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जेपी की विरासत ‘गांधी विद्या संस्थान’ पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश!

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उत्तर प्रदेश के वाराणसी में राजघाट पर स्थित सर्व सेवा संघ परिसर में लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा स्थापित गांधी विद्या संस्थान परिसर (गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ स्टडीज) को खाली करा दिया गया है। आरोप है कि इसके दरवाज़ों पर लगे ताले तोड़ दिए गए और बाद में इसे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के हवाले कर दिया गया। वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के मुखिया हैं। आरोप है कि इनके नेतृत्व में इस कला केंद्र को फिलहाल राष्ट्रीय सेवक संघ (आरएसएस) की नीति-रीति के मुताबिक संचालित किया जा रहा है। हालांकि इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति आलोक माथुर ने सर्व सेवा संघ के विवाद के बाबत 16 मई 2023 को फैसला सुनाते हुए वाराणसी के कलेक्टर को निर्देश दिया है कि वह दो महीने के भीतर समूचे अभिलेखों की जांच करें और जिस जगह सर्व सेवा संघ स्थापित है, अगर वह ज़मीन उसी संस्था की है तो उसे लौटा दें।

बनारस के कमिश्नर कौशल राज शर्मा के निर्देश पर इलाकाई मजिस्ट्रेट आकांक्षा सिंह 15 मई 2023 को भारी पुलिस फोर्स के साथ सर्व सेवा संघ परिसर में पहुंची और गांधी विद्या संस्थान, लाइब्रेरी और निदेशक भवन का ताला तुड़वा दिया और जेपी के इन तीनों इमारतों को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के हवाले कर दिया गया। दावा है कि तीनों ही इमारतें सर्व सेवा संघ की हैं, जिन्हें कई दशक पहले गांधी विद्या संस्थान चलाने के लिए विधिक रूप से आवंटित किया गया था। गांधी विद्या संस्थान का ताला तोड़ने के दौरान सर्व सेवा संघ के कार्यक्रम संयोजक राम धीरज एवं जेपी समर्थकों की मजिस्ट्रेट आकांक्षा सिंह से तीखी बहस हुई। विवाद बढ़ने पर मजिस्ट्रेट ने कमिश्नर कौशल राज शर्मा से बात की।

राम धीरज 

जेपी समर्थकों का आरोप है कि “मजिस्ट्रेट आकांक्षा सिंह ने किसी को न कोई आदेश दिखाया और न ही मौके पर कोई प्रतिलिपि चस्पा कराई। बनारस के कमिश्नर कौशल राज शर्मा के आदेश का हवाला देते हुए गांधी विद्या संस्थान के सभी कमरों का ताला तुड़वा डाला। साथ ही नया ताला लगवाकर संस्थान के परिसर को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के हलाले कर दिया।” बता दें कि यह वह संस्थान है जिसकी स्थापना साल 1961-62 में लोकमान्य जयप्रकाश नारायण की पहल पर डॉ. संपूर्णानंद, शंकर राव देव, के. अरुणाचलम, ईवि आर्यानायकम और नबोकिरण चौधरी ने कराई थी। आपातकाल के समय समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडीज ने सर्व सेवा संघ में ही डेरा डाला और आंदोलन का खाका खींचा था।

धरोहरों को मिटाने का आरोप!

सर्व सेवा संघ के कार्यक्रम संयोजक राम धीरज कहते हैं, “बीजेपी के अनुसांगिक संगठन विद्यार्थी परिषद से ताल्लुक रखने वाले पत्रकार राम बहादुर राय का आरएसएस से गहरा जुड़ाव और सहानुभूति है। वह काफी दिनों से गांधी विद्या संस्थान पर नज़र गड़ाए हुए थे। साल 2003 में जब गांधी विद्या संस्थान में विवाद खड़ा हुआ, उसी समय राम बहादुर राय और सांसद वीरेंद्र मस्त यहां पहुंचे थे। भाजपा और आरएसएस से जुड़े लोग इस संस्थान को अपने हाथ में लेना चाहते थे। गांधी विद्या संस्थान को कई मर्तबा बीजेपी के अनुसांगिक संगठन संस्कार भारती के हवाले करने की कोशिश हुई। साल 2003 से साल 2007 तक चली लंबी लड़ाई के बाद में कोर्ट ने एक अस्थायी संचालन समिति बनाई, जिसका सह-अध्यक्ष बनारस मंडल के कमिश्नर को बनाया गया। किसी कमिश्नर ने आज तक न तो समिति की बैठक बुलाई और न ही गांधी की विरासत को सहेजने में कोई दिलचस्पी ली। इस बीच गांधी विद्या संस्थान के तमाम फर्नीचर, हज़ारों पुस्तकें,  पंखे आदि भी चोरी हो गए लेकिन कमिश्नर को अर्जी देने के बाद भी एफआईआर दर्ज नहीं कराई जा सकी।”

