अग्नि आलोक

बाढ़ के बाद अब डायरिया का कहर

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पवन कुमार मौर्य

मुगलसराय नगर पालिका (पीडीडीयू नगर) के सबसे बड़े वार्ड संख्या 11 मवई खुर्द के चौहान बस्ती में मातम पसरा है। पीडीडीयू नगर जंक्शन के दक्षिण तरफ बसा नगर पालिका का सबसे बड़ा वार्ड बदहाली का शिकार है। अभी मानसून का सीजन धीरे-धीरे लगभग विदा हो चुका है।

लेकिन छह हजार की घनी आबादी वाले वार्ड संख्या 11 में अव्यवस्था, जल जमाव, खुली नालियां और खाली प्लाटों-गड्ढों में बारिश का पानी सड़ रहा है। गत सोमवार को भिखारी चौहान की बेटी की डायरिया से मौत हो गई। यह सूचना जिले के स्वास्थ्य महकमे को लगते ही उनके हाथ-पांव फूल गए और वे मृतका की घर की ओर दौड़ पड़े।

जनपद चन्दौली में अगस्त, सितंबर और अक्टूबर महीने में जिलेभर से डायरिया की शिकायत मिल रही है। इनमें मुगलसराय, नौगढ़, सकलडीहा, बरहनी, नियामताबाद, पड़ाव, धानापुर, चहनिया, चकिया और शहाबगंज विकासखंड के लगभग आधा दर्जन गांवों में डायरिया के पांव पसारने से ग्रामीणों में दहशत का माहौल रहा।

ग्रामीणों के मुताबिक हर वर्ष की तरह पीड़ित अपने इलाज में जुटे रहे और स्वास्थ्य महकमा जमीन पर कोरमपूर्ति में।

पिछले वर्ष डायरिया की चपेट में आने से बरियारपुर निवासी तीस वर्षीय दलित सजीवन, गहिला के पैंसठ वर्षीय छोटेलाल के बाद पड़ाव-चौरहट गांव में चार वर्षीय मासूम लीबा ने दम तोड़ दिया था। ऐसा प्रतीत होता है कि इन मौतों से जिला स्वास्थ्य महकमे ने चालू वर्ष में डायरिया से निबटने के लिए कोई सीख नहीं ली।

और न कारगर रणनीति तैयार कर पाई, इसके चलते एक बार फिर डायरिया ने जिले में तांडव मचाया। इस लापरवाही की कीमत एक मासूम को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। बेशक प्रशासन की नजर में यह आंकड़ा हो सकता है, लेकिन किसी ने अपने जिंदगी का एक टुकड़ा सदा के लिए खो दिया।

रेलवे कॉलोनी में गुरुवार 10 अक्टूबर को दुर्गापूजा की धूम और गली-गली में पंडालों के नजदीक रंगीन बिजली के झालर और मरकरी को सजाकर उत्सव का रूप दिया गया था। यहां लगे डीजे पर तेज आवाज में देवी गीत बज रहे थे। आसपास पंडाल और अस्थाई टेंट में खान-पान, खिलौने की दुकानें बच्चों को सहज ही ललचा रही थीं।

रेलवे कॉलोनी से थोड़ा अंदर लगभग 200 मीटर जाने पर ये सब उत्सव और संगीत गुम हो गए। घनी बस्तियों की तंग गलियों में उमस और खुली नालियों की बदबू के बीच बच्चे कहलाते हुए मिले। थोड़ी ही दूर पर चौहान बस्ती में सन्नाटा पसरा था।

अपने घर के पास गली में खुली नाली के पास लगे नगर पालिका के नल से पानी भरती खुश्बू और ठेले की सफाई कर चुके भिखारी चौहान मिले। उनके बच्चे पास के बच्चों के साथ खेल रहे थे, जो कि थोड़े-थोड़े अंतराल पर भागकर अपने मां के पास आकर रुक जा रहे थे। उनके चेहरे की चमक गायब और उदासी पसरी हुई थी।

भिखारी ने “जनचौक” को बताया कि “अचानक से मेरी चार बच्चियों की तबियत बिगड़ गई। अस्पताल पहुंचने से पहले ही रास्ते में एक तीन वर्षीय बच्ची की मौत हो गई। वहीं, तीन बच्चियों का इलाज राजकीय महिला चिकित्सालय में भर्ती कर किया जा रहा था।

