एस पी मित्तल, अजमेर
अजमेर में नियुक्त एसओजी की अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) दिव्या मित्तल दो करोड़ रुपए की रिश्वत मांगने के आरोप में 16 जनवरी से एसीबी की रिमांड पर है। इसी बीच 18 जनवरी को एटीएस और एसओजी के एडीजी अशोक राठौड़ ने एक आदेश जारी कर कहा कि पुलिस विभाग में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए आगामी 26 जनवरी को एएसपी दिव्या मित्तल को भी पुलिस मुख्यालय से सम्मानित किया जाएगा। एसीबी की रिमांड में रहते हुए सम्मानित होने वाला आदेश दिव्या मित्तल के लिए ही निकल सकता है। हालांकि यह आदेश वापस ले लिया है, लेकिन इससे प्रतीत होता है कि गिरफ्तार होने से पहले पुलिस के आला अफसर कितने मेहरबान थे। अब जो कारनामे सामने आ रहे हैं, उनसे प्रतीत होता है कि दिव्या ने तो अपनी दिव्य ज्योति से राजस्थान पुलिस के डीजीपी तक को चकाचौंध कर रखा था। जब भी निष्पक्ष जांच की बात आती तो डीजीपी से लेकर एसओजी के एडीजी तक मुकदमे की फाइल को जांच के लिए दिव्या मित्तल को ही भेजते थे। दिव्या ज्योति के कारण बड़े अफसरों को दिव्या मित्तल के अलावा कोई नजर ही नहीं आता था। अपने इस दिव्य ज्योति के करिश्मे से ही दिव्या मित्तल ने एसीबी की योजना का पहले ही पता लगा लिया। इससे एसीबी की रंगे हाथों पकड़ने की योजना फेल हो गई। यदि दिव्या करिश्माई अफसर नहीं होती तो 50 लाख रुपए की रिश्वत लेते पकड़े ली जातीं। आखिर दिव्य ज्योति का अहसास करने वाले किसी अफसर ने ही तो एसीबी की जानकारी दिव्या तक पहुंचाई। अब सबूत के तौर पर एसीबी के पास ऑडियो रिकॉर्डिंग ही है। दिव्य ज्योति से मात खाए एसीबी के अधिकारी अखबारों में कुछ भी छपवा लें, लेकिन अदालत में दिव्या के खिलाफ कोई ठोस सबूत पेश नहीं करा पाएंगे। दिव्या ने अपना वकील भी प्रीतम सिंह सिंह सोनी को किया है। रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े गए कार्मिकों की जमानत भी एडवोकेट सोनी ने आसानी से करवाई है। दिव्य मित्तल से तो रिश्वत की राशि भी बरामद नहीं हुई है। डीजीपी स्तर तक के अधिकारी मानते हैं कि राजस्थान पुलिस दिव्या मित्तल जैसी उत्कृष्ट अधिकारी नहीं है। ईमानदारी और निष्पक्ष जांच में तो दिव्य पुरुष अधिकारियों से भी आगे हैं। इसीलिए अफसर हो तो दिव्या जैसी होनी चाहिए।
गृहमंत्री हो तो अशोक गहलोत जैसा:
दिव्या मित्तल के प्रकरण ने राजस्थान पुलिस के बड़े बड़े चेहरों पर से नकाब उतार दी है। जिन अफसरों ने दिव्या पर मेहरबानी बरसाई उनके नाम भी अखबारों में रोज छप रहे हैं। ये वे ही अफसर हैं जिन पर गृहमंत्री और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की विशेष कृपा रहती है। यदि अशोक गहलोत जैसा गृहमंत्री नहीं होता तो बड़े बड़े अफसर एएसपी स्तर की एक अधिकारी पर इतनी मेहरबानी नहीं दिखा सकते थे। पुलिस महकमे का असली चेहरा सामने आने के बाद भी गृह मंत्री की भूमि पर कोई सवाल नहीं उठ रहा है। दिव्या मित्तल जिस तरह नशीली दवाओं के कारोबारियों से वसूली कर रही थीं, उसकी भनक गृहमंत्री को नहीं लगी, क्या ऐसा हो सकता है? क्या गृह मंत्री के अधीन आने वाली सीआईडी, एसओजी, एसीबी, एटीएस जैसी खुफिया एजेंसी सिर्फ विधायकों की निगरानी के लिए हैं? कांग्रेस और निर्दलीय विधायक यदि अपने रिश्तेदार के पास भी जाएंगे तो गृह मंत्री के नाते अशोक गहलोत को पता चला जाएगा। पुलिस की इतनी बदनामी के बाद भी गृह मंत्री की कोई जवाबदेही सामने नहीं आ रही है। ऐसा लग रहा है जैसे गृहमंत्री की कोई जिम्मेदारी है ही नहीं। अशोक गहलोत की गृहमंत्री वाली नाक के नीचे क्या क्या हो रहा है, यह राजस्थान की जनता साफ तौर पर देख रही है। दिव्या मित्तल के प्रकरण में गृहमंत्री होने के नाते अशोक गहलोत अपनी जिम्मेदारी से कैसे बच सकते हैं? लेकिन यह भी सब जानते हैं कि दिव्या पर मेहरबान किसी अधिकारी पर कोई कार्यवाही नहीं होगी, क्योंकि ऐसे अफसरों की बदौलत ही अशोक गहलोत की सरकार बची हुई है। जिन अधिकारियों ने सरकार को बचाए रखा, उन्हें रिटायरमेंट के बाद भी महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां दी है। चाहे कोई मुख्य सचिव हो या डीजीपी।
विपक्ष हो तो भाजपा जैसा:
इसे विपक्ष का करिश्मा ही कहा जाएगा कि दिव्या मित्तल के प्रकरण में गृहमंत्री के नाते अशोक गहलोत की भूमिका पर कोई सवाल नहीं उठाया है। शायद भाजपा के नेताओं को यह पता नहीं होगा कि राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही गृहमंत्री हैं। जो प्रकरण 16 जनवरी से न्यूज़ चैनलों और अखबारों की सुर्खियां बना हुआ है, उस पर विपक्ष के तौर पर भाजपा के नेता खामोश हैं। भाजपा नेताओं को लगता है कि इसी वर्ष राजस्थान में उनकी सरकार बन जाएगी, क्योंकि सरकार बनाने का नंबर उन्हीं का है। नंबर की वजह से ही भाजपा नेता आश्वस्त होकर बैठे हैं। यदि विपक्ष जागरूक होता तो दिव्या मित्तल के प्रकरण में गृहमंत्री के तौर पर अशोक गहलोत को कटघरे में खड़ा कर देता।