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अखिलेश यादव का ‘PDA’ पर दांव, 15 ओबीसी चेहरे उतारे

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लखनऊ: राज्यसभा चुनाव के प्रत्याशियों के बाद उठ रहे उपेक्षा के सवालों के बीच समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने लोकसभा उम्मीदवारों की सूची में ‘पीडीए’ पर दांव लगाया है। सपा की 11 उम्मीदवारों की इस दूसरी सूची में चार ओबीसी, पांच दलित और एक मुस्लिम प्रत्याशी शामिल है। इनमें सबसे चौंकाने वाला नाम माफिया मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी का है। अफजाल गाजीपुर से बसपा सांसद हैं। उनके सपा में जाने की चर्चा चल रही थी। सोमवार को इस पर मुहर भी लग गई। सपा ने इससे पहले 16 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की थी। सपा ने यह सूची उस वक्त जारी की है, जब कांग्रेस से गठबंधन को लेकर चल रही तल्खी के बीच कोई फैसला नहीं हो पाया है। घोषित की गई कुछ सीटों पर कांग्रेस भी दावा कर रही थी।

गैर यादव ओबीसी पर फोकस
सपा की दूसरी सूची का फोकस भी गैर यादव ओबीसी पर है। 11 की सूची में 4 ओबीसी शामिल हैं। यह सभी गैर यादव ओबीसी हैं। पहली सूची में भी 16 में आठ गैर यादव ओबीसी पर दांव लगाया गया था। 27 उम्मीदवारों की दोनों सूची में अब तक 15 ओबीसी चेहरे उतारे गए हैं। पार्टी ने स्वामी प्रसाद मौर्य के नाराज होने के बाद से उनके ही करीबी पूर्व विधायक नीरज मौर्य को आंवला से प्रत्याशी बनाया है। नीरज पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के करीबी माने जाते हैं। वह बीएसपी से दो बार विधायक रहे हैं। उन्होंने 2022 में सपा के टिकट पर जलालाबाद सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे।

इसके अलावा मुजफ्फरनगर सीट से पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक को उम्मीदवार बनाया गया है। यह सीट 2019 में गठबंधन में रालोद के पास थी। यहां से खुद चौधरी अजित सिंह चुनाव लड़े और हार गए थे। इस बार सपा ने रालोद के विरोधी माने जाने वाले हरेंद्र मलिक को उम्मीदवार बनाया है। हरेंद्र के बेटे पंकज मलिक मौजूदा समय चरथावल से विधायक हैं।

प्रतापगढ़ से सपा ने कुर्मी समाज के एसपी सिंह पटेल को उम्मीदवार बनाया है। लखनऊ पब्लिक स्कूल के संचालक एसपी सिंह के नाम की चर्चा कई दिनों से चल रही थी। प्रतापगढ़ सीट पिछली बार गठबंधन में बसपा के खाते में थी। बसपा ने ब्राह्मण प्रत्याशी अशोक त्रिपाठी को उतारा था। इस क्षेत्र में कुर्मियों की संख्या अधिक होने की वजह से सपा ने फिर कुर्मी प्रत्याशी उतारा है

गोंडा से पूर्व मंत्री राकेश वर्मा की बेटी और सपा के संस्थापक सदस्य बेनी प्रसाद वर्मा की पौत्री श्रेया वर्मा को प्रत्याशी बनाया गया है। इस सीट से श्रेया के पिता राकेश वर्मा दावेदारी कर रहे थे, पर उन्हें टिकट न देकर सपा ने युवा चेहरे पर दांव लगाया है। गोंडा सीट से ही श्रेया के दादा बेनी प्रसाद वर्मा सांसद रह चुके हैं।

पांच दलित चेहरे उतारे
सपा ने इस सूची में सुरक्षित सीटें भी घोषित की हैं। सपा ने इन सीटों पर पहले से तैयारी के लिए नाम घोषित कर दिए हैं। 2009 में सपा ने यूपी की 17 सुरक्षित सीटों में से दस पर जीत हासिल की थी। वहीं बसपा, सपा और कांग्रेस को दो-दो और रालोद को सिर्फ एक आरक्षित सीट पर जीत मिली थी। सपा फिर से वही परिणाम दोहराना चाहती है। कहा जा रहा है कि सुरक्षित सीटों को घोषित करने के पीछे सपा को ‘पीडीए’ पर फोकस दिखाना भी शामिल था। जिन सीटों पर प्रत्याशी उतारे गए हैं, इनमें शाहजहांपुर सीट से राजेश कश्यप को प्रत्याशी बनाया गया है।

