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भाजपा ने लोकसभा चुनाव से पहले हिला दी इंडिया गठबंधन की नींव

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भाजपा ने राज्यसभा चुनाव 2024 में समाजवादी पार्टी से विधानसभा चुनाव 2022 का हिसाब बराबर कर लिया है। 2022 में विधानसभा चुनाव से पहले सपा ने भाजपा को झटका देते हुए तत्कालीन योगी सरकार के तीन मंत्रियों दस विधायकों को शामिल कराया था। भाजपा ने लोकसभा चुनाव से पहले सपा के सात विधायक झटक कर हिसाब बराबर करने की दिशा में बड़ा कदम बढ़ाया है।

राज्यसभा चुनाव में भाजपा ने आठवें प्रत्याशी के रूप में संजय सेठ को उतारने का जोखिम सधी हुई रणनीति के तहत लिया। जिस प्रकार सपा ने विधानसभा चुनाव 2022 से पहले योगी सरकार 1.0 के मंत्रियों और विधायकों को भाजपा से झटक कर माहौल बनाया था। भाजपा ने भी लोकसभा चुनाव 2024 से पहले ठीक वैसा ही सपा के साथ कर उनके सात विधायक झटक लिए हैं। चुनाव से पहले सपा के मुख्य सचेतक मनोज पांडेय, अमेठी में सपा के बड़े चेहरे राकेश प्रताप सिंह, अंबेडकर नगर में राकेश पांडेय, अयोध्या में अभय सिंह सहित अपने क्षेत्र और समाज में प्रभाव रखने वाले दो पिछड़े और चार अगड़े चेहरों का सपा को झटका देना लोकसभा चुनाव पर भी असर करेगा। सात विधायकों से राज्यसभा में भाजपा की एक सीट बढ़ी है। यूपी में चुनावी माहौल में भगवा राम लहर की गति बढ़ेगी। सूत्रों का कहना है कि आगामी लोकसभा चुनाव तक सपा और बसपा के कुछ बड़े चेहरों को पार्टी में शामिल कराया जाएगा।

एनडीए ने दिया इंडिया को कमजोर किया
लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश में दस सीटों पर हुए राज्यसभा चुनाव में एनडीए ने विपक्षी गठबंधन इंडिया को कमजोर किया है। सपा के साथ विधायकों से क्रॉस वोटिंग कराने के साथ बसपा का वोट भी हासिल कर भाजपा ने केवल आठवां प्रत्याशी नहीं जिताया है बल्कि मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी को हतोत्साहित भी किया है।

बसपा का वोट देना बड़ा संदेश
विधानसभा में बसपा के एक मात्र विधायक उमाशंकर सिंह का भाजपा को वोट देना भी बड़ा संदेश है। जानकार मानते हैं कि उमाशंकर सिंह बसपा सुप्रीमो मायावती के सबसे करीबी और विश्वसनीय हैं। उन्होंने मायावती की हरी झंडी के बिना भाजपा को वोट देने का जोखिम नहीं उठाया होगा। राजनीतिक हल्कों में चर्चा है कि यह संदेश है कि बसपा इंडिया गठबंधन में शामिल नहीं हो रही है। लोकसभा चुनाव में इसका फायदा भाजपा को ज्यादा होगा।

परीक्षा में सफल हुए सरकार और संगठन
केंद्रीय नेतृत्व ने विपरीत परिस्थिति में आठवां प्रत्याशी उतारकर प्रदेश सरकार और संगठन को उसे जिताने की जिम्मेदारी सौंपी। सपा के पास चुनाव जीतने के लिए लगभग पर्याप्त मत होने के बावजूद सरकार और संगठन ने सपा, बसपा में सेंध लगाकर लोकसभा चुनाव से पहले की परीक्षा पास की है। अब सरकार और संगठन की दूसरी परीक्षा विधान परिषद चुनाव की है। 13 सीटों पर होने वाले विधान परिषद चुनाव में सपा के पास तीन और भाजपा के पास दस सीटों के लिए पर्याप्त मत है। लोकसभा चुनाव के लिहाज से जातीय समीकरण और क्षेत्रीय संतुलन साधते हुए दस प्रत्याशी निर्धारित कर उन्हें निर्विरोध चुनाव जीतना है।

भाजपा के लिए भी चुनौती
भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए जो चक्रव्यूह रचा है उसमें पहले चरण में तो विपक्ष फंस गया है। लेकिन इसमें भाजपा के लिए भी खतरा कम नहीं हैं। पार्टी के एक पदाधिकारी ने चिंता जाहिर करते हुए बताया कि आगामी सप्ताह से टिकट वितरण शुरू हो जाएगा। ऐसे में जिन मौजूदा सांसद या हारे हुए प्रत्याशियों के टिकट काटे जाएंगे। वह चुनाव लड़ने के लिए सपा का दामन थाम सकते हैं। ऐसे में बगावत के उस खतरे को रोकना भी पार्टी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं हैं।

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