दुनिया की महाशक्ति बनने का सपना भारतीय 1990 के दशक से ही देखते आ रहे हैं। पिछली सदी के अंत में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार थी। साल 1999 में देश की GDP ग्रोथ 8% रही थी। तब भारतीयों की दुनिया में आगे बढ़ने की जो इच्छा ‘सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी’ जैसे गाने में दिखी थी, वह ‘हम हैं नए, अंदाज क्यों हो पुराना’ के साथ 21वीं शताब्दी में और स्पष्ट हो गई थी। उस दौर में कई लोगों को लगता था कि भारत 2020 तक दुनिया की प्रमुख शक्तियों में एक होगा। पूर्व भारतीय राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी ‘भारत 2020’ नाम की एक किताब लिखी थी, जिसमें भारत के स्वर्णिम भविष्य का अनुमान लगाया गया था।
पिछले 20 सालों में भारत ने सर्विस, टेलीकॉम, ई-कॉमर्स, आउटसोर्सिंग सेक्टर में काफी तरक्की की है और दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों की कतार में आया है। भारत साल 2023 में दुनिया के 20 सबसे ताकतवर देशों के सम्मेलन G20 की मेजबानी करने वाला है लेकिन, देश के महाशक्ति बनने के ख्वाब पूरी तरह सच्चाई में नहीं बदले हैं। 2020 में आई कोरोना महामारी ने भारत पर मंडराते संकट के बादलों को और गहरा दिया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का कहना है कि भारत की अर्थव्यवस्था 2020-21 में 10% तक सिकुड़ जाएगी। लेकिन, यह बुरी स्थिति ज्यादा देर नहीं रहेगी। IMF के मुताबिक ही 2021-22 में भारतीय अर्थव्यवस्था की ग्रोथ फिर से 8.8% हो जाएगी।
अमेरिका को पीछे छोड़ देगा
इतना ही नहीं PwC की रिपोर्ट द वर्ल्ड इन 2050 के मुताबिक भारत अगर अगले 30 सालों में 5% की दर से भी तरक्की करे तो यह दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था होगा और यह अमेरिका को पीछे छोड़ देगा। 2050 तक भारत की अर्थव्यवस्था, पूरी दुनिया की करीब 15% होगी।
BHU में प्रोफेसर और दक्षिण-एशिया विशेषज्ञ केशव मिश्रा कहते हैं, ‘अमेरिका की अहमियत कम होने के साथ वैश्विक व्यवस्था में एक भरोसेमंद ताकत के लिए जगह भी खाली है, भारत उस स्थान को भर सकता है।’
चीन की ग्रोथ रेट गिरी और लेबर हुआ महंगा
चीन की इकोनॉमी 1978 से अब तक 42 गुना बढ़ चुकी है। जबकि भारत में 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद से इकोनॉमी 10 गुना ही बढ़ी है। वहीं, जहां चीन में 1978 के सुधारों के बाद से अब तक औसत ग्रोथ रेट 10% रहा है। भारत में 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद औसत ग्रोथ रेट 6.3% रहा है। लेकिन, साल 2010 के बाद से चीन का ग्रोथ रेट लगातार गिरते हुए 6% पर आ गया है। इसके अलावा चीन में कम होती युवा जनसंख्या ने वहां लेबर की कीमत भी बढ़ा दी है।
प्रोफेसर केशव मिश्रा कहते हैं, ‘चीन ने 1978 में ही दूरगामी तैयारियां शुरू कर दी थीं। उसने ग्लोबलाइजेशन का सबसे ज्यादा फायदा उठाया, लेकिन कोरोना के बाद दुनिया की सोच बदली है। कई देशों को चीन से अलग रहने में ही भलाई दिख रही है। भारत के लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और पारदर्शिता जैसे मूल्य पश्चिमी देशों के साथ मेल खाते हैं। इसलिए यह देश निवेश के लिए चीन की बजाए भारत को तरजीह देंगे।’
भारत चीन से छीन सकता है सबसे अच्छे ग्रोथ इंजन का तमगा
कोरोना काल में चीन की सरकार पर प्राइवेट कंपनियों के काम-काज में हस्तक्षेप करने और उनके यूजर्स के डाटा पर नजर रखने का आरोप लगा। इससे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान से चीनी संबंध खराब हुए। ऐसी हालत में भारत बेहतर रिटर्न का वादा कर दुनिया भर के निवेशकों के लिए एक अच्छा विकल्प बन सकता है।
वेदांता में चीफ इकोनॉमिस्ट और नीति आयोग के पूर्व सलाहकार धीरज नैय्यर कहते हैं, ‘वर्तमान में भारत, चीन से दो कदम आगे निकलकर दुनिया का सबसे अच्छा ग्रोथ इंजन बन सकता है।’
निवेश जुटाने और निर्यात बढ़ाने पर करना होगा फोकस
निवेश की संभावनाओं को भांपकर भारत ने कई सुधार भी किए हैं। इंसॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड, GST, कॉरपोरेट टैक्स को नई कंपनियों के लिए 17% और अन्य सभी के लिए 25% करना, इसी दिशा में किए सुधार हैं।
