भोपाल प्रदेश में किसान हितैषी सरकार होने के बाद भी कृषि महकमा किसानों के लिए बेकाम साबित हो रहा है। इसकी वजह है, विभाग से किसानों को खेती के लिए कोई मदद नहीं मिल पाना। प्रदेश में इन दिनों मानसून अपनी जोरदार दस्तक दे चुका है, लेकिन मैदानी स्तर पर कृषि विभाग के अधिकारी नजर नहीं आ रहे हैं।
खास बात यह है कि यह ऐसा विभाग है, जिसमें सरकार का सर्वाधिक अमला है। इस अमले में शामिल अनुविभागीय कृषि अधिकारी, जिलों में पदस्थ उप संचालक, संभाग स्तर पर बैठने वाले संयुक्त संचालक कृषि से लेकर परियोजना संचालक आत्मा तक किसानों के बीच जाने को तैयार नहीं दिख रहे हैं। इसकी बड़ी वजह है विभाग में आधे पद रिक्त होने की वजह से प्रभार दे कर कामकाज का संचालन किया जा रहा है। इसके अलावा मैदानी अफसरों के पास वाहनों का भी अभाव बना हुआ है। इसकी वजह से विभाग का अमला मैदानी स्तर पर जाकर किसानों को अच्छी खेती के लिए सुझाव और सलाह भी देने को तैयार नजर नहीं आ रहा है। इसी विभाग के पास सरकार की किसान हितैषी योजनाओं के प्रचार- प्रसार, क्रियान्वयन, कृषि में आधुनिक तकनीक को मुहैया करवाना और भौतिक सत्यापन का भी काम है।
कई-कई प्रभार
जिला स्तर पर संयुक्त संचालक से उप संचालकों तक के आधे पद रिक्त चल रहे हैं। इसकी वजह से कई अफसरों के पास दो से तीन अफसरों तक का प्रभार बना हुआ है। इसका उदाहरण सागर उप संचालक बीएल मालवीय हैं। उनके पास अपने काम के साथ ही संयुक्त संचालक और परियोजना संचालक आत्मा का जिम्मा है। जबलपुर संयुक्त संचालक केएस नेताम के पास भी रीवा के संयुक्त संचालक का भी प्रभार है। भोपाल संयुक्त संचालक बीएल बिलैया के पास संयुक्त संचालक कृषि विकास योजना का भी जिम्मा है।
यह हैं वाहनों के हालात
विभाग में मंत्रालय – सचिवालय से जिलों के जमीनी अमले तक 250 चौपहिया की आवश्यकता है। 31 मार्च 2023 तक के रिकॉर्ड के मुताबिक विभाग के पास 110 वाहन हैं। 5 साल पुराने मात्र 10 ऑन रोड यानी चालू हालत में हैं। 15 से 20 वर्ष पुराने में 3 ऑन रोड और 4 ऑफ रोड हैं। 20 वर्ष से अधिक पुराने में सबसे अधिक वाहन हैं, जिनमें से 26 ऑन रोड और 67 ऑफ रोड हैं। इस हिसाब से करीब 100 वाहन कंडम श्रेणी के हैं, जिनमें से 71 तो चलने लायक ही नहीं। राजधानी में भी विभाग के मंत्रालय-सचिवालय में भी अधिकारियों के पास वाहनों का टोटा है।
एक्सपर्ट बोले- हालात गंभीर
कृषि विभाग में 25 साल पहले वाहन संकट शुरू हुआ था। इसके बाद पुराने वाहन कंडम होते गए और नई की खरीदी हुई नहीं। 1998 से 2005 तक सभी कंडम वाहन ऑक्शन में चले गए। इसके बाद मोटर यान नियमावली- 2021 के तहत बचे वाहन सडक़ पर चलने लायक नहीं थे, जिससे उन्हें बंद कर दिया गया। मानसून आ चुका है, ऐसे में किसानों से अधिकारियों की दूरी ठीक नहीं। ऐसे में अब दो ही विकल्प हैं। सरकार या तो वित्त विभाग की गाइड लाइन के तहत पद अनुसार वाहन खरीद कर दे या फिर आउटसोर्स पर किराए पर व्यवस्था की जाए। हालांकि ऐसा लगता नहीं है कि यह काम इस मानसून में हो पाएगा।