राम धीरज यह भी कहते हैं, “बनारस की सरकार ने ही जेपी की विरासत को लूटने का काम किया। वह दिन दूर नहीं, जब वो सर्व सेवा संघ से महात्मा गांधी, विनोवा भावे और जेपी की धरोहरों को मिटा देंगे। गांधी और जेपी ऐसे युग पुरुष थे जो हर आदमी को अभय बनाना चाहते थे और सभी को अपने बराबर लाना चाहते थे। मौजूदा समय में सत्ता पर काबिज़ लोग हर आदमी को भयभीत करना चाहते हैं और समाज में भेदभाव व ऊंच-नीच की व्यवस्था कायम रखना चाहते हैं। गांधी और जेपी का मार्ग जिन लोगों को सहन नहीं हो रहा है वे दमन, हिंसा, नफरत और खुफिया एजेंसियों को ढाल बनाकर हर समय भय, व खौफ का माहौल बनाए रहना चाहते हैं।”

वह कहते हैं, “गांधी विद्या संस्थान परिसर के बाद समूचे सर्व सेवा संघ परिसर को बीजेपी के अनुसांगिक संगठनों के हवाले करने की तैयारी है। यह हाल तब है जब इलाहाबाद हाईकोर्ट, वाराणसी के कलेक्टर को निर्देश दे चुका है कि वह अभिलेखों की जांच करें और अगर वह जगह सर्व सेवा संघ की है तो उसे दो महीने के अंदर लौटा दें। कमिश्नर को पता था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला जल्द ही आने वाला है। हड़बड़ी में उन्होंने गांधी विद्या संस्थान के ताले तुड़वा डाले और आनन-फानन में उसे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के हवाले कर दिया। गांधी विद्या संस्थान की बिल्डिंग और ज़मीन हमारी है। संस्थान को किसी दूसरी संस्था को सौंपना विधि विरुद्ध है। राजघाट में जयप्रकाश नारायण की विरासत को लुटने से बचाने के लिए हम उपवास और धरना दे रहे हैं और न्याय मिलने तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा।”

विरासत पर कब्ज़ा करने का आरोप क्यों?

दरअसल, आरोप है कि “राजघाट स्थित गांधी विद्या संस्थान को हथियाने की मुहिम लंबे समय से चलाई जा रही है। सत्ता के दबाव में क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी महीनों से इस कोशिश में जुटे थे कि गांधी विद्या संस्थान का सर्वाधिकार इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के हवाले कर दिया जाए ताकि वह दिल्ली की तरह अपनी गतिविधियों का संचालन कर सके।”

इस सिलसिले में क्षेत्रीय उच्च शिक्षाधिकारी ने 25 फरवरी 2023 को सर्व सेवा संघ को एक ई-मेल भेजा। संघ की ओर से अध्यक्ष चंदन पाल और प्रबंधक ट्रस्टी शेख हुसैन ने 28 फरवरी 2023 को कमिश्नर और क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी को जबाव भेजा, जिसमें कहा गया है कि सर्व सेवा संघ की स्थापना साल 1948 में महात्मा गांधी की शहादत के बाद की गई थी।

गांधी के विचार और उनके कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, आचार्य विनोवा भावे, लोकनायक जयप्रकाश नारायण आदि राष्ट्रीय नेताओं की मौजूदगी में महाराष्ट्र के वर्धा स्थित सेवा ग्राम में बैठक हुई। जेपी की पहल पर सर्व सेवा संघ की कार्यकारिणी ने 19-20 मार्च 1960 को इंस्टीट्यूट ऑफ गांधीयन स्टडीज (गांधी विद्या संस्थान) खोलने का प्रस्ताव पारित किया। यह भी तय किया गया कि गांधी विद्या संस्थान स्वायत्त संस्था के रूप में काम करेगी। इसके लिए जयप्रकाश नारायण की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई।

