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भाजपा और कांग्रेस को जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश ,हरल्लों को टिकट नहीं

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मिशन 2023 के लिए बनाया टिकट वितरण का फामूर्ला
-उम्मीदवार को पार्टी के सर्वे पर उतरना होगा खरा

भोपाल। 15 साल बाद 2018 में सत्ता का स्वाद चखने के बाद कांग्रेस अब हर हाल में 2023 में सत्ता में वापसी करना चाहती है। इसके लिए पार्टी ने फार्मूला बनाया है की इस बार केवल जिताऊ नेताओं को ही टिकट दिया जाएगा। पार्टी केवल उन्हीं उम्मीदवारों को टिकट देगी जो पीसीसी चीफ कमलनाथ के सर्वे पर खरे उतरंगे। यानी इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस वरिष्ठता और अनुभव नहीं बल्कि जीत की गारंटी पर ही टिकट देगी।  पार्टी ने यह भी तय किया है कि हारे प्रत्याशियों को टिकट नहीं दी जाएगी। वहीं भाजपा ने अपनी रणनीति में साफ कर दिया है कि  चुनावों में पार्टी अब नए चेहरों को सामने लाने का मन बना चुकी है। पार्टी इसके लिए प्रमुख शहरों में बाकायदा सर्वे करा चुकी हैं और टिकट वितरण का मुख्य आधार भी यही सर्वे ही होगा।
गौरतलब है कि एक वर्ष बाद मप्र में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसलिए भाजपा और कांग्रेस ने अभी से चुनावी मोड में हैं। इसके तहत विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण को लेकर भाजपा और कांग्रेस ने अपनी गाइडलाइन तय कर रही हैं। भाजपा उम्रदराज और कई बार चुनाव जीत चुके नेताओं से पल्ला झाड़ेगी।  इसी तरह कांग्रेस हारे हुए चेहरों को प्रत्याशी नहीं बनाएगी।  पार्टी ऐसी 100 सीटों पर युवा और नए  प्रत्याशियों की तलाश कर रही है।  इसके पीछे दोनों पार्टियों के अपने अध्ययन और अनुभव है। आगामी चुनाव भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण है। वह ज्यादातर सीटों पर नए चेहरों को मौका देगी। वहीं, कांग्रेस ने तय किया है कि जिन सीटों पर पार्टी को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है, वहां पहले और नए प्रत्याशी घोषित कर दिए जाएंगे।
हरल्लों को टिकट नहीं देगी कांग्रेस
उधर, कांग्रेस ने रणनीति बनाई है की इस बार चुनाव हारने वाले उम्मीदवारों को किसी भी कीमत  पर टिकट नहीं दिया जाएगा।  पार्टी 100 सीटों पर युवा प्रत्याशियों की तलाश कर रही है। पिछले चुनाव में 230 सदस्यीय विधानसभा में 84 प्रत्याशी पहली बार चुनाव जीतकर आए थे। इनमें कांग्रेस के 50 और भाजपा के 28 थे। इसे देखते हुए कांग्रेस ने तय किया है कि चुनाव में नए लोगों को मौका दिया जाएगा। इसके लिए जिला प्रभारी और सह प्रभारी संभावित प्रत्याशियों की सूची तैयार करके प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ को देंगे। इसके आधार पर सर्वे होगा और उसमें नाम आने पर वरिष्ठ नेताओं से विचार-विमर्श कर नाम तय होगा। संगठन की ओर से प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया प्रारंभ होने के साथ ही सहयोगी संगठन भी तैयारियों में जुट गए हैं। कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव, इसके बाद हुए उपचुनाव और फिर नगरीय निकाय चुनाव में नए चेहरों पर दांव लगाया था। इसके परिणाम अच्छे रहे। नगरीय निकाय चुनाव में भी नए चेहरों को मौका दिया और पांच महापौर चुने गए। अब इसी फार्मेूले को आगामी भी रखा जाएगा। विधानसभा चुनाव में और विस्तार देने की कार्ययोजना बनाई गई है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ ने पार्टी पदाधिकारियों और विधायकों को भी साफ कर दिया है कि प्रत्याशी बनाने का आधार कार्यकर्ताओं की पसंद, सर्वे स्थिति और मतदान केंद्र पर तैयारी होगा। दो या तीन चुनाव लगातार हारने वालों को टिकट नहीं दिया जाएगा और सौ सीटों पर युवाओं को मौका मिलेगा। युका अध्यक्ष डॉ. विक्रांत भूरिया ने कहा कि जिन कार्यकर्ताओं की मतदान केंद्र स्तर पर अच्छी तैयारी होगी, उनका नाम प्रस्तावित किया जाएगा। प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा का कहना है कि आगामी विधानसभा चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए पार्टी के द्वारा हर संभव कदम उठाया जा रहा है। पार्टी की नीति हमेशा युवाओं को आगे करने की रही है।
