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राजस्थान, मप्र, गुजरात और महाराष्ट्र के 4 राज्यों के 42 जिलों काे मिलाकर अलग भील प्रदेश की मांग, 108 वर्ष पुराने आंदोलन का तर्क

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उदयपुर

आज विश्व आदिवासी दिवस है। यह दिन विश्व में रहने वाली आदिवासी आबादी के मूलभूत अधिकारों यानी जल, जंगल, जमीन को बढ़ावा देने और उनकी सामाजिक, आर्थिक व न्यायिक सुरक्षा के लिए मनाया जा रहा है। लेकिन राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्यप्रदेश में जनजाति समुदाय का एक धड़ा लंबे समय से भील प्रदेश की मांग कर रहा है।

इसके चलते भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा, भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) सहित कई सामाजिक-राजनीतिक संगठन मजबूत हुए हैं। जाे चारों प्रदेशों के 42 जिलों के अनुसूचित क्षेत्रों को मिलाकर अलग भील प्रदेश की मांग कर रहे हैं। इस क्षेत्र की आबादी सवा करोड़ से भी ज्यादा है।इसमें राजस्थान में 28 लाख, गुजरात में 34 लाख, महाराष्ट्र में 18 लाख और मध्यप्रदेश में करीब 46 लाख की जनसंख्या शामिल हैं। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 244 और सन् 1913 के मानगढ़ में गुरु गोविंद गिरी के आंदोलन का हवाला दिया जाता है।

इसी बीच संसद-विधानसभा से लेकर सामाजिक मंचों पर लगातार यह मांग उठती रही है। यूपी के इटावा में जन्मे मामा बालेश्वर दयाल ने भील जनजाति को जल, जंगल और जमीन की लड़ाई के लिए एकजुट किया। इनका प्रभाव वागड़ और एमपी के सटे क्षेत्रों से रहा।1977-84 के दौरान एमपी से चुने जाने के बाद राज्यसभा में जनता पार्टी का प्रतिनिधित्व भी किया। दाहोद (गुजरात) से लोकसभा सांसद रहे सोमजी भाई डामोर ने भील प्रदेश का अलग नक्शा दिया ताे इसी मांग को लेकर 2013 में जांबूखंड पार्टी और फिर 2017 में बीटीपी का गठन हुआ।

इसके राष्ट्रीय संरक्षक गुजरात विधानसभा सदस्य छोटू भाई वसावा है। फिलहाल पार्टी से गुजरात-राजस्थान में दाे-दाे विधायक हैं। हालांकि इस मांग का आरएसएस लगातार विरोध करता रहा है। इस क्षेत्र में कार्यरत संघ परिवार से जुड़े वनवासी कल्याण परिषद का मानना है कि यह समाज को बांटने के लिए वामपंथी और मिशनरी ताकतों की साजिश है। वहीं, अकादमिक क्षेत्रों से जुड़े कई बुद्धिजीवी इस मांग को स्वायत्तता के नजरिए से सही मानते हैं।

4 राज्यों के इन जिलों काे मिलाकर है भील प्रदेश बनाने की मांग

गुजरात- बनासकांठा-सावरकांठा-अरावली-महिदसागर-वडोदरा-भरूच-सूरत और पंचमहल का हिस्सा, दाहोद, छोटा उदयपुर, नर्मदा, तापी, नवसारी, वलसाड़, दमन दीव, दादर नागर हवेली।

राजस्थान- डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर, प्रतापगढ़, सिरोही, राजसमंद और चित्तौड़गढ़, जालोर-बाड़मेर-पाली का हिस्सा।

महाराष्ट्र- जलगांव-नासिक और ठाणे का हिस्सा, नंदूरबाग, धुलिया और पालघर।

मध्यप्रदेश- नीमच-मंदसौर-रतलाम और खड़वा का हिस्सा, झाबुआ, अलीराजपुर, बड़वानी, धार, खरगोन और बुरहानपुर।

भील प्रदेश की मांग आसान नहीं, स्वायत्तता और अधिकारों की लड़ाई जरूरी

आदिवासी दुनिया के बारे में आम आदमी हो या बुद्धिजीवी, सभी इस समाज को प्रकृति पूजक, सहज-सरल जीवन का प्रतीक या पिछड़ा, जंगली, अज्ञानी, पुश्तैनी रूप से अपराधी कहता है। इस समाज में जाति उत्पीड़न, लैंगिक भेदभाव, ऊंच-नीच, छुआछूत से कोसों दूर शहरों से बेहतर होने के कई उदाहरण मौजूद हैं। नाता-प्रथा के तहत जीवनसाथी चुनने का अधिकार भी समाज में मिसाल है। प्रदेश में प्रतापगढ़ जैसे जनजाति अंचल में 1000 पुरुषों पर 1143 स्त्रियां हैं। लेकिन भील प्रदेश की मांग आसान नहीं है। स्वायत्तता और अधिकार की लड़ाई जरूरी है। -प्रो. सुधा चौधरी, संयोजक, आदिवासी मिलाप योजना, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय

प्राकृतिक संसाधन के संरक्षण के लिए भील प्रदेश जरूरी

प्राकृतिक संसाधन काे संरक्षण और जनजाति को अधिकार मिलना चाहिए और यह तभी मुमकिन है, जब उसे नेतृत्व और प्रतिनिधित्व में मौका मिलेगा। टीएसपी आरक्षण का लाभ हर वर्ग को मिल रहा है। चाहे वह सवर्ण ही क्यों न हो। इसलिए इस मांग में हर वर्ग को साथ आना चाहिए। किसी को भी भील प्रदेश की मांग से डरने की जरूरत नहीं है। -वेलाराम घोघरा, प्रदेशाध्यक्ष, बीटीपी

आदिवासी समाज की मांग जायज, इनसे प्रकृति को खतरा नहीं

आदिवासियों की मांग जायज है। क्योंकि, आधुनिक सभ्यताओं ने आदिवासी सभ्यताओं को कुचल कर विकास किया है। आदिवासी सभ्यता और प्रकृति का रिश्ता हमेशा से है। पूंजीवादी समाज ने प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग करने के लिए राष्ट्र विकास के नाम पर आदिवासियों की संपत्ति पर कब्जा किया। आदिवासियों की वजह से कभी भी जंगल में मुश्किलें पैदा नहीं हुईं। यूरेनियम, परमाणु संयंत्र की खोज में जंगल खत्म किए जा रहे हैं, इसलिए भील समाज की यह मांग जायज है। -प्रो. अपूर्वानंद, दिल्ली यूनिवर्सिटी और राजनीतिक विश्लेषक​​​​​​​

भील प्रदेश की मांग वामपंथी व मिशनरी ताकतों की साजिश

अलग प्रदेश की मांग के पीछे वामपंथी और मिशनरी ताकत हैं। जिनकी साजिशों के चलते यह मांग मजबूत की जा रही है। केंद्र सरकार का जनजाति मंत्रालय व वन मंत्रालय ने 7 जुलाई को अध्यादेश पास कर यह सुनिश्चित किया है। हम मानते हैं जंगल वनवासियों का है। ग्रामसभा को अधिकार मिलने चाहिए, लेकिन अलग प्रदेश की मांग समाज को तोड़ने की है। -विजय कुमार, प्रचारक, वनवासी कल्याण परिषद

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