अभिलेखों के मुताबिक, “सर्व सेवा संघ ने अपनी ज़मीन बंदोबस्त नंबर-18/1 मौजा सरैताबाद (वाराणसी) का कुछ भाग, जिसका क्षेत्रफल 13,084 वर्गफीट और ज़मीन बंदोबस्त 11 व 12 मौजा किला कोहना का कुछ भाग जिसका क्षेत्रफल 8,306 वर्गफीट है, को गांधी विद्या संस्थान के कार्यालय व भवन के लिए उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि को पट्टे पर दिया जो बनारस के डिप्टी रजिस्ट्रार के यहां 12 दिसंबर 1963 को पंजीकृत है। बाद में सर्व सेवा संघ ने गांधी विद्या संस्थान की स्थापना तब की जब उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि ने भवन बनाने की अनुमति दी। इसके बाद दोनों भवनों का निर्माण किया गया। सर्व सेवा संघ ने उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि को अपनी ज़मीन लीज डीड पर उपलब्ध कराया था, जिसकी मियाद इसी साल पूरी होने वाली है।”

क्या है बाइलाज व डीड में?

सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल के मुताबिक, “गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ स्टडीज के बाइलाज (नियम-कायदों) और डीड में साफ तौर पर इस बात का उल्लेख किया गया है कि कतिपय कारणों से संस्था विघटित अथवा कहीं स्थानांतरित होती है तो ज़मीन सर्व सेवा संघ को पुनः वापस हो जाएगी। लीज डीड के क्रमांक-चार में यह स्पष्ट उल्लेख है कि यदि पट्टे की अवधि के भीतर गांधी विद्या संस्थान किसी दूसरी जगह स्थानांतरित हो जाए अथवा इसका काम बंद हो जाए तो ज़मीन छोड़कर उक्त संपत्ति पुनः उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि की हो जाएगी। सर्व सेवा संघ इन मकानों जो भी प्रवृत्ति चलाना चाहे, गांधी स्मारक निधि की इजाजत से चला सकता है।”

सर्व सेवा संघ के प्रबंधक ट्रस्टी शेख हुसैन कहते हैं, “गांधी विद्या संस्थान से जुड़े विवादित मामले इलाहाबाद हाईकोर्ट में विचाराधीन हैं। इस मामले में कोई भी निर्णय सर्व सेवा संघ और उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि की सहमति से ही संभव है। संस्थान के सुचारू संचालन के लिए संचालन समिति बनाई गई है। इसे किसी अन्य संस्था को स्थानांतरित करने पर विचार करना समिति के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। कायदे-कानून को ताक पर रखकर गांधी विद्या संस्थान को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के हवाला करना न तो प्रासांगिक है और न ही न्यायोचित।”

हालांकि बनारस के कमिश्नर कौशल राज शर्मा के निर्देश पर राजघाट के सर्व सेवा संघ परिसर स्थित गांधी विद्या संस्थान की संपत्ति को फिलहाल इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक के हवाले कर दिया गया है। विवाद खड़ा होने के बाद मौके पर पुलिस फोर्स तैनात की गई है। गांधी विद्या संस्थान के नियम-कायदों (बाइलाज) के अनुसार सभी चल-अचल संपत्तियां सर्व सेवा संघ को पुन: वापस होनी हैं। इस सिलसिले में हाईकोर्ट के फैसला का इंतजार किया जा रहा है। हालांकि यह पहला मौका नहीं जब प्रशासन ने गांधी विद्या सस्थान को अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश की। बनारस के तत्कालीन कलेक्टर किरण विजय आनंद ने भी इसके ताले तुड़वाए थे और संस्थान की समूची संपत्ति को नियंत्रण में करने की कोशिश की थी। काफी जद्दोजहद के बाद साल 2007 में वाराणसी के अपर जिला जज (दशम) के निर्देश पर कमिश्नर की सह-अध्यक्षता में एक संचालन समिति बनाई गई थी। इस समिति को गांधी विद्या संस्थान का संचालन करना था, लेकिन आरोप है कि प्रशानिक अफसरों ने गांधी के विचारों को आगे बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं ली। आरोप है कि समिति की आज तक न तो कोई बैठक बुलाई गई और न ही इस संदर्भ में सर्व सेवा संघ को कोई सूचना दी गई।

“हड़बड़ी में तोड़े गए ताले”

