अग्नि आलोक

ब्रेकिंग समाचार – लोकतंत्र का रण: नहीं दिखंगे जेटली, सुषमा, अहमद पटेल, मुलायम, पासवान जैसे दिग्गज,वरिष्ठ नागरिकों की रियायत समाप्त कर रेलवे ने कमाए 5,800 करोड़,कोरोना रोधी टीके  खुराक लेने वालों में कमजोर पड़ रही हर्ड इम्युनिटी

Share

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आबकारी नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उनकी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की हिरासत अवधि पूरी होने के बाद सोमवार को कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट ने उन्हें 15 दिन के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया।मेरी सरकार ने मेरे परिवारजन की आकांक्षाओं को दी नई उड़ान : मोदी,रिलायंस इंडस्ट्रीज ने पिछले 10 साल में 125 अरब डॉलर का निवेश किया: रिपोर्ट,कांग्रेस को 1,745 करोड़ रुपये की टैक्स अदायगी का नया नोटिस मिला उधर मार्च में छप्‍परफाड़ जीएसटी कलेक्‍शन हुआ है। यह सालाना आधार पर 11.5 फीसदी बढ़कर 1.78 लाख करोड़ रुपये हो गया।

इस बार के आम चुनाव में खास बात यह है कि विभिन्न दलों में रणनीति बनाने वाली टीम करीब-करीब पूरी तरह से बदल गई है। कई कद्दावर नेताओं के निधन और कुछ के सियासत से दूरी बनाने के कारण अलग-अलग सिपहसालारों की नई टीम तैयार हुई है। जाहिर तौर पर अलग-अलग दल और गठबंधन का दारोमदार नए सिपहसालारों और उनकी ओर से बनाई रणनीति पर टिकी है।

दरअसल बीते चुनाव में अपनी रणनीतियों के सहारे चुनाव को दशा और दिशा देने वाले कई सियासी दिग्गज अब इस दुनिया में नहीं हैं। अटल बिहारी वाजपेयी-लालकृष्ण आडवाणी युग से ही भाजपा के मुख्य रणनीतिकारों में रहे अरुण जेटली और ओजस्वी वक्ता सुषमा स्वराज का निधन हो गया है। कांग्रेस में भी दशकों तक रणनीति और चुनाव प्रबंधन की कमान संभालने वाले अहमद पटेल, मोतीलाल वोरा भी अब नहीं हंै। वहीं, एके एंटनी ने सियासत से दूरी बना ली है। दूसरे कई दलों में भी यही स्थिति है। सपा के सर्वेसर्वा मुलायम सिंह यादव, रालोद के संस्थापक चौधरी अजित सिंह और देश के सबसे कद्दावर दलित चेहरा रामविलास पासवान के नहीं रहने से इन दलों में भी रणनीति बनाने का जिम्मा नए हाथों में है। कभी जदयू की रणनीति संभालने वाले आरसीपी सिंह की जगह अब केसी त्यागी हैं, तो तृणमूल कांग्रेस रणनीति के मामले में अब सीएम ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी पर निर्भर है।

कांग्रेस : वेणुगोपाल सुरजेवाला, रमेश, हुड्डा निभा रहे जिम्मेदारी

कांग्रेस की रणनीतिक टीम में भी आमूलचूल बदलाव हुआ है। दशकों बाद पार्टी में गांधी परिवार के इतर अनुसूचित जाति वर्ग के मल्लिकार्जुन खरगे अध्यक्ष हैं। नई रणनीतिक टीम में पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल, जयराम रमेश, रणदीप सिंह सुरजेवाला, दीपेंद्र हुड्डा, गौरव गोगोई, भूपेश बघेल और अशोक गहलोत हैं। कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार चुनावी रणनीति के साथ प्रबंधन की कमान भी संभाल रहे हैं।

राजद : लालू सलाहकार तो तेजस्वी यादव मुख्य रणनीतिकार
इस चुनाव में बिहार के डिप्टी सीएम रहे राजद नेता तेजस्वी यादव न सिर्फ अपनी पार्टी, बल्कि राज्य में विपक्षी गठबंधन के भी मुख्य रणनीतिकार हैं। आक्रामक प्रचार और भाषण देने वाली उनकी छवि पर सहयोगी दलों को पूरा भरोसा है। फिलहाल राजद के सर्वेसर्वा रहे लालू प्रसाद यादव सलाहकार की भूमिका में हैं।

सपा : अखिलेश को मदद कर रहे शिवपाल और रामगोपाल
बीते चुनाव के मुकाबले समाजवादी पार्टी की रणनीतिक टीम में भी अहम बदलाव हुआ है। खासकर मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद रणनीति का जिम्मा पूर्व सीएम अखिलेश यादव के पास है। वहीं, नाराजगी और गिले शिकवे दूर होने के बाद रणनीति बनाने में शिवपाल यादव के साथ प्रो. रामगोपाल यादव मदद कर रहे हैं।

