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दक्षिण में आयुष्मान तो उत्तर भारत में जेब से खर्च:उत्तर के अधिकांश राज्यों के निजी अस्पतालों ने आयुष्मान कार्ड वालाें को भर्ती नहीं किया

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इंदौर

प्रधानमंत्री जनआरोग्य योजना (आयुष्मान भारत) के तहत पात्र परिवारों की संख्या उत्तर और दक्षिण भारतीय राज्यों में करीब बराबर है। हालांकि कोविड इलाज की बात करें तो दक्षिण के चार राज्य और महाराष्ट्र, उत्तर के राज्यों से बहुत आगे रहे। अप्रैल 2020 से जून 2021 के पहले सप्ताह तक के आंकड़े बताते हैं कि जिस दौर में उत्तर भारत के लगभग सभी राज्यों में लोग इलाज के लिए एक बेड पाने में परेशान हो रहे थे। उस दौरान इन राज्यों के ज्यादातर निजी अस्पतालों ने आयुष्मान कार्ड वालों का इलाज ही नहीं किया।

इन राज्यों के सरकारी अस्पतालों में तो इलाज मुफ्त था लेकिन महामारी की दूसरी लहर के दौरान उत्तर के अधिकांश राज्यों के निजी अस्पतालों ने आयुष्मान कार्ड वालाें को भर्ती नहीं किया। दूसरी ओर, दक्षिण भारतीय राज्यों ने निजी अस्पतालों में इस योजना के लिए 50 फीसदी बेड आरक्षित किए और इसकी निगरानी भी सुनिश्चित की। जिससे वहां इसका लाभ ज्यादा लोगों को मिल सका। आंकड़े बताते हैं कि योजना के तहत देश में 6.05 लाख कोविड मरीजों का इलाज हुआ।

इस पर 2223.57 करोड़ रुपए खर्च हुए। इसमें आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र ने 5.25 लाख मरीजों के इलाज पर 2,107 करोड़ रुपए खर्च किए। वहीं, शेष भारत में करीब 80 हजार संक्रमितों का इलाज हुआ और 116.57 करोड़ रुपए खर्च हुए। इनमें यूपी, एमपी सहित उत्तर के पांच बड़े राज्यों ने केवल 49.10 करोड़ रुपए खर्च किए। देश में आयुष्मान भारत योजना के तहत 13.44 करोड़ कार्डधारक परिवार हैं।

प्रति परिवार औसतन 4-5 लोगों के हिसाब से पात्र लोगों की संख्या करीब 53 करोड़ है। केरल में 41 लाख परिवार योजना के पात्र हैं, इनमें संक्रमित हुए लोगों के इलाज पर 181 करोड़ रुपए खर्च हुए। वहीं, 1.08 करोड़ पात्र परिवार वाले मध्यप्रदेश में 18,309 मरीजों का इलाज हुआ और 34.4 करोड़ रुपए खर्च हुए। सवा करोड़ पात्र वाले कर्नाटक ने डेढ़ लाख मरीजों के इलाज में 780 करोड़ रुपए खर्च किए।

करीब इतने ही कार्ड वाले उत्तर प्रदेश में केवल 875 मरीजों का इलाज हुआ और इस पर डेढ़ करोड़ रुपए खर्च हुए। सूचना के अधिकार के तहत विवेक पांडे को मिली जानकारी के मुताबिक राजस्थान और आंध्र में कार्डधारकों की संख्या लगभग एक करोड़ है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड ही इलाज पर 15 करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर पाए।

हरियाणा, झारखंड जैसे राज्यों ने 5 करोड़ रुपए भी खर्च नहीं किए। निजी अस्पताल संचालकों का आरोप है कि महामारी के दौरान निजी अस्पतालों का खर्च बढ़ा लेकिन सरकार ने रेट कार्ड में समय पर सुधार नहीं किए। केवल पंजाब ने मरीजों के इलाज के लिए भुगतान की अधिकतम सीमा 4500 प्रतिदिन से बढ़ाकर 18 हजार तक कर दी।

मध्य प्रदेश सहित दूसरे राज्यों में एक-दो महीने पहले ही दरों में कुछ सुधार हुए। निजी अस्पतालों का कहना है कि योजना तभी सफल होगी जब सरकार दरों में सुधार करे और निजी क्षेत्र 20% प्रॉफिट पर काम करें। अभी कई बड़े निजी अस्पताल 200% तक मुनाफा वसूल रहे हैं। वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष रवि वानखेडेकर कहते हैं, सरकार का ध्यान आयुष्मान कार्डधारकों की संख्या बढ़ाने पर ही है, जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर और अस्पतालों की निगरानी पर नहीं है।
उत्तर… कम इलाज के एक से बहाने

दक्षिण… बेड आरक्षित, निगरानी बढ़ाई

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