हरदोई से दलित समाज की पूर्व सांसद ऊषा वर्मा को सपा ने फिर प्रत्याशी बनाया है। मोहनलालगंज सुरक्षित सीट से पूर्व मंत्री आरके चौधरी को प्रत्याशी बनाया गया है। पासी समाज से आने वाले आरके चौधरी के नाम पर विधायकों की बैठक में मुहर लगाई गई थी। मिश्रिख से पूर्व मंत्री रामपाल राजवंशी को प्रत्याशी बनाया गया है। बहराइच से पूर्व विधायक रमेश गौतम को प्रत्याशी घोषित किया गया है। पहली सूची में सिर्फ एक दलित चेहरे अवधेश प्रसाद पर ही दांव लगाया गया था। उन्हें सामान्य सीट फैजाबाद से प्रत्याशी बनाया गया था।

अगड़ों में सिर्फ एक चेहरा इस बार की सूची में अगड़ों में सिर्फ एक चेहरा ही उतारा गया है। इनमें चंदौली से पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह को प्रत्याशी बनाया गया है। क्षत्रिय बिरादरी से आने वाले वीरेंद्र सिंह चिरईगांव से दो बार के विधायक रहे हैं। पिछली बार सपा ने जनवादी पार्टी के मुखिया संजय सिंह चौहान को अपने सिंबल पर मैदान में उतारा था। लोनिया चौहान बिरादरी के संजय 14 हजार वोटों से केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय से चुनाव हार गए थे। इस बार यहां क्षत्रिय बिरादरी को उतारा गया है।

मुजफ्फरनगर में जयंत को डेंट देंगे अखिलेश?

मुजफ्फरनगर में समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए 11 उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी की है। उसमें मुजफ्फरनगर सीट से राष्ट्रीय महासचिव हरेन्द्र मलिक को मैदान में उतारने की घोषणा की है। सपा ने जाट-मुस्लिम समीकरण बनाने का प्रयास किया है, लेकिन परिणाम क्या होगा, यह भविष्य के गर्भ में छिपा है।

पूर्व सांसद हरेन्द्र मलिक को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने काफी पहले से लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटने का निर्देश दिया था। जबकि रालोद इस सीट को अपने पास रखना चाहती थी। इसी वजह से रालोद से अनबन शुरू हुई और गठबंधन से रालोद अलग हो गया।


जाट-मुस्लिम समीकरण लिखेगा जीत स्क्रीप्ट?

विधानसभा चुनाव 2022 में हरेन्द्र मलिक ने अपने पुत्र पंकज मलिक चरथावल से सपा उम्मीदवार के तौर पर जीत दिलाकर राजनीतिक कौशल साबित किया था, लेकिन रालोद के अलग होने से उन्हें झटका लगा। बावजूद इसके सपा ने हरेन्द्र मलिक को प्रत्याशी घोषित कर जाट-मुस्लिम समीकरण बनाने का प्रयास किया है। 2013 दंगे के बाद सपा दूसरी बार मुजफ्फरनगर से अपना प्रत्याशी उतारने जा रही है, इसके पहले 2019 के चुनाव में सपा, रालोद और बसपा का गठबंधन था, जिसमें रालोद मुखिया अजित सिंह ने चुनाव लड़ा था।

कई बार पाला बदल चुके हैं हरेन्द्र मलिक

हरेन्द्र मलिक ने चौधरी चरण सिंह की दलित मजदूर किसान पार्टी के टिकट पर 1985 में खतौली से जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1989 व 1993 में जनता दल से जीते। मगर 1996 में भारतीय किसान कामगार पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर वह हार गए, जबकि 1998 में मुजफ्फरनगर से उन्होंने सपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा। वह इनेलो से राज्यसभा सदस्य भी रहे। इसके बाद हरेंद्र मलिक कांग्रेस में भी आए और 2009 में उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए थे। 18 वर्ष कांग्रेस में रहकर दो वर्ष पूर्व उन्होंने प्रियंका वाड्रा गांधी के सलाहकार पद सहित कांग्रेस से भी त्यागपत्र दिया और सपा में शामिल हो गए।

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