इनको भी शाम को आराम नहीं होने से जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया। एक बच्ची तो हाथ से निकल गई, तीन बच्चे अब भी जिंदगी और मौत से जूझ रही थीं। जब उनको चंदौली जिला रेफर किया गया गया तो हमलोगों का कलेजा सूख गया। कुछ सूझ ही नहीं रहा था।”

“मैं सब्जी का ठेला लगाता हूं और बमुश्किल 250-300 रुपए कमा पाता हूं, जिससे छह लोगों के उदर-पोषण होता है। वैसे तो सिर्फ रोजाना हमारे मोहल्ले में झाड़ू लगती है, लेकिन खुली नालियों और इनके पास ही आता सप्लाई का पीने वाला पानी बरसात और बारिश के बाद तक परेशानी खड़ी किये रहता है।

इस वजह से मोहल्ले में आये दिन कोई न कोई बीमार रहता है। चुनाव होते हैं तो दिन-रात नेता और समर्थक आते रहते हैं, दुःख में अब तक कोई नहीं आया है। बच्ची की मौत के बाद उसी दिन शाम को स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी आये और घर के आस-पास ब्लीचिंग पाउडर छिड़ककर खानापूर्ति कर चलते बने।

आजतक फिर कोई झांकने नहीं आया।” बच्ची के खोने के गम में डूबी खुश्बू कुछ बोल पाती कि आंखों से झर-झर बहते आंसुओं ने चेहरे को भीगा दिया।

कमलापति त्रिपाठी जिला संयुक्त चिकित्सालय की एक नर्स भर्ती वार्ड के रजिस्टर के पन्नों को पलटकर बताते हैं कि रोजाना सिर्फ जिला अस्पताल चंदौली में 5-7 डायरिया, उलटी, दस्त, पेट दर्द और खाना न पचने की समस्या के मरीज आ रहे हैं।

इसमें जिले भर से सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर पहुंचने वाले मरीजों को जोड़ दें तो संख्या लगभग 40-50 तक आसानी से चली जा रही है। कमोबेश, निजी और झोलझाप डाक्टरों के यहां भी संक्रामक बीमारी के मरीजों इलाज को पहुंच रहे हैं, और लूटे जा रहे हैं।

जिला अस्पताल चंदौली के भर्ती वार्ड संख्या 6 में गुरुवार को बबुरी-सलेमपुर के पचपन वर्षीय मजदूर दशरथ सुबह से भर्ती हैं। वह जिला अस्पताल की व्यवस्था और मिलने वाले इलाज से नाखुश हैं। वह कहते हैं “चार-पांच दिन से पेट दर्द और दस्त की वजह से तबियत पस्त है।

स्थानीय डॉक्टरों ने इलाज के बाद जिला अस्पताल भेज दिया। यहां सुबह का ही आया हूं, पेट दर्द से मेरी जान निकली जा रही है। अब दोपहर दो बजे से अधिक का समय हो गया है, लेकिन अभी तक सिर्फ छोटी पानी की बोतल चढ़ाकर छोड़ दिया गया है।

कमरे में इतनी उमस है और तबियत को आराम नहीं है। कोई हाल लेने वाला नहीं। मुझसे 600 रुपए की दवा बाहर से मांगकर पानी चढ़ाया गया।”

सकलडीहा के बरठी गांव की मुस्लिम बस्ती में गत बुधवार की रात 12 लोग डायरिया की चपेट में आ गए। हालत गंभीर होने पर दो लोगों को सीएचसी में भर्ती कराया। बस्ती में रात से कई लोगों को उल्टी-दस्त शुरू होने के बाद परिजनों ने उन्हें निजी अस्पतालों में भर्ती कराया।

ग्राम प्रधान संतोष यादव व ग्रामीणों ने इसकी सूचना सीएचसी अधीक्षक डाॅ. संजय यादव को दी। सूचना पर बृहस्पतिवार को स्वास्थ्य विभाग की टीम गांव पहुंची। पीड़ितों में दवाओं का वितरण करने के साथ ही स्वच्छता अपनाने की सलाह दी। टीम के सदस्यों ने गांव के कुओं में ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव किया।

चिकित्सक का कहना है कि ये लोग दूषित भोजन और दूषित पेयजल के सेवन से डायरिया के शिकार हुए हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह कि, यह कैसा आजादी का अमृत महोत्सवकाल है, जिसमें नागरिकों को साफ़ पेयजल, स्वच्छ वातावरण और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए तरसना पड़ रहा है। जब सूबे को डबल इंजन की सरकार खींच रही है।