भाजपा : शाह की अगुवाई में प्रधान ठाकुर और हिमंता प्रमुख चेहरे
भाजपा में वैसे तो गृहमंत्री अमित शाह 2014 से ही मुख्य रणनीतिकारों में शामिल हैं, मगर दिवंगत अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, अनंत कुमार, मनोहर परिकर के बाद अब रणनीति का सारा दारोमदार उन्हीं के कंधों पर है। उनकी अगुवाई वाली रणनीतिकारों की नई टीम में महासचिव सुनील बंसल, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, अनुराग ठाकुर, अश्विनी वैष्णव, भूपेंद्र यादव, असम के सीएम हिमंता बिस्व सरमा प्रमुख चेहरे हैं।

रालोद : अब जयंत ही सर्वेसर्वा
चौधरी अजित सिंह के निधन के बाद रालोद में अब उनके पुत्र जयंत चौधरी ही सर्वेसर्वा हैं। पार्टी के इकलौते रणनीतिकार ने हाल ही में विपक्षी गठबंधन से किनारा कर एनडीए से नाता जोड़ा है। बीते दो चुनाव से सूखा झेल रही उनकी पार्टी को नए गठबंधन के साथ खाता खुलने की उम्मीद है।

लोजपा : चिराग ही संभालेंगे विरासत
राजनीति में दलितों के कद्दावर चेहरा रहे रामविलास पासवान के निधन के बाद उनकी पार्टी दो हिस्से में टूटी। पुत्र चिराग और भाई पशुपति ने अलग-अलग राह ली। 2014 में लोजपा को राजग में लाने के लिए अपने पिता रामविलास को राजी करने वाले चिराग के पास अब पिता की विरासत और पार्टी संभालने की जिम्मेदारी है। उन्हें पहली सफलता तब मिली, जब भाजपा ने गठबंधन के लिए चिराग को पशुपति पर तरजीह दी। अब चिराग रणनीति का तानाबाना बुन रहे हैं।

कोरोना के नए स्वरूपों पर कमजोर पड़ रही हर्ड इम्युनिटी, आईसीएमआर ने जांच में किया खुलासा

कोरोना रोधी टीके की दो या तीन खुराक लेने वालों में छह माह बाद एंटीबॉडी यानी प्रतिरक्षा में गिरावट आ रही है। ऐसे लोग कोरोना के नए स्वरूपों का सामना करने में कमजोर हो सकते हैं और इनके संक्रमित होने की आशंका बढ़ सकती है। कोरोना के नए स्वरूपों से बचाव में यह पूरी तरह असरदार नहीं है। इनके अलावा, मौजूदा टीका केवल वुहान स्वरूप के खिलाफ लंबे समय तक सुरक्षा देने में सफल हैं लेकिन ओमिक्रॉन वंश से जुड़े वायरस के सभी स्वरूपों पर टीका का असर कम होने लगता है।शोधकर्ताओं ने कहा है कि भारत में मौजूदा टीका के अलावा कोरोना के नए स्वरूपों को ध्यान में  रखते हुए भी टीका विकसित होने चाहिए ताकि लोगों को पर्याप्त एंटीबॉडी बनाए रखने में मदद हो सके। 

नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के 11 क्षेत्रीय संस्थानों ने मिलकर दो या तीन खुराक लेने वाले लोगों की जांच में यह खुलासा किया है। इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईजेएमआर) में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कोविशील्ड और कोवैक्सिन की दो खुराक लेने वाले कुल 88 लोगों के रक्त नमूने की जांच की है। इसी तरह कोविशील्ड और कोवैक्सिन की तीन खुराक लेने वाले 102 लोगों की छह माह बाद रक्त जांच में एंटीबॉडी का स्तर नापा। इसमें पता चला कि लोगों की एंटीबॉडी वुहान स्वरूप यानी बी.1 से बचाव में पूरी तरह सक्षम हैं लेकिन ओमिक्रॉन की वंशावली से जुड़े स्वरूपों पर यह ज्यादा दिन तक असरदार नहीं है।

उदाहरण के तौर पर ओमिक्रॉन के उप स्वरूप बीए 5.2 पर मौजूदा टीका का असर छह माह बाद पांच से छह गुना तक कम हो रहा है। बीएफ.7 उप स्वरूप पर यह असर 11 से 12 और बीक्यू.1 उप स्वरूप पर यह 12 गुना कम है। इतना ही नहीं, जिन लोगों ने कोरोना टीका की दो या तीन खुराक ली हैं उनमें छह माह बाद एंटीबॉडी का स्तर इतना कम हो रहा है कि वह एक्सबीबी.1 स्वरूप से संक्रमित होते हैं तो उनके फिर से संक्रमित होने की आशंका काफी बढ़ जाती है।