सर्व सेवा संघ से जुड़े एक्टिविस्ट सौरभ सिंह आरोप लगाते हुए कहते हैं, “कमिश्नर कौशल राज शर्मा ने मनमाने ढंग से आदेश जारी करते हुए 15 मई 2023 को अचानक जेपी की इस संस्था को इंदिरा गांधी कला केंद्र के हवाले करने का एकतरफा आदेश जारी कर दिया। 15 मई 2023 को इलाकाई मजिस्ट्रेट आकांक्षा सिंह ने गांधी विद्या संस्थान के 16 कमरों के ताले तुड़वा दिए। गेस्ट हाउस और निदेशक के आवास पर भी कब्ज़ा करते हुए मजिस्ट्रेट आकांक्षा सिंह ने समूचे परिसर को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के हवाले कर दिया। गांधी विद्या संस्थान की ज़मीन और भवन ही नहीं, बल्कि पुस्तकालय और वहां रखी गईं सभी पुस्तकें सर्व सेवा संघ की हैं। साल 1962 में जेपी ने गांधी विचार और कार्यक्रमों का समाज पर होने वाले प्रभावों का अध्ययन करने के लिए इस संस्थान की स्थापना की थी। इस संस्थान का उद्देश्य गांधी विचार के आधार पर चल रहे कार्यक्रमों का अध्ययन करना और उन्हें समाज विज्ञान से जोड़ना था।”

सौरभ यह भी कहते हैं, “गांधी विद्या संस्थान में बैठकर मशहूर अर्थशास्त्री शूमाखर ने अपनी विश्वप्रसिद्ध पुस्तक ‘स्माल इज़ ब्यूटीफुल’ तैयार की थी। इस ऐतिहासिक विरासत को कमिश्नर कौशल राज शर्मा ने अचानक दूसरी संस्था के हवाले कर दिया। संस्थान के कमरों का बलपूर्वक ताला तोड़ना अनुचित, अन्यायपूर्ण और अवैधानिक है। कमिश्नर का यह आदेश अन्यायपूर्ण एवं विधि विरुद्ध है। जयप्रकाश नारायण ने इस विरासत को खुद ही गढ़ा था। गांधी विद्या संस्थान सिर्फ बनारस ही नहीं, देश की धरोहर है। इस पर आधिपत्य जमाना जेपी के अनुयायियों को नागवार है। गांधी विद्या संस्थान का कोई विवाद नहीं है। इसकी तीन बिल्डिंग हैं। संस्थान को 30 साल की लीज पर दिया गया था, जिसकी मियाद नवंबर में पूरी हो जाएगी। स्वतः हमें वह बिल्डिंग मिल जाती।”

गांधी विद्या संस्थान के ख़िलाफ़ उठाए गए इस क़दम के विरोध में 17 मई 2023 से राजघाट पर बेमियादी धरना और उपवास आंदोलन चल रहा है। जेपी समर्थक रोजाना उनकी प्रतिमा के नीचे बैठक कर रहे हैं। आंदोलनकारियों का आरोप है कि “कमिश्नर मनमानी कर रहे हैं और उनके गैरकानूनी और अलोकतांत्रिक आचरण के ख़िलाफ़ उपवास किया जा रहा है।” उपवास पर बैठे आंदोलनकारियों का यह भी आरोप है कि “17 जनवरी की शाम करीब छह बजे वाराणसी कमिश्नरेट के एसीपी प्रतीक कुमार मौके पर पहुंचे और जेपी की प्रतिमा के ऊपर लगवाए गए शोडनेट को उखाड़कर फेंकवा दिया। बाद में सर्व सेवा संघ के कार्यक्रम संयोजक राम धीरज को बुलाकर हिदायत दी कि वो गांधी विद्या संस्थान की तरफ जाने की हिमाकत न करें।” एसीपी ने उन्हें यह भी बताया कि कमिश्नर कौशल राज शर्मा ने गांधी विद्या संस्थान को अब इंदिरा गांधी कला केंद्र को दे दिया है।

धमकी देने का आरोप

सर्व सेवा संघ के कार्यक्रम संयोजक राम धीरज ने 17 मई 2023 की शाम एससीपी का ऑडियो और कुछ तस्वीरें जारी की। उन्होंने मीडिया से कहा, “शाम करीब छह बजे एसीपी प्रतीक कुमार राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ परिसर में आए और हमें बुलवाया। हमें जेपी की मूर्ति के समक्ष धरने पर नहीं बैठने के लिए धमकी दी और साफ तौर पर बताया कि कमिश्नर कौशल राज शर्मा का ऐसा हुक्म है। हमने उन्हें बार-बार बताया कि परिसर की सभी इमारतें और गेस्ट हाउस उस सर्व सेवा संघ ने बनवाया है जो साल 1964 से राजघाट पर संचालित है। इसमें सरकार का कोई रोल नहीं है। कमिश्नर को कोई हक नहीं है कि वो किसी दूसरे की संपत्ति को अवैध तरीके से किसी और संस्था के हवाले कर दें। हम इस निर्णय के ख़िलाफ़ हैं।”

