सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल विधानसभा से भेजे गए विधेयक पर सहमति रोकने के बाद यह नहीं कह सकते कि वह इसे राष्ट्रपति के पास भेज देंगे। शीर्ष अदालत ने कहा, राज्यपाल के पास ऐसा करने का प्रावधान नहीं है। वहीं, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि यह खुला प्रश्न है, इसका परीक्षण होना चाहिए।
सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने अटॉर्नी जनरल (एजी) से कहा कि बहुत-सी चीजें हैं, जो तमिलनाडु के सीएम व राज्यपाल के बीच हल होनी चाहिए। पीठ ने कहा, अगर राज्यपाल सीएम से बात करते हैं और विधेयकों के निपटारे पर गतिरोध सुलझाते हैं तो हम सराहना करेंगे।
चौथे विकल्प के प्रावधान पर दोबारा विचार कर सकती है कोर्ट
तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी व पी विल्सन ने बताया, राज्यपाल ने नए निर्णय में कहा है कि विधानसभा से दोबारा अधिनियमित विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। इस पर पीठ ने कहा, संविधान के अनुच्छेद 200 के मूल भाग के तहत राज्यपाल के पास तीन विकल्प हैं, वह सहमति दे सकते हैं, रोक सकते हैं या उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर सकते हैं। सीजेआई ने कहा, राज्यपाल को इनमें से एक विकल्प का पालन करना होगा। प्रावधान उन्हें चौथा विकल्प नहीं देता। एजी ने कहा कि इस पहलू पर उनका थोड़ा मतभेद है। एजी ने कहा, कोर्ट चौथे विकल्प के प्रावधान पर दोबारा विचार कर सकती है।
राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों में अंतर
पीठ ने यह भी कहा, राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों में भी अंतर है। राष्ट्रपति निर्वाचित पद धारण करते हैं, इसलिए संविधान में उन्हें अधिक व्यापक शक्तियां मिली हैं। केंद्र के नामित व्यक्ति के रूप में राज्यपाल को अनुच्छेद 200 के मूल भाग में दिए तीन विकल्पों में से एक का उपयोग करना चाहिए। पीठ अब मामले पर अगले सप्ताह विचार करेगी।