‘अगर RSS एक फीसदी भी हमें सपोर्ट करे, तो हम लाल आतंक से लड़ने में कामयाब होंगे’। यह बात ममता बनर्जी ने साल 2003 में कही थी। तब वे पश्चिम बंगाल में विपक्ष में हुआ करती थीं और वामपंथियों से लड़ रही थीं, जिनकी बंगाल में तूती बोलती थी। उस समय ममता NDA का हिस्सा थीं। यह वही वक्त था, जब RSS नेता तरुण विजय ने ममता बनर्जी को मंच पर भाषण देने के लिए बुलाया था तो उन्हें ‘बंगाल की दुर्गा’ कहकर पुकारा था।
2011 में ममता बनर्जी ने CPM के 34 साल का राज खत्म कर दिया था। तब से वे बंगाल की सत्ता में हैं। 20 साल पहले जिस RSS से वे लाल आतंक खत्म करने के लिए मदद मांग रही थीं, वही RSS और BJP की अब CPM के लोग मदद कर रहे हैं, बंगाल से ममता बनर्जी को हटाने के लिए।
पश्चिम बंगाल में अप्रैल-मई में पंचायत चुनाव हो सकते हैं। मामला अभी कोर्ट में है, इसलिए तारीख तय नहीं हो पा रही। कोर्ट के आदेश के बाद ही तय होगा कि चुनाव कब होंगे। TMC से लेकर BJP और CPM तक ने ग्राउंड पर चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है। इसकी वजह है कि पंचायत चुनाव अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में बड़ा असर डालेंगे।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी गुरुवार को कोलकाता के बाबूघाट पर गंगा आरती में शामिल हुईं। मेघालय चुनाव में उनकी पार्टी को 5 सीटें मिली हैं।
‘लोकल लेवल पर गठबंधन, वजह TMC समर्थकों की गुंडागर्दी’
लगातार तीन विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद वामपंथी BJP के साथ गठजोड़ कर TMC को हराने की तैयारी में हैं। BJP भी ममता को हराने के लिए वामपंथियों का साथ लेने से परहेज नहीं कर रही। सिर्फ कम्युनिस्ट ही नहीं, बल्कि कई जगह तो कांग्रेस भी BJP के साथ है।
मैंने BJP प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार से पूछा कि पंचायत चुनावों में आप वामपंथियों और कांग्रेस के साथ मिलकर TMC से लड़ रहे हैं तो वो बोले ‘ऐसे समझौते लोकल लेवल पर हो रहे हैं। गांव के नेता आपस में मिलकर तय कर लेते हैं कि किसे जिताना है। TMC की गुंडागर्दी इतनी बढ़ गई है कि कई जगह समझौते किए जा रहे हैं।’
पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी भी यही बात कहते हैं। उनका कहना है कि ‘हो सकता है लोकल लेवल पर इस तरह का गठबंधन हो। लोकल लेवल पर हमारा कंट्रोल नहीं होता। लोग आपस में बात करके फैसला कर लेते हैं। बंगाल में तानाशाही इतनी बढ़ गई है कि लोग TMC को हटाने के लिए कोई भी रास्ता अपनाने को तैयार हैं।’
2018 की तरह हिंसा हुई तो ममता को नुकसान होगा
पश्चिम बंगाल के सीनियर जर्नलिस्ट स्निगधेंदु भट्टाचार्य कहते हैं, ‘बंगाल में पार्टी सिंबॉल पर पंचायत इलेक्शन होते हैं। इस बार TMC मुसीबत में है, क्योंकि सरकार पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगे हैं। टीचर्स रिक्रूटमेंट से लेकर कोयला और गो-तस्करी का मामला भी चल रहा है। इसलिए उसके खिलाफ माहौल बना हुआ है।’
वहीं अगर हिंसा होती है तो TMC को नुकसान होना तय है। 2018 में जिन इलाकों में हिंसा हुई थी, वहां TMC चुनाव तो जीत गई थी, लेकिन लोकसभा चुनाव में उसे हार मिली थी, क्योंकि लोकसभा चुनाव में सेंट्रल एजेंसियां तैनात होती हैं और लोकल लेवल पर गड़बड़ी का आशंका कम हो जाती है।
पंचायत इलेक्शन में सब कुछ राज्य सरकार के हाथ में होता है। इसलिए कई बार बूथ कैप्चर करने तक के मामले सामने आते हैं। देसी बमों से हमला होना तो बंगाल में आम बात है। ऐसे में इस बार भी यदि 2018 की तरह हिंसा हुई तो राज्य सरकार के 2024 और ज्यादा कठिन हो जाएगा।
BJP-TMC नहीं, BJP-वामपंथियों में गठजोड़
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में एक नारा वायरल हुआ था कि ‘दिल्ली में दादा और बंगाल में दीदी’। मैंने BJP प्रदेश अध्यक्ष से पूछा कि ‘क्या आप पंचायत चुनाव में TMC को वॉकओवर देने जा रहे हैं और इसके बदले में ममता बनर्जी लोकसभा में आपको मदद करेंगी तो वो बोले, ‘वो हमें लोकसभा में क्या मदद कर पाएंगी। ये सब खबरें बकवास हैं।’
