेगी। सोलर अल्ट्रा-वॉयलेट इमेजिंग टेलिस्कोप (सूट) सूर्य के फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर की तस्वीरें भेजेगी। अध्ययन में मदद मिलेगी।

मिशन से मिलेंगी कई जानकारियां

जानिए…कौन सा उपकरण क्या करेगा
विजिबल इमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (वीईएलसी) से सूर्य के कोरोना और इससे होने वाले उत्सर्जन के बदलावों की जानकारी मिलेगी। सोलर अल्ट्रा-वॉयलेट इमेजिंग टेलिस्कोप (सूट) सूर्य के फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर की तस्वीरें भेजेगी। अध्ययन में मदद मिलेगी। बंगलूरू स्थित यूआर राव सैटेलाइट सेंटर ने दो उपकरण सोलर लो-एनर्जी एक्स रे स्पेक्ट्रोमीटर और हाई-एनर्जी एल1 ऑर्बिटिंग एक्स रे स्पेक्ट्रोमीटर बनाए हैं। यह सूर्य से आने वाली एक्सरे का अध्ययन करेंगे।

आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (एसपेक्स) और प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य (पापा) तैयार किए हैं, जो सौर तूफानों का अध्ययन करेंगे। साथ ही ऊर्जा उत्सर्जन को समझने में मदद देंगे। मैग्नेटोमीटर उपकरण बनाया गया है, जो एल1 के आसपास चुंबकीय क्षेत्र का अध्ययन करेगा।

पार्कर की लागत 12 हजार करोड़ रुपये, आदित्य की 400 करोड़
सबसे बड़ा फर्क लागत में है। पार्कर प्रोब की लागत करीब 150 करोड़ डॉलर यानी 12 हजार करोड़ रुपये है, जबकि आदित्य-एल1 पर करीब 400 करोड़ लागत आई। दोनों अभियानों में भेजे गए उपकरणों और इनके मकसद में भी फर्क है। दिसंबर 2021 में पार्कर प्रोब सूर्य के 78 लाख किमी करीब तक पहुंचा और सूर्य के ऊपरी वातावरण यानी कोरोना के संपर्क में आया। इस तरह कह सकते हैं कि यह एकमात्र मानव निर्मित वस्तु है, जिसने सूर्य को छुआ है।

अहम पल: भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान की निदेशक अन्नपूर्णी सुब्रमण्यम ने कहा, आदित्य का हेलो ऑर्बिट इंसर्शन हो चुका है। यह इस यान की यात्रा में एक बहुत ही अहम पल है। मिशन क्रूज फेज से ऑर्बिट फेज में लाया गया है। यहीं से इसके सभी वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग हो सकेगा।

हेलो ऑर्बिट…ईंधन बचाने के लिए त्रिआयामी पथ का चुनाव
हेलो ऑर्बिट दरअसल लग्रांज बिंदु के चारों ओर बना परिक्रमा पथ है, जिस पर आदित्य-एल1 परिक्रमा करते हुए अगले पांच साल अपने काम करेगा। यह एक त्रिआयामी पथ है। इसका आकार बिंदु से एक ओर करीब 6 लाख किमी तो दूसरी ओर एक लाख किमी लंबा है। आदित्य-एल1 इस पथ पर 2,09,200 किमी गुणा 6,63,200 किमी गुणा 1,20,000 किमी कक्षा में परिक्रमा करेगा। इसी वजह से इसे त्रिआयामी पथ कहा गया है। हेलो ऑर्बिट का चुनाव इसलिए किया गया, ताकि आदित्य को लगातार घूमती पृथ्वी व सूर्य के बीच काम करने के लिए कम से कम ईंधन खर्च करना पड़े। स्थिर रहने के लिए भी उसे कम ऊर्जा की खपत करनी पड़ेगी क्योंकि एल1 बिंदु पर सूर्य व पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के एक दूसरे के साथ संतुलन बनाते हैं।

तो सूर्य की ओर बढ़ जाता मिशन
इसरो ने बताया कि एचओआई शनिवार को सफल न होता, तो मिशन सूर्य की ओर बढ़ सकता था। उसने एचओआई का एक रेखाचित्र जारी कर बताया कि विफल होने पर इसके सूर्य की बढ़ने का खतरा था। यह मार्ग से भटक कर पृथ्वी से विपरीत दिशा में एल1 बिंदु से 6 लाख किमी से भी कहीं आगे जा सकता था। इससे वैज्ञानिकों की कई वर्षों की मेहनत बेकार चली जाती।

कुशलता साबित: भारत ने आदित्य मिशन के एचओआई के साथ 15 लाख किमी दूर अपने मिशन पर बेहद सूक्ष्म नियंत्रण रखने की कुशलता भी साबित कर दी। इसरो ने बताया, यह महारथ आने वाले वर्षों में दूसरे अंतरिक्ष मिशन सफल बनाने में बड़ी काम आएगी। खासतौर पर दूसरे ग्रहों के लिए भेजे जाने वाले मिशन में इसका फायदा मिलेगा। उल्लेखनीय है कि आने वाले वर्षों में इसरो शुक्र ग्रह और मंगल ग्रह के लिए भी मिशन भेजने की तैयारी कर रहा है।

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