Site icon अग्नि आलोक

यूपी की जनसंख्या नीति पर चौतरफा चर्चा, क्या देश के लिए कानून बनाएगी मोदी सरकार?

Share

नई दिल्ली
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण विधेयक का मसौदा तैयार कर दिया है। विश्व जनसंख्या दिवस पर आए इस ड्राफ्ट बिल पर देश में तरह-तरह की बहस छिड़ी हुई है। इनमें बढ़ती जनसंख्या के दुष्प्रभावों, जनसंख्या को नियंत्रित करने के नाकारात्मक असर, जनसंख्या नियंत्रण के लिहाज से कानून की उपयोगिता और इस पर रास्ट्रीय कानून की जरूरत जैसे मुद्दे शामिल हैं। दिलचस्प बात यह है कि एक तरफ जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर जहां सत्ताधारी राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक गठबंधन (NDA) में फूट है तो दूसरी तरफ इसे विपक्षी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) के घटक दल का साथ मिल रहा है।

जनसंख्या नीति पर एनडीए में मतभेद
बिहार में बीजेपी के साथ सरकार चला रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि उनकी नजर में कानून बना देने से जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने जो किया, वो उसका अधिकार है, लेकिन उन्हें लगता है कि सिर्फ कानून बनने से किसी को बच्चे पैदा करने से नहीं रोका जा सकेगा। नीतीश ने कहा कि इसके लिए महिलाओं का शैक्षिक स्तर और जागरुकता बढ़ाने की कोशिश करनी पड़ेगी। हालांकि, नीतीश सरकार के ही पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी ने उलट बयान देते हुए कहा कि बिहार में दो से ज्यादा बच्चों को पंचायत चुनाव लड़ने से रोकने के लिए कानून बनाया जाएगा।

समर्थन में शरद पवार
उधर, यूपीए की मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली महाराष्ट्र सरकार के घटक दल राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (NCP) के मुखिया शरद पवार ने जनसंख्या नीति का खुला समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था, बेहतर रहन-सहन और पर्यावरण संतुलन के लिए जनसंख्या नियंत्रण बिल्कुल जरूरी है। पवार ने बयान जारी कर कहा कि विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर देश के प्रत्येक नागरिक को यह शपथ लेनी चाहिए कि वह जनसंख्या नियंत्रण में अपना योगदान देगा। बेहतर देश और बेहतर जनजीवन के लिए यह बहुत ही जरूरी है।

मध्य प्रदेश में उठी कानून लाने की मांग
उधर, मध्य प्रदेश में बीजेपी सरकार के कुछ मंत्रियों ने भी राज्य में जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की मांग की है। एमी के कई विधायक और सांसद भी इसका समर्थन कर रहे हैं। शिवराज सरकार में मंत्री विश्वास सारंग, अरविंद भदौरिया, मोहन यादव और विधायक रामेश्वर शर्मा ने जनसंख्या नियंत्रण की वकालत की है। इनका मानना है कि तेजी से बढ़ती आबादी का संसाधनों के बंटवारे पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। इन्होंने जोर देकर कहा कि जनसंख्या नियंत्रण के बिना प्रदेश और देश का भविष्य सुरक्षित नहीं हो पाएगा।

असम में जनसंख्या नीति लाने की कवायद
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने भी राज्य में जनसंख्या नियंत्रण नीति लाने की कवायद बढ़ा दी है। उन्होंने प्रदेश के लिए कानून बनाने से पहले मुस्लिम समुदाय का भरोसा जीतने की भी कोशिश की है। सरमा ने जुलाई के पहले हफ्ते में विभिन्न क्षेत्रों के 150 मुस्लिम शख्सियतों से मुलाकात की थी। उसके बाद उन्होंने मीडिया को बताया कि मुस्लिम समुदाय भी जनसंख्या विस्फोट के खतरों को समझ रहा है। उन्होंने कहा कि असम में अगले महीने अगस्त में जनसंख्या नियंत्रण नीति का नोटिफिकेशन जारी किया जा सकता है। उन्होंने 19 जून को कहा था कि प्रदेश सरकार सरकारी लाभों के लिए जल्द ही दो बच्चों की नीति ला सकती है।