धीरज नैय्यर कहते हैं, ‘निवेश जुटाने के साथ ही निर्यात को भी बढ़ावा देना होगा। भारत के लिए GDP ग्रोथ को 10% से ऊपर ले जाना सबसे जरूरी है। कहा जाता है इंवेस्टमेंट ग्रोथ लाता है, लेकिन ये दोनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं। जैसे इंवेस्टमेंट से ग्रोथ बढ़ती है, वैसे ही ग्रोथ होती है तो इंवेस्टमेंट भी आती है।’
प्राइवेट सेक्टर की भूमिका अहम रहेगी
भारत की पूर्व राजदूत मीरा शंकर कहती हैं, ‘ऐसे में भारत का जोर अगले दो दशकों तक अपने GDP ग्रोथ रेट को बढ़ाने और ज्यादा से ज्यादा नौकरियां पैदा करने पर होना चाहिए।’ धीरज नैय्यर भी मानते हैं कि अब तक GDP ग्रोथ की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी सेवा क्षेत्र पर रही है, भारत को इसे नई ऊंचाई देने के लिए मैन्युफैक्चरिंग और कृषि पर फोकस करना होगा। उनके मुताबिक इस बदलाव में प्राइवेट सेक्टर की भूमिका अहम होगी। वे कहते हैं, ‘इसके लिए इलेक्ट्रिक गाड़ियों, फुटवियर, खिलौनों आदि के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।’
बिजनेस करने के खर्च को कम करने से होगी शुरुआत
धीरज नैय्यर कहते हैं, ‘कृषि सुधार, खनन सुधार, मेडिकल शिक्षा में हुए सुधार इसी बात को ध्यान में रखने वाले दूरगामी सोच के सुधार हैं, लेकिन भारत में सामान और उसके परिवहन की लागत, रेलवे का भाड़ा, बिजली का खर्च और जमीन अधिग्रहण मुश्किल और महंगा है। इसलिए विदेशी निवेशकों को आकर्षित करना मुश्किल है।’
वे कहते हैं, ‘बिजनेस आकर्षित करने में भारत को लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और पारदर्शिता जैसे मूल्यों का फायदा तभी मिल सकेगा, जब वह निवेशक को ग्रोथ का भरोसा देगा। चीन में निवेश सिर्फ इसलिए होता है क्योंकि वह निवेशकों को डबल डिजिट ग्रोथ का भरोसा देता है। भारत में भी लागत घटा कर ऐसा किया जा सकता है।’
लेकिन महाशक्ति बनने के लिए भारत का आर्थिक तौर पर ही मजबूत रहना काफी नहीं होगा, उसे अपनी सैन्य शक्ति पर भी ध्यान देना होगा।
पहले से ही बड़ी सैन्य शक्ति भारत
सैन्य शक्ति की बात करें तो ग्लोबल फायर पॉवर के अनुसार सैन्य शक्ति इंडेक्स में भारत चौथे स्थान पर है। पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमश: अमेरिका, रूस और चीन हैं। इसके अलावा भारत अगले दो साल तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य भी रहेगा।
भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सबसे ताकतवर मुल्कों में एक है। इस इलाके के देश, दुनिया की कुल GDP के 60% के लिए जिम्मेदार हैं। दुनिया में होने वाले कुल व्यापार का करीब आधा सिर्फ इसी इलाके में होता है। भारतीय नौसेना का यहां अहम रोल होता है।
प्रो. केशव मिश्रा कहते हैं, ‘अमेरिका, फ्रांस और इटली जैसे देशों ने रक्षा क्षेत्र में भारत के साथ खड़े रहने की जो प्रतिबद्धता दिखाई है, उसने भारत को और मजबूती दी है। यही वजह है कि चीन जैसा मिलिट्री में एडवांस देश पूर्वी लद्दाख बॉर्डर पर गहमागहमी के बाद भी भारत से सीधी टक्कर से बचता रहा।’
शिक्षा-स्वास्थ्य और साक्षरता सरकारी मदद के बिना संभव नहीं
बिजनेस और सैन्य शक्ति में अच्छी संभावनाओं के बावजूद भारत जन स्वास्थ्य, शिक्षा और साक्षरता में उतनी तेजी से बढ़ोतरी नहीं कर सका है। भारत में प्रति व्यक्ति आय चीन के मुकाबले 5 गुना कम है।
JNU में प्रोफेसर और अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा भारत की महाशक्ति बनने की आकांक्षा में सरकार की नीतियों को भी बाधा बताते हैं। वे कहते हैं, ‘पिछले 5-6 सालों से हमारी ग्रोथ रेट कम हो रही थी, कोरोना महामारी ने इसे और बुरी स्थिति में ला दिया है। इससे पैदा हुए आर्थिक संकट से निपटने के लिए सरकार के तरीके बुरे रहे, जिनसे न सिर्फ MSME को जबरदस्त नुकसान हुआ, बल्कि बेरोजगारी भी 45 सालों के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है। ऐसे में बिजनेस और लोगों को सीधे आर्थिक प्रोत्साहन के बिना GDP ग्रोथ को पटरी पर लाना संभव नहीं हो सकता।’