भाजपा में दिखेगी चौथी पीढ़ी का दम
2018 के चुनाव परिणाम से सबक लेते हुए भाजपा 2023 में पीढ़ी परिवर्तन के मूड में है। यानी आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा चौथी पीढ़ी पर दांव लगाने की तैयारी कर रही है।  यानी लंबे अनुभव और नए जोश में संतुलन के साथ मिशन 2023 में उतरने को तैयार भाजपा अपने कई दिग्गजों को अधिक उम्र के पैमाने पर मैदान से बाहर करने पर मंथन कर रही है। 70 के पार, चार से पांच बार विधायक या दीर्घ राजनीतिक सक्रियता जैसे बिंदुओं को देखते हुए उम्रदराज नेताओं की जगह नए चेहरों को मौका दिया जा सकता है।  दरअसल, 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बाबूलाल गौर, सरताज सिंह, रामकृष्ण कुसमरिया जैसे दिग्गज नेताओं के टिकट उम्र के कारण काटे थे। परिणाम तब भले ही पार्टी को सत्ता तक नहीं पहुंचा सके थे, लेकिन कई नए चेहरों को मौका मिलने से पार्टी ने महसूस किया कि आशा के अनुरूप युवाओं का पार्टी के प्रति रुझान बढ़ा। इसे जारी रखने की मंशा से भाजपा संगठन में पीढ़ी परिवर्तन के दौर को जारी रखने के पक्ष में है। यही नहीं विधानसभा क्षेत्रों के स्तर पर उतरकर युवाओं को मौका देने की संभावना टटोली जा रही हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि निकाय चुनावों में पार्टी ने नए चेहरों पर दांव खेला, जिसमें सफलता मिली है। इसे विधानसभा चुनाव के लिए शुभ संकेत माना जा रहा है।
डेढ़ करोड़ मतदाताओं पर नजर
प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस की नजर प्रदेश के करीब डेढ़ करोड़ मतदाताओं पर है। इस वर्ग को साधने के लिए दोनों पार्टियां युवाओं को टिकट देने की रणनीति पर काम कर रही हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में 20-29 साल आयु वर्ग के एक करोड़ 37 लाख 83 हजार मतदाता थे। इनमें से 18-19 साल आयु वर्ग के मतदाताओं की संख्या 23 लाख थी। प्रदेश में कुल मतदाता पांच करोड़ 66 लाख थे।  इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी युवाओं ने खासी भागीदारी की थी। भाजपा का आकलन है कि युवा मतदाताओं को जोड़ने  के लिए पार्टी में युवाओं की भागीदारी बढ़ानी होगी। मध्य प्रदेश भाजपा के प्रदेश मंत्री रजनीश अग्रवाल का कहना है कि भाजपा में पीढ़ी परिवर्तन स्वाभाविक प्रक्रिया है। भाजपा कार्यकर्ता आधारित दल है, किसी एक परिवार के आधार पर चलने वाली पार्टी नहीं है। नए नेतृत्व को उभारना लोकतंत्र की मजबूती के लिए हमारे नेतृत्व का राजनीतिक कर्तव्य भी है।
युवाओं को टिकट मार्गदर्शन करेंगे बुजुर्ग नेता
गौरतलब है कि उदयपुर के चिंतन शिविर में कांग्रेस में बड़े बदलाव को लेकर सिफारिशों पर मुहर लगाई गई थी। इसके तहत अब अगले विधानसभा चुनावों में कई बुजुर्ग नेताओं के टिकट कटने तय हैं। युवाओं को संगठन से लेकर चुनाव टिकट वितरण में प्रायोरिटी मिलेगी।  चुनावों में 50 प्रतिशत टिकट 50 साल से कम उम्र के नेताओं को मिलेंगे। युवाओं से जुड़े हुए समूह की इन सिफारिशों को लागू करने पर सभी ने सहमति जताई है। बुजुर्ग नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में भेजने की तैयारी है। कांग्रेस इसका प्रयोग मप्र में करने की तैयारी कर रही है। साथ ही एक परिवार से एक ही टिकट देने का प्रावधान लागू होगा, लेकिन अगर एक परिवार के किसी दूसरे नेता ने संगठन में पांच साल काम किया है तो उसे टिकट मिल सकेगा। अगर किसी नेता का बेटा पांच साल से संगठन में एक्टिव है तो परिवार से दूसरा टिकट मिल सकेगा। यह प्रावधान लागू करने से गांधी परिवार के अलावा कई बड़े नेताओं के परिवारों को दो टिकट लेने में दिक्कत नहीं होगी।

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