योगी सरकार के कदम का विरोध
राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) जैसे राजनीतिक दलों के साथ-साथ कई मुस्लिम संगठन और नेता यूपी सरकार की जनसंख्या नीति के खिलाफ आ गए हैं। जनसंख्या नीति के विरोध में उतरे दारुल उलूम देवबंद से लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों तक का कहना है कि यह मुसलमानों को लक्ष्य करके लाया जा रहा है। कुछ नेता इसे उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़कर भी देख रहे हैं। उधर, कांग्रेस के दिग्गज नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने योगी सरकार के मंत्रियों से अपने-अपने संतानों की संख्या बताने की मांग कर डाली है। उन्होंने कहा, ‘सरकार को जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने से पहले यह सूचना देनी चाहिए कि उनके मंत्रियों के कितने बच्चे हैं, उसके बाद विधेयक लागू करना चाहिए।’

विश्व हिंदू परिषद को भी आपत्ति
वहीं विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने भी मसौदा नीति के एक प्रावधान पर आपत्ति जताई है। परिषद के कार्याकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने उत्तर प्रदेश विधि आयोग को चिट्ठी लिखकर जनसंख्या नियंत्रण की मसौदा नीति में जोड़े गए एक प्रावधान की खामी बताई है। उन्होंने कहा कि ड्राफ्ट पॉलिसी में एक बच्चे वाले सरकारी कर्मचारियों के लिए तोहफे का प्रावधान किया गया है जो काफी खतरनाक है। उन्होंने कहा कि दो से कम बच्चे की नीति को बढ़ावा दिया गया तो भविष्य में कई तरह की परेशानियों को सामाना करना पड़ सकता है। वीएचपी की चिट्ठी में कहा गया है कि एक बच्चे वालों के इन्सेंटिव देने का प्रावधान लागू किया जाता है तो इससे देश की प्रगति रुक सकती है।

राष्ट्रीय कानून बनाने की मांग
इन सारी बहसों के बीच यूपी जैसा कानून ही राष्ट्रीय स्तर पर लाने की मांग भी उठ रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) विचारक और बीजेपी के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा के अलावा ऊपरी सदन के ही सांसद डॉ. अनिल अग्रवाल और हरनाथ सिंह आगामी ससंद सत्र में जनसंख्या नियंत्रण पर प्राइवेट बिल पेश करने जा रहे हैं। उधर, बीजेपी से ही लोकसभा सांसद रवि किशन ने भी सदन में निजी विधेयक पेश करने की बात कही है। सिन्हा ने बताया कि उनके प्राइवेट बिल पर राज्यसभा में 6 अगस्त को चर्चा होगी। वर्ष 2016 में भी बीजेपी सांसद प्रह्लाद सिंह पटेल ने प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया था। उस पर चर्चा तो हुई थी, लेकिन वो मतदान के चरण तक नहीं पहुंच सका था। इस तरह, देश की आजादी के बाद से ऐसे 35 बिल संसद में पेश किए जा चुके हैं। इनमें 15 प्राइवेट मेंबर बिल कांग्रेस के सांसदों की ओर से पेश किए गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका और केंद्र का हलफनामा
ध्यान रहे कि राकेश सिन्हा ने जुलाई 2019 में भी संसद में इस मुद्दे पर अपना प्राइवेट बिल पेश किया था। उससे पहले मई महीन में दिल्ली बीजेपी के नेता और चर्चित वरिष्ठ वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर करके जनसंख्या नियंत्रण के लिए कड़े कानून की मांग की थी। दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले को खारिज कर दिया था। हालांकि, उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट का रुख कर लिया।