ममता और BJP के गठजोड़ पर कोलकाता स्थित रविंद्र भारती यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉ. विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, ‘RSS के साथ ममता बनर्जी के संबंध बहुत अच्छे हैं, क्योंकि ममता ने बंगाल से RSS के दुश्मन रहे वामपंथियों की सत्ता को उखाड़ा था। इसलिए RSS उन्हें बेवजह डिस्टर्ब नहीं करना चाहता। PM मोदी के लिए भी यह फायदेमंद है कि वे 2024 तक ममता को डिस्टर्ब न करें।’
‘ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं के जरिए ही कहीं न कहीं कांग्रेस को भी खत्म किया जा रहा है। अपोजिशन में एकता नहीं हो पा रही है। CBI और ED ने बंगाल में तमाम कार्रवाईयां कीं, लेकिन अभिषेक या ममता बनर्जी पर कोई आंच नहीं आई।’
हालांकि, भट्टाचार्य को लगता है कि ‘बांटो और राज करो’ ममता बनर्जी की पुरानी नीति है। वो हमेशा ऐसे बयान देती रहती हैं, जिससे लोग आपस में बंटे। जब वामपंथियों का शासन था तो वो कहा करती थीं कि ये वामपंथी अच्छे हैं, वो वामपंथी खराब हैं। इसी तरह उन्होंने कुछ समय पहले PM मोदी का बचाव किया था और BJP के दूसरे नेताओं पर हमला बोला था।
उन्होंने कहा था कि, ‘मुझे नहीं लगता कि राज्य में केंद्रीय एजेंसियों के कथित दुरुपयोग के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हाथ है। उन्होंने आरोप लगाया था कि BJP नेताओं का एक तबका अपने हित साधने के लिए एजेंसियों का दुरुपयोग कर रहा है।’
उन्होंने ये भी कहा था कि, ‘आप में से ज्यादातर लोग नहीं जानते कि CBI अब PMO को रिपोर्ट नहीं करती। होम मिनिस्ट्री को रिपोर्ट करती है। BJP के कुछ नेता साजिश कर रहे हैं और वो अक्सर निजाम पैलेस जाते हैं।’
BJP के प्रदेश प्रवक्ता शमिक भट्टाचार्य कहते हैं, पार्टी अपने बलबूते चुनावी मैदान में है। TMC की तो हालत ये हो गई है कि गांवों में उनके नेता घुसने से डर रहे हैं। करप्शन और बेरोजगारी की वजह से लोगों में भयंकर गुस्सा है। हम चाहते हैं कि पंचायत चुनाव में सेंट्रल एजेंसियों को तैनात किया जाए। बंगाल में हालात ऐसे हैं कि हमारे मंत्री के काफिले तक पर हमला हो गया। जब मंत्री ही सुरक्षित नहीं हैं, तो आप निष्पक्ष चुनाव की उम्मीद कैसे कर सकते हैं।
BJP की बंगाल के मुस्लिमों को साधने की रणनीति
पश्चिम बंगाल में 30% मुस्लिम पॉपुलेशन है। मुस्लिमों को साधे बिना बंगाल की सत्ता में आना मुश्किल है। मुस्लिम किसी भी पार्टी को एकतरफा वोट करते हैं, जबकि हिंदू वोट बंट जाते हैं। बंगाल में अभी मुस्लिम TMC के साथ हैं। BJP की रणनीति अब मुस्लिमों को साथ जोड़ने की है।
BJP की नेशनल एग्जिक्यूटिव मीटिंग में PM मोदी ने पार्टी वर्कर्स से अल्पसंख्यकों को जोड़ने की बात कही थी। इसके बाद BJP के नेशनल वॉइस प्रेसिडेंट दिलीप घोष ने सवाल उठाया था कि बंगाल में 30% मुस्लिम आबादी है, लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी इन्हें क्या मिला।
BJP नेता मिथुन चक्रवर्ती ने बंगाल के मुस्लिम बहुल साउथ 24 परगना जिले में एक रैली में लोगों से अपील की थी कि पंचायत चुनाव में BJP को वोट दें और पीएम आवास योजना का फायदा उठाएं।
2018 में 34% सीटें निर्विरोध जीती थी TMC
2018 में हुए पंचायत चुनाव में बंगाल में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। इस चुनाव में 34% सीटें तो TMC बिना चुनाव लड़े ही जीत गई थी। इन सीटों पर कोई TMC के सामने खड़े होने की हिम्मत ही नहीं कर पाया।
बंगाल में धमकियां देने के लिए भी अलग-अलग तरकीबें अपनाई जाती हैं। कभी फोन करके धमकी दी जाती है तो कभी साड़ी फेंककर। साड़ी के साथ चिट भी फेंकी जाती है, जिसमें लिखा होता है कि अपने पति को बचाना चाहती हो तो चुनाव लड़ने से रोक दो, वरना यह उजली साड़ी पहननी पड़ेगी।
2018 में हुई हिंसा में 13 से ज्यादा लोग मारे गए थे और 50 से ज्यादा घायल हुए थे। हालांकि, BJP ने आधिकारिक आंकड़ों को गलत बताते हुए कहा था कि बहुत लोग मारे गए हैं, लेकिन सरकार आंकड़े छिपा रही है। चुनाव के दौरान कहीं बम फेंके गए थे। कहीं बूथ कैप्चर किए गए। कहीं बैलेट बॉक्स ही जला दिए गए थे। कई जिलों में पत्रकारों पर भी जानलेवा हमले हुए थे।