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लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी भाजपा, कर्नाटक प्रदेश अध्‍यक्ष का पद विजयेंद्र को सौंपा

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नई दिल्‍ली: भारतीय जनता पार्टी (BJP) 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है। चुनाव से पहले वह सबकुछ दुरुस्‍त कर लेना चाहती है। यही कारण है कि उसने कई राज्‍यों में प्रदेश अध्‍यक्ष के चेहरे बदले हैं। अब ऐसा ही एक और बदलाव कर्नाटक में होने जा रहा है।


पहली बार विधायक बने बीवाई विजयेंद्र 15 नवंबर को बीजेपी कर्नाटक इकाई के अध्यक्ष का पद संभालेंगे। विजयेंद्र बीजेपी के दिग्गज नेता बीएस येदियुरप्पा के छोटे बेटे हैं। पार्टी ने 48 वर्षीय नेता की लोकप्रियता दिखाने के लिए अगले दिन बेंगलुरु पैलेस में कार्यकर्ता रैली का आयोजन किया है। विजयेंद्र को कांग्रेस के डीके शिवकुमार के मजबूत प्रतिद्वंद्वी के तौर पर देखा जाता है। इसके पहले जुलाई में बीजेपी ने झारखंड में पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी को प्रदेश पार्टी प्रमुख की भूमिका सौंपी थी। इसी तरह का बदलाव बीजेपी बिहार में भी कर चुकी है। मार्च में केंद्रीय नेतृत्‍व ने सम्राट चौधरी को बिहार बीजेपी की कमान सौंपी थी। प्रदेश अध्‍यक्ष की जिम्‍मेदारी सौंपने में बीजेपी ने कई चीजों का ध्‍यान रखा है। इसमें जातिगत समीकरण अव्‍वल है।

बीजेपी ने व‍िजयेंद्र को क्‍यों चुना?
विजयेंद्र को कर्नाटक बीजेपी चीफ बनाना बीजेपी की 2024 लोकसभा चुनाव की रणनीति का हिस्‍सा है। पार्टी में कई लोगों का मानना है कि मई में हुए विधानसभा चुनाव में उसका 104 सीटों से घटकर 66 सीटों पर आने की बड़ी वजह थी। कई लिंगायत मतदाता दो साल पहले येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाने के तरीके से नाराज थे। दूसरी ओर वोक्कालिगाओं ने शिवकुमार के सीएम बनने की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए कांग्रेस को वोट दिया। उन्होंने इस प्रक्रिया में जेडीएस को छोड़ दिया था। कर्नाटक में वोक्कालिगा और लिंगायत दो प्रमुख समुदाय हैं। येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय का बड़ा चेहरा हैं। येदियुरप्पा के बेटे की राज्य इकाई के प्रमुख के तौर पर वापसी और जेडीएस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन के साथ बीजेपी को उम्मीद है कि वह उन मतदाताओं को लुभाने में सफल होगी जो उससे अलग हो गए थे। इस तरह वह ज्‍यादातर लोकसभा सीटें बरकरार रख सकेगी। इससे कांग्रेस की बढ़त सीमित रखने में मदद मिलेगी। विजयेंद्र और शिवकुमार दोनों ने चुनाव जीतने में अपने कौशल का प्रदर्शन किया है। 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने 25 सीटें जीती थीं। कांग्रेस, जेडीएस और उसके समर्थन वाले निर्दलीय के खाते में एक-एक सीट गई थी।

ब‍िहार-झारखंड में भी हो चुका है फेरबदल
बीजेपी ये फेरबदल अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए कर रही है। फेरबदल करने में उसके फोकस में चुनावी समीकरण हैं। इस साल के शुरू में बीजेपी ने बिहार में सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्‍यक्ष की कमान सौंपी थी। ऐसा करने की वजह हैं। पहली वजह उनका कोइरी जाति से आना और दूसरी नौजवान होना है। बीजेपी उनको सीएम के तौर पर तेजस्वी के खिलाफ प्रोजेक्ट करना चाहती है। उनकी उम्र और जाति दोनों उनके साथ हैं। ओबीसी वोट बैंक में यादवों के बाद सबसे ज्यादा संख्या कुर्मी-कोइरी की है। यादवों की आबादी लगभग 15 फीसदी है तो कुर्मी-कोइरी की करीब सात फीसदी हैं। आरजेडी के यादव वोट बैंक का मुकाबला करने के लिए कुर्मी-कोइरी वोट बैंक को साधने की जरूरत होगी। सम्राट को बीजेपी में बड़ी जिम्‍मेदारी मिलने की यह बड़ी वजह है।

आद‍िवासी वोटरों को साधने के ल‍िए बाबूलाल मरांडी को सौंपी कमान
ऐसा ही फेरबदल बीजेपी ने झारखंड में किया। उसने जुलाई में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को झारखंड प्रदेश अध्‍यक्ष की जिम्‍मेदारी दी। बाबूलाल मरांडी मौजूदा हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। वह सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते। 2006 में मरांडी ने बीजेपी से अलग होकर अपनी पार्टी बना ली थी। लेकिन, 14 साल बाद 2020 में वह दोबारा बीजेपी में शामिल हो गए थे। बाबूलाल मरांडी आदिवासी समुदाय से ताल्‍लुक रखते हैं। इस समुदाय में उनकी तगड़ी पकड़ है। राज्य में सबसे बड़ी आबादी आदिवासियों की है। बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बना बीजेपी आदिवासी वोटों को साधना चाहती है।

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