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खड़गे की ताजपोशी:पार्टी की लगभग आधी टीम राहुल गांधी की पसंद की होगी

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सौ साल से अधिक हो गए। अब तक का इतिहास देखें तो कांग्रेस फ़ीनिक्स की तरह नज़र आती है। फ़ीनिक्स को हम अपनी भाषा में ककनूस भी कहते हैं। यह वह काल्पनिक पक्षी होता है जो जीवनभर संघर्ष करता है। खुद ही भस्म होता है और फिर अपनी ही राख में से पुन: जन्मता है। यह एक सात्वत संघर्ष है और दुनिया का हर संघर्षशील व्यक्ति अपने जीवनकाल में इसे जीता ज़रूर है।

कांग्रेस भी समय-समय पर यह करती रही है। श्रीमती इंदिरा गांधी एक बार खुद चुनाव हार चुकी थीं लेकिन अगले चुनाव में दुगनी ताक़त से सत्ता में आईं थीं। राजीव गांधी के बाद जाने कितने दलों की कितनी सरकारें रहीं, लेकिन पीवी नरसिंह राव के नेतृत्व में कांग्रेस ने फिर राज किया।

अब पार्टी के नए, ग़ैर गांधी अध्यक्ष ने बुधवार को पदभार सँभाला है और पहले ही दिन उन्होंने ऐलान किया है कि वे पार्टी में पचास प्रतिशत पद युवा कांग्रेसियों को देंगे। सीधा-सा मतलब है कि पार्टी की लगभग आधी टीम राहुल गांधी की पसंद की होगी। क्योंकि अध्यक्ष अब भले ही खड़गे हों लेकिन युवाओं की नियुक्ति में राहुल गांधी की सलाह अहम होगी।

ठीक है, राजनीति में यह सब होता है लेकिन खडगे चाहें या ठान लें तो इस सब के बावजूद वे स्वतंत्र रूप से काम कर सकते हैं और पार्टी को नई ऊँचाइयों पर ले जा सकते हैं। देखना यह है कि युवाओं और अनुभवी कांग्रेसियों के बीच खडगे किस तरह का तालमेल बैठा पाते हैं। निश्चित ही युवाओं के जोश और बुजुर्गों के अनुभव को चेनलाइज किया जा सकता है और इसका फ़ायदा भी पार्टी को मिल ही सकता है, लेकिन सारा दारोमदार खड़गे साहब की इच्छाशक्ति पर निर्भर है।

अगर वे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरह गांधी परिवार के बिना कदम भी नहीं उठा पाएँगे तो फिर समझिए कि ग़ैर गांधी होकर भी वे पार्टी को कुछ नया, ज़्यादा या अलग नहीं दे पाएँगे। ठीक है, गांधी परिवार को हासिल पर तो नहीं ही डाला जा सकता लेकिन उन्हें साथ रखकर भी कमाल किया जा सकता है। खड़गे साहब के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि पुराने कांग्रेसी बार-बार उनकी बजाय सोनिया गांधी से सलाह लेने दौड़ने न लगें।

इसी तरह युवा कांग्रेसी खड़गे की बजाय राहुल गांधी के आस-पास मंडराने लगेंगे तो गड़बड़ होना तय है। हो सकता है इन सब में तारतम्य बैठाते-बैठाते खुद खड़गे ही इस बाबूगिरी से ऊब जाएँ। या सब कुछ छोड़-छोड़कर झोला उठाएँ और चल दें। हालाँकि नियुक्ति का पहला दिन है और आशा है कि खड़गे कांग्रेस में निश्चित ही नई ऊर्जा फूंकेंगे। हिमाचल और गुजरात चुनाव में पार्टी जरूर उनके नेतृत्व में नए कीर्तिमान गढ़ेगी।

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