“हम शांतिपूर्वक धरना और उपवास कर रहे हैं। जेपी की मूर्ति के समीप धरना देने पर हमें बार-बार गिरफ्तार करने की धमकी दी जा रही है। एसीपी ने मुझे अकेले बुलाकर धमकी दी, जिसकी पूरी ऑडियो रिकॉर्डिंग और फोटोग्राफ्स मेरे पास मौजूद है। हमने पुलिस को साफ-साफ बता दिया है कि प्रशासन की दबंगई गैरकानूनी है, लेकिन वो कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं है।”

समाजवादी चिंतक राम धीरज बताते हैं, “अब से पहले भी गांधी विद्या संस्थान को कई लोग कब्ज़ाने की कोशिश करके हार चुके हैं। तत्कालीन एचआरडी मिनिस्टर मुरली मनोहर जोशी ने साल 2000 में कुसुम लता केडिया नामक एक महिला को खड़ा करके गांधी विद्या संस्थान पर पुलिस-प्रशासन के मार्फत कब्ज़ा कराने की कोशिश की थी। उसी दौर में यह संस्था विवादों के घेरे में आ गई थी। पुलिस और प्रशासन को हथियार बनाकर बीजेपी सरकार ने एक बार फिर संस्थान को कब्ज़ाने की कोशिश की है। यूपी सरकार अथवा बनारस के कमिश्नर को यह अधिकार नहीं है कि किसी संस्था की ज़मीन का कब्ज़ा दूसरी संस्था को दिला दें। संस्थान की लाइब्रेरी में करीब 20 हज़ार दुर्लभ पुस्तकें और पांडुलिपियां है जिन्हें खुर्द-बुर्द किया जा सकता है। बनारस कमिश्नरेट पुलिस ने हमारा टेंट उखाड़ फेंका है, जिसके चलते जेपी के समर्थक 45 डिग्री की धूप में उपवास व धरने पर बैठ रहे हैं।”

“हमारी ज़मीन काफी दिनों से प्रशासन के निशाने पर है। कमिश्नर ने कई महीने पहले सर्व सेवा संघ की ज़मीन के एक हिस्से में काशी विश्वनाथ कारिडोर का मलबा यह कहकर रखवाना शुरू कराया कि कार्यदायी संस्था उसका किराया देगी। किराये की बात कौन कहे, काशी विश्वनाथ ट्रस्ट के लोग सर्व सेवा संघ की करीब ढाई एकड़ ज़मीन जो अवैध तरीके से कब्ज़ाई गई, को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। दूसरी ओर, वह गांधी विद्या संस्थान की करीब चार एकड़ में खड़ी तीन बिल्डिंगें भी हड़प लेना चाहते हैं। हमें लगातार धमकियां दी जा रही हैं। अगर कोई हादसा होता है तो इसकी ज़िम्मेदारी पुलिस और प्रशासन की होगी।”

फिलहाल पिछले तीन दिनों से समाजवादी चिंतक विजय नारायण, राम धीरज, तारकेश्वर, सुरेंद्र सिंह, अवनीश, सौरभ सिंह, नंद किशोर, सुशील, अनूप नारायण, संजय सिंह, आलोक सहाय, विनोद जायसवाल समेत तमाम लोग धरने पर बैठ रहे हैं।

सीधे तौर पर कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं अफसर

गांधी विद्या संस्थान के मुद्दे पर बनारस के कमिश्नर सीधे तौर पर कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं है। उन का पक्ष आएगा तो ‘न्यूज़क्लिक’ उसे भी प्रमुखता से प्रकाशित करेगा। गांधी विद्या संस्थान के कब्ज़े के मामले में कमिश्नर कौशल राज शर्मा मीडिया से इतना कहते हैं कि “शासन के निर्देश पर संस्थान को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र को हस्तांतरित किया गया है। स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 19 नवंबर, 1985 को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र का शुभारंभ किया था। यह संस्था बनारस में जेपी और गांधी पर अनुसंधान, उनकी किताबों का प्रकाशन, प्रशिक्षण, रचनात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देगी। यह केंद्र पहले से ही भारतीय कला और संस्कृति के बिखरे खंडों को एकत्रित कर उनके संरक्षण के लिए अग्रणीय प्रयास कर रहा है।”

