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भाजपा का जयस को कमजोर करने पर जोर

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भोपाल। मालवा-निमाड़ अंचल में भाजपा के सामने इन दिनों सबसे बड़ी चुनौति जयस की बनी हुई है। इससे निपटने के लिए अब भाजपा ने रणनीति बनाकर उसे कमजोर करने पर जोर देना शुरू कर दिया है। इसके लिए भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने पार्टी कार्यकर्ताओं को टास्क दे दिया है। इसके तहत जयस कार्यकर्ताओं को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाकर उन्हें भाजपा से जोड़ने की मुहिम चलाने का लक्ष्य दिया गया है। दरअसल बीते एक साल से प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लिए भाजपा के साथ ही कांग्रेस का अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए आदिवासियों पर पूरा ध्यान केन्द्रित है। इसके लिए तरह -तरह के प्रयास दोनों दलों द्वारा किए जा रहे हैं।  यही नहीं अब भाजपा ने उन आदिवासी युवाओं को भी टारगेट करने की योजना भी तैयार की है, जो सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं। यही वजह है कि हाल ही में शर्मा ने कार्यकर्ताओं से कहा कि जनजातीय वर्ग के शिक्षित और सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले युवाओं को पार्टी से जोड़ें। साथ ही आदिवासी बहुल गांवों में सरकार द्वारा जनजातीय वर्ग के लिए चलाई जा रहीं योजनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए भी टीम तैयार की जाए।  उल्लेखनीय है कि प्रदेश के इस अंचल में बीते एक दशक में जयस नामक आदिवासी संगठन के प्रभाव में तेजी से वृद्वि हुई है। इसकी वजह है इस वर्ग पर सरकारों द्वारा ध्यान नहीं दिया जाना। हालात यह है कि बीते आम विधानसभा चुनाव में जयस द्वारा कांग्रेस का समर्थन करने से ही कांग्रेस ने इस अंचल में भाजपा को लगभग पूरी तरह से साफ कर दिया था। अब यह आदिवासी संगठन इस बार विधानसभा चुनाव में खुद की दम पर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहा है।  यही नहीं उसके कर्ताधर्ताओं द्वारा हाल ही में सम्मेलन आयोजित कर इलाके की सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की जा चुकी है। दरअसल यह ऐसा आदिवासी संगठन है जो इस अंचल में पूरी तरह से भाजपा व कांग्रेस के चुनावी समीकरण बिगाड़ने  की हैसियत रखता है। वैसे भी मप्र में आदिवासी समाज की सहभागिता 21 फीसदी के आसपस है और यह समाज करीब 80 सीटों पर हार-जीत तय करने की स्थिति में माना जाता है। अगर बीते चुनाव की बात की जाए तो प्रदेश में इस वर्ग के लिए आरक्षित 47 विधानसभा सीटों में से बीते चुनाव में भाजपा को महज 16 सीटों पर ही जीत मिल सकी थी , जबकि कांग्रेस ने 30 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसी तरह से मालवा निमाड़ अंचल की 66 सीटों में से भाजपा को महज 27 सीटें ही मिल सकीं थी , जबकि इसके पहले 2013 के वुनाव में भाजपा को 56 सीटों पर जीत मिली थी और कांग्रेस महज 9 सीटों तक ही सिमट गई थी। यही वजह है कि अब आरक्षित सीटों को लेकर विशेष रणनीति बन रही है। झाबुआ में चल रही बैठक में इस बात पर मंथन हुआ है कि आदिवासी वर्ग के युवाओं की सक्रियता सोशल मीडिया पर बढ़ी है। जयस के साथ जुड़ रहे नौजवानों को लेकर भी चिंता जताई गई है। आदिवासी जिलों में लगातार हो रहे बड़े आंदोलनों के कारण बढ़ रहे असंतोष पर भी मंथन हुआ है। बैठक में तय हुआ है कि पढ़े लिखे शिक्षित युवाओं को केन्द्र और राज्य सरकार की रोजगार और स्वरोजगार वाली योजनाओं से लाभान्वित कराने के लिए पार्टी स्तर पर एसटी मोर्चा अभियान चलाएगा। इन्हीं शिक्षित युवाओं को भाजपा सरकार की योजनाओं के प्रतिआदिवासी वर्ग में जागरुकता बढ़ाने को लेकर चर्चा की गई।