हम जबरन परिवार नियोजन थोपने के विरोधी: केंद्र

सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया तो केंद्र ने कोर्ट में हलफानामा दायर कर कहा कि वह देश के लोगों पर जबरन परिवार नियोजन थोपने के पक्ष में नहीं है। देश की शीर्ष अदालत में दिए गए दिसंबर 2020 के अपने हलफनाम में केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि लोक स्वास्थ्य (Public Health) राज्य के अधिकार का विषय है और लोगों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से बचाने के लिए राज्य सरकारों को स्वास्थ्य क्षेत्र में उचित एवं निरंतर उपायों से सुधार करने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका की सुनवाई के दौरान 10 जनवरी, 2020 को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर प्रतिक्रिया मांगी थी।

पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट में याचिका
पिछले महीने ही मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के कुलपति (वीसी) फिरोज बख्त अहमद ने भी सुप्रीम कोर्ट में पीआईल दाखिर करके जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रभावी, नियम, विधान और दिशानिर्देश तैयार की मांग की थी। बख्त देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के बड़े भाई के पड़पोते हैं। उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि जनसंख्या विस्फोट के कारण देश को कई संकटों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने दावा किया कि सरकारी रिकॉर्ड में बताई जनसंख्या से हकीकत की आबादी से बहुत कम है।

पीएमओ में प्रजेंटेशन
अश्विनी उपाध्याय जनसंख्या नियंत्रण पर वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) में भी प्रजेंटेशन दे चुके हैं। उन्होंने दो दिन पहले 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून का महत्व बताया है। उपाध्याय ने चिट्ठी में पीएम से कहा कि जनसंख्या विस्फोट की समस्या यूपी और असम तक सीमित नहीं है बल्कि यह सबसे बड़ी राष्ट्रीय समस्या है। उन्होंने इस पर मसौदा विधेयक भी तैयार कर रखा है जिसे सुब्रमण्यन स्वामी समेत बीजेपी के तीन सांसद संभवतः संसद में प्राइवेट बिल के तौर पर पेश करेंगे।

प्रधानमंत्री भी कर चुके हैं जनसंख्या नियंत्रण की वकालत
15 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लाल किले से अपने भाषण में जनसंख्या नियंत्रण का जिक्र कर चुके हैं। पीएम ने देश में जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जताते हुए कहा था कि अनियंत्रित जनसंख्या से आने वाली पीढ़ियों के सामने नई चुनौतियां पेश होंगी। उन्होंने इससे निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को कदम उठाने की जरूरत बताई थी। उन्होंने उन परिवारों को सम्मान का हकदार बताया था जिनके कम बच्चे हैं। मोदी यही नहीं रुके और छोटा परिवार रखने को एक प्रकार की देशभक्ति बता दी। ध्यान रहे कि तब प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार जनसंख्या विस्फोट के संकट पर बात की थी।

राष्ट्रपति से भी लग चुकी है गुहार

इससे पहले वर्ष 2018 में देश के राष्ट्रपति से भी जनसंख्या नियंत्रण पर नीति लाने की गुहार लगाई गई थी। तब करीब 125 सांसदों ने देश में दो बच्चों की नीति लागू करने का आग्रह राष्ट्रपति से किया था। यूपी के मुख्यमंत्री और गोरखपुर से तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने 2015 में इस मुद्दे पर एक ऑनलाइन सर्वे कराया था। उस ऑनलाइन पोल में आम नागिरकों से राय मांगी गई थी कि क्या केंद्र की मोदी सरकार को जनसंख्या नियंत्रण के लिए कोई नीति बनानी चाहिए।

अंतरराष्ट्रीय घोषणा और भारत
ध्यान रहे कि भारत ने वर्ष 1994 में जनसंख्या और विकास की घोषणा पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लिया था और उसने सम्मेलन की घोषणा पर भी हस्ताक्षर किया था। इसके मुताबिक, भारत ने यह माना था कि कोई दंपती अपने परिवार को कितना बड़ा करना चाहता है, यह तय करना उसका अधिकार होगा। इसमें यह भी कहा गया है कि दो बच्चों के जन्म के बीच की मियाद क्या होगी, यह अधिकार भी दंपती के पास ही सुरक्षित रहेगा।

Exit mobile version