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) फिलहाल दिल्ली से संचालित किया जा रहा है। सत्ता में आने के बाद भाजपा ने 14 अप्रैल 2016 को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र को भंग कर नए अध्यक्ष के रूप में वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय की नियुक्ति की थी। राय जेपी आंदोलन के संस्थापक संगठनकर्ता रह चुके हैं। पढ़ाई के दौरान वह विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे, जिसके चलते राष्ट्रीय सेवक संघ के विचारों का उन पर खासा प्रभाव है।

सर्व सेवा संघ से जुड़े राम धीरज वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय पर आरएसएस के क़रीबी होने का आरोप लगाते हुए कहते हैं, “राय की नज़र काफी दिनों से गांधी विद्या संस्थान पर लगी थी। दरअसल, वह एन-केन-प्रकारेण समूचे सर्व सेवा संघ पर अपना कब्ज़ा जमाना चाहते हैं। यह वही राम बहादुर राय हैं जिन्होंने बिहार के एक कार्यक्रम के दौरान यह कहकर सनसनी फैला दी थी कि भारतीय संविधान कि निर्माण में डॉ.भीव राव अंबेडकर की कोई भूमिका ही नहीं थी।”

“राम बहादुर राय हमारे पुराने साथी हैं, लेकिन सत्ता से नज़दीकी में वह भूल गए हैं कि गांधी जी सत्य के लिए हरिश्चंद्र और राम दोनों के पथ का अनुगमन करते हैं। हरिश्चंद्र ने उन्हें बचपन में प्रभावित किया था और राम उन्हें आजीवन प्रेरित करते रहे, लेकिन आज रामराज्य का दावा करने वाले उनके पथ से विचलित हो रहे हैं।”

“नीति और नीयत में खोट”

गांधी विद्या संस्थान को इंदिरा गांधी कला केंद्र के हवाले किए जाने के मामले में बनारस के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। वह कहते हैं, “बीजेपी जब से सत्ता में आई है तब से सभी प्रतीकों और संस्थानों का संघीकरण करने की मुहिम चलाई जा रही है। जेपी की विरासत पर कब्ज़ा करने के लिए आरएसएस की योजना पुरानी है। ये लोग शायद भूल गए हैं कि सर्व सेवा संघ महात्मा गांधी, विनोवा और जेपी के विचारों का सबसे बड़ा केंद्र रहा है। वहां अध्ययन और शोध होते रहे हैं। उस पर कब्ज़ा करके वह अपने तरीके से इसे चलाएंगे और अपना नया नैरेटिव गढ़ेंगे। देश में झूठ परोसने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।”

“हालांकि यह तभी संभव है जब गांधी विद्या संस्थान जैसी संस्थाएं इनके कब्ज़े में रहेंगी। इसी मकसद से संस्थान पर कब्ज़ा किया जा रहा है और भय का वातावरण बनाया जा रहा है। इस तरह का प्रयास कई मर्तबा किया जा चुका है। जिस मामले में हाईकोर्ट का फैसला आने वाला हो, उसपर में हड़बड़ी में कब्ज़ा करना यह दर्शाता है कि इनका पक्ष कमजोर है। इनकी नीति और नीयत में खोट है। इसे बचाने के लिए दुनिया भर के गांधीवादी विचारधारा के लोगों को एकजुट होना पड़ेगा। यह लड़ाई समाज के बीच से चलनी चाहिए। भय का वातावरण बनाने का जो प्रयास है उसके ख़िलाफ़ हर व्यक्ति को मजबूती से खड़ा होना पड़ेगा।”

प्रदीप यह भी कहते हैं, “जिनके पास अपना कोई इतिहास नहीं है, उन्होंने ऐसी संस्थाओं के ज़रिए नया इतिहास गढ़ने की गंदी कोशिश शुरू की है। जिस डर के ख़िलाफ़ गांधी ने लड़ाई लड़ी, उन्हीं की प्रतीक संस्थाओं को बचाने के लिए उनके अनयायियों को ही लामबंद होना होगा। दुनिया जानती है कि गांधी और जेपी हमेशा आरएसएस की विचारधारा के प्रबल विरोधी रहे। बनारस में गांधी विद्या संस्थान का विवाद जेपी की विरासत को कब्ज़ाने का मामला है। साफ शब्दों में कहा जाए तो यह सावरकर बनाम गांधी की लड़ाई है। वह दिन दूर नहीं जब सर्व सेवा संघ के पुस्तकालय में गांधी, जेपी और विनोवा की जगह सावरकर, गोलवरकर व हेडगेवार का साहित्य नज़र आएगा।”

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