10 जिलों में भाजपा की मुश्किल
बालाघाट जिले की छह में से तीन विधानसभाओं बैहर, लांजी, कटंगी में कांग्रेस विधायक हैं।  जबकि परसवाड़ा और बालाघाट में बीजेपी के विधायक हैं,वहीं  बारासिवनी में निर्दलीय प्रदीप जायसवाल विधायकहैं। सिवनी जिले में चार विधानसभाएं हैं। इनमें बरघाट, लखनादौन में कांग्रेस और सिवनी, केवलारी में भाजपा के विधायक हैं। बैतूल जिले की पांच से से चार विधानसभाओं मुलताई, बैतूल, घोडाडोंगरी, भैंसदेही में कांग्रेस का कग्जा है वहीं आमला में बीजेपी के जिले के एकमात्र विधायक हैं। देवास जिले की 5 में से चार विधानसभाओं देवास, हाटपिपल्या, खातेगांव, बागली एसटी पर बीजेपी का कजा है। वहीं, एकमात्र सोनकच्छ सीट कांग्रेस के पास है। बुरहानपुर जिले की नेपानगर सीट बीजेपी के पास है जबकि बुरहानपुर में निर्दलीय विधायक हैं। खरगोन जिले की छह में से पांच विधानसभाओं भीकनगांव , बड़वाह, महेश्वर, कसरावद, खरगोन में कांग्रेस के विधायक हैं जबकि भगवानपुरा में निर्दलीय का कब्जा है। बड़वानी जिले की चारों विधानसभाएं अनूसूचित जनजाति (एसटी ) वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इनमें से सेंधवा, राजपुर, पानसेमल में कांग्रेस का क ब्जा है वहीं ,बड़वानी में बीजेपी के प्रेम सिंह पटेल विधायक हैं। अलीराजपुर जिले की दोनों विधानसभाएं अजजा (एसटी )वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इनमें से अलीराजपुर में कांग्रेस के मुकेश रावत और जोबट में बीजेपी की सुलोचना रावत विधायक हैं। रतलाम जिले में एसटी के लिए आरक्षित रतलाम ग्रामीण के अलावा जावरा, आलोट और रतलाम सिटी में बीजेपी के विधायक हैं। जबकि सैलाना में कांग्रेस का कजा है।
अनूपपुर जिले की तीन में दो विधानसभाओं कोतमा,पुष्पराजगढ़ में कांग्रेस और अनूपपुर में भाजपा का कब्जा है। इनमें पुष्पराजगढ़ और अनूपपुर एसटी के लिए आरक्षित हैं। कटनी जिले की चार विधानसभाओं में से बड़वारा एसटी के लिए आरक्षित है। कटनी जिले की बड़वारा सीट पर कांग्रेस विधायक हैं तो वहीं , विजयराघवगढ़, मुड़वारा, बहोरीबंद में बीजेपी का कजा है। जबलपुर जिले में कुल 8 विधानसभाएं हैं। एसटी वर्ग के लिए आरक्षित सिहोरा के अलावा पनागर, जबलपुर कैंट और पाटन में बीजेपी के विधायक हैं। वहीं, जबलपुर पूर्व, जबलपुर उत्तर, जबलपुर पश्चिम में कांग्रेस के विधायक हैं।
यह हैं आदिवासी जिलों का राजनैतिक गणित
प्रदेश के छिंदवाड़ा, झाबुआ, डिंडोरी जिलों की सभी सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। इसके अलावा मंडला, बालाघाट, बैतूल, खरगोन, बड़वानी, धार, अनूपपुर में आधी से ज्यादा विधानसभाओं में कांग्रेस के विधायक हैं। इन जिलों को लेकर बीजेपी विशेष रणनीति बना रही है। एसटी मोर्चे की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में आदिवासी वर्ग की उपजातियों के मुख्य लोगों को लोगों को बीजेपी से जोड़ने  को लेकर भी मंथन किया गया। बीजेपी को प्रदेश के आदिवासी बहुल 16 जिलों में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
जयस का बढ़ता प्रभाव
हाल ही में जयस द्वारा ग्रामीण इलाकों पर फोकस करते हुए पंचायत चुनाव में अपने समर्थकों को मैदान में उतारा गया था। जयस का दावा है कि इन चुनावों में उसके 864 सरपंच, 97 जनपद सदस्य और 25 जिला पंचायत सदस्य जीते हैं। अभी जयस नेता हीरा लाल अलावा कांग्रेस के टिकट पर विधायक भी हैं।  हालांकि, बीजेपी जयस को कांग्रेस की बी टीम बताकर उसके प्रभाव को खत्म करने की मुहिम में जुटी है।

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