डायरिया की चपेट में आने वालों में संजीदा बानो, सइदा, इस्लाम अंसारी, जुबैन, तसलीम, अनवर अंसारी, सलीमा, आमान, शबनम व सरवर शामिल हैं, जिन्हें दवाएं दी गईं। वहीं गंभीर रूप से बीमार हुए गप्पू व जुमराती को सीएचसी में भर्ती कराया गया।

स्वास्थ्य विभाग की टीम में बीसीपीएम शाहिद अंसारी, डाॅ. डीके सिंह, राजकिशोर वर्मा, शिवेंद्र सिंह, अनामिका, रीति पांडेय, ताज बेगम आदि रहे।

अखिल भारतीय किसान महासभा के चंदौली जिला अध्यक्ष श्रवण कुशवाहा जनपद के मजदूर, किसान, नौजवान, वृद्ध, बच्चे और महिलाओं को संक्रामक रोगों से होने वाले परेशानियों से चिंतित हैं।

कुशवाहा “जनचौक” से कहते हैं “बीमारी तो सबके लिए ही परेशानी का विषय होती है, लेकिन जनपद में प्रतिवर्ष डायरिया से होने वाली मौतों से भी स्वास्थ्य महकमा कुछ सीख-समझ नहीं ले पा रहा, इससे बड़ी लापरवाही क्या होगी? इनका ज्यादातर अभियान कागजों में चल पाता है, हकीकत में कोरमपूर्ति नजर आती है”।

“ग्रामीण, दलित, मुस्लिम और घनी बस्तियों में कोई भी स्वास्थ्य कर्मचारी डायरिया की रोकथाम के लिए ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव, फॉगिंग, चिकित्सा कैम्प, जन जागरूकता, साफ-सफाई और साफ़ पेयजल आदि की व्यवस्था पर प्रशासन तब तक उदासीन बना रहता है, जब तक की मरीजों की मौत न होने लगे।

सैकड़ों मरीज सीजन में पहले झोलाझाप डॉक्टरों से दवा लेते हैं, स्वास्थ्य सुधार नहीं होने पर पीएचसी, सीएचसी और जिला अस्पताल पहुंचते हैं। जिला अस्पताल में भी स्वास्थ्य कर्मियों की लापरवाही किसी से छिपी नहीं है।

यहां अस्पताल के डॉक्टर और कर्मचारियों से जान-पहचान रखने वाले लोग अपना अच्छे से इलाज करवा पाते हैं, वहीं, आम आदमी गरीब-मजदूर अपने बेड पर परेशान रहता है। ऐसी लापरवाहियां क्षम्य नहीं है। शासन और जिलाधिकारी को इनपर कार्रवाई करनी चहिये।”

मसलन, “चंदौली में बाढ़ उतरने के बाद कई इलाकों में संक्रामक बीमारियों का कहर बदस्तूर जारी है। चालू सीजन में अब तक लगभग आधा दर्जन गांवों में डायरिया ने पांव पसार दिया है”।

“स्वास्थ्य महकमे द्वारा सिर्फ कागजों में संचारी रोग नियंत्रण अभियान चलने की कीमत सैकड़ों मासूम, बुजुर्ग समेत महिलाओं ने अपने सेहत और धन की खर्च कर चुकाई है। लोग डायरिया की दस्तक ने स्वास्थ्य विभाग की तैयारियों की पोल खोल कर रख दिया है।”

चंदौली जिला अस्पताल की ओपीडी में रोजाना लगभग 1000 पेशेंट इलाज को पहुंच रहे हैं। अस्पताल की ओपीडी, भर्ती वार्ड, जांच लैब, एक्सरे समेत सभी विभागों में रोजाना मरीजों की भीड़ उमड़ रही है।

अस्पताल के एक कोने में बने मरीज भर्ती वार्ड में दोपहर के समय भयंकर उमस और रात में मच्छरों का आतंक है। महिला और पुरुष वार्ड, बाल, महिला, पुरुष और वृद्ध मरीजों से अटा पड़ा है।

एक वार्ड में बेड भर जाने के बाद भी आने-जाने वाले स्पेस में अलग से बेड डालकर मरीजों को भर्ती किया गया। वार्ड के बेड पर मरीज लेटे हुए हैं। किसी के तीमारदार नर्स का इंतज़ार कर रहे थे तो किसी को डॉक्टर का इंतज़ार है।

अस्पताल में लापरवाही पर जब सीएमएस डॉ सत्यप्रकाश के दफ्तर जाकर संपर्क किया गया तो प्यून ने बताया कि वे अवकाश पर हैं। उनके समकक्ष उचित जवाब नहीं दे सके।

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