दोनों महिला सदस्यों के नाम पर परीक्षा के प्रतिभागियों से दलाल किस्म के लोग पैसा वसूल रहे हैं
एस पी मित्तल, अजमेर
राजस्थान के युवाओं को सरकारी नौकरी देने वाला राज्य लोक सेवा आयोग इन दिनों भारी बदनामी के दौर से गुजर रहा है। कुछ दिनों पहले ही आयोग के सदस्य बाबूलाल कटारा को वरिष्ठ अध्यापक परीक्षा के पेपर आउट करने के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है और अब ईओ की परीक्षा में उत्तीर्ण करवाने के प्रकरण में आयोग की सदस्य श्रीमती संगीता आर्य और श्रीमती मंजू शर्मा के नाम उछल रहे हैं। ईओ परीक्षा में लाखों रुपए की राशि वसूलने के प्रकरण में एसीबी ने जो एफआईआर दर्ज की है, उसमें इन दोनों महिला सदस्यों के नामों का उल्लेख है। हालांकि एसीबी के पास महिला सदस्यों की जुबान की रिकॉर्डिंग नहीं है, लेकिन गिरफ्तार दलालों ने स्वीकार किया है कि राशि महिला सदस्यों तक जाएगी। गंभीर बात तो यह है कि दलाल ने एसीबी के अधिकारी राजेश जांगिड़ से कही। जांगिड़ ने एक अभ्यर्थी का रिश्तेदार बन कर दलाल से बात की थी। सब जानते हैं कि आयोग के सदस्य के महत्वपूर्ण पद पर मुख्यमंत्री का निर्णय ही अंतिम होता है। इन दोनों महिला सदस्यों की नियुक्ति में भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सहमति रही। संगीता आर्य की नियुक्ति तब हुई थी, जब उनके पति निरंजन आर्य प्रदेश के मुख्य सचिव थे। सीएस आर्य सीएम गहलोत के इशारे पर काम करते रहे, इसलिए पत्नी संगीता को आयोग के सदस्य के पद पर बैठा दिया गया। संगीता आर्य की सबसे बड़ी योग्यता यही थी कि वे मुख्य सचिव की पत्नी हैं। ऐसी ही नियुक्ति मंजू शर्मा की है। मंजू शर्मा की भी यही योग्यता है कि वे कवि और अब धार्मिक उपदेशक कुमार विश्वास की पत्नी हैं। जब से पत्नी मंजू शर्मा कांग्रेस शासित राजस्थान में भर्ती आयोग की सदस्य बनी हैं, तब से कुमार विश्वास ने कवि सम्मेलनों में राहुल गांधी और कांग्रेस पर कटाक्ष करना बंद कर दिया है। अब जब सदस्यों की नियुक्ति स्वार्थपूर्ण नजरिए से होगी तो प्रदेश के अभ्यर्थियों को ऐसे ही लूटा जाएगा। आयोग में इन दिनों जो कुछ भी हो रहा है, उसमें सीएम गहलोत अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं।
कम्प्यूटर फर्म की जांच हो:
राजस्थान लोक सेवा आयोग में प्रतियोगी परीक्षाओं का अधिकांश कार्य निजी कम्प्यूटर फर्मों के द्वारा करवाया जाता है। ऐसी फर्म ही अभ्यर्थियों से आवेदन मांगती है और फिर कम्प्यूटर के जरिए ही परीक्षा के प्रवेश पत्र भिजवाए जाते हैं। परीक्षा के बाद ओएमआर शीट की जांच और अंक तालिका तैयार करने तक का काम कम्प्यूटर फर्में ही करती हैं। एसीबी की जांच पड़ताल में यह सामने आया है कि दलालों के पास अभ्यर्थियों की ओएमआर व मार्कशीट तक उपलब्ध थी। यानी दलालों की पहुंच आयोग के साथ साथ कम्प्यूटर फर्म तक थी। माना जा रहा है कि कम्प्यूटर फर्म के कर्मचारियों की मिलीभगत से ही ओएमआर शीट दलालों तक पहुंचती है। ऐसे में आयोग से अनुबंधित कम्प्यूटर फर्मों के कार्मिकों की भी जांच पड़ताल होनी चाहिए।