नए स्वरूपों के अनुरूप विकसित हो टीका
शोधकर्ताओं ने कहा है कि भारत में मौजूदा टीका के अलावा कोरोना के नए स्वरूपों को ध्यान में  रखते हुए भी टीका विकसित होने चाहिए ताकि लोगों को पर्याप्त एंटीबॉडी बनाए रखने में मदद हो सके। अभी तक वुहान स्वरूप के आधार पर टीका तैयार हुए हैं और इनकी एंटीबॉडी अधिकतम छह महीने तक ही टिक पा रही हैं। भारत में अभी भी ऐसे कई मामले हैं जो टीका लेने के बाद भी संक्रमण की चपेट में आए हैं। हालांकि इनमें एंटीबॉडी मौजूद रहने से वायरस की गंभीरता और जानलेवा स्थिति में सुधार जरूर आया है।

1991 के बाद केवल एक बार कांग्रेस लगा सकी सीटों का दोहरा शतक, 1984 का रिकॉर्ड आज तक न टूटा

श की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस आज उस दौर से गुजर रही है, जिस दौर से शायद ही भारत में कभी कोई पार्टी शीर्ष पर जाकर गुजरी हो। हालात ये हैं कि 1991 के बाद केवल 2009 के लोकसभा चुनाव में ही यह पार्टी 200 सीटों का आंकड़ा छू पाई। इस बार भी उसे इस आंकड़े तक पहुंचने के लिए किसी चमत्कार की  ही उम्मीद करनी होगी।निर्वाचन आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 1951-52 में पहले लोकसभा चुनाव में लोकप्रियता के शिखर पर सवार कांग्रेस को 364 सीटें मिलीं थीं। पार्टी को कुल 44.99 प्रतिशत वोट मिले थे। 

निर्वाचन आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 1951-52 में पहले लोकसभा चुनाव में लोकप्रियता के शिखर पर सवार कांग्रेस को 364 सीटें मिलीं थीं। पार्टी को कुल 44.99 प्रतिशत वोट मिले थे। तीसरी लोकसभा के लिए 1962 में हुए चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत भी घटा और सीटें भी। वोट 44.71 प्रतिशत रह गया, जबकि सीटें 361 पर आ गईं। 1967 में पार्टी की लोकप्रियता में और गिरावट आई। वोट घटकर 40.78 प्रतिशत और सीटें 283 रह गईं। हालांकि, 1971 में फिर से वापसी की। उसका वोट बढ़कर 43.68 प्रतिशत और सीटें 352 हो गईं। इसमें सबसे ज्यादा योगदान आंध्र प्रदेश की 28, बिहार की 39, महाराष्ट्र की 42 और उत्तर प्रदेश की 73 सीटों का था।

आपातकाल के बाद गिरे औंधे मुंह

  1. 1977 पार्टी के लिए बहुत बुरा दौर था, जब उसे पहली बार केंद्र की सत्ता से महरूम होना पड़ा।
  2. देश में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया हुआ था। लोकसभा का कार्यकाल नवंबर में खत्म होने वाला था। लेकिन, अचानक 18 जनवरी को चुनाव की घोषणा कर दी गई।
  3. आपातकाल से नाराज जनता एकजुट हुई और कांग्रेस को केवल 154 सीटों पर समेट दिया। वोट प्रतिशत भी 34 फीसदी पर आ गया।
  4. 26 वर्षों में कांग्रेस के लिए यह सबसे बुरा चुनाव था। उधर, जनता पार्टी को 295 सीटें मिलीं और उसने सरकार बना ली।

1980 में चमत्कारिक वापसी               
जनता पार्टी की सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई और 1980 में मध्यावधि चुनाव कराए गए। इस चुनाव में कांग्रेस को 42.69 प्रतिशत वोट के साथ 353 सीटें मिलीं। 1984 में पार्टी इस आंकड़े को भी पार कर गई। दरअसल, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही सुरक्षा गार्डों ने हत्या कर दी। इससे देश में कांग्रेस के प्रति जबरदस्त सहानुभूति की लहर उठी।                                      

1984 का रिकॉर्ड आज तक न टूटा
सहानुभूति की लहर में कांग्रेस का वोट बढ़कर  48 प्रतिशत को भी पार कर गया। सीटें भी रिकॉर्ड 414 हो गईं। यह वह रिकॉर्ड है जो न तो कांग्रेस कभी दोहरा पाई और न ही पिछले 10 वर्षों में लोकप्रियता के शिखर पर पहुंची भाजपा इसके करीब पहुंची। भाजपा को 2014 में 282 सीटें और पिछले चुनाव में 303 सीटें मिलीं। इस बार भाजपा ने 400 के पार का नारा दिया है।

1989 से अकेले बहुमत नहीं
लोकसभा में बहुमत के लिए  272 सीटों की जरूरत होती है। आंकड़े बताते हैं कि 1984 के बाद कांग्रेस को कभी भी अकेले बहुमत नहीं मिला। 1989 में उसे 39.53 प्रतिशत वोट और 197 सीटें मिलीं। 1991 में उदारीकरण के दौर में पार्टी 36.40 फीसदी वोट और 244 सीटें हासिल कर पाई। उस समय पहली बार भाजपा को 120 सीटें मिली थीं और उसका वोट 20 प्रतिशत से ज्यादा था।

हार की हैट्रिक
कांग्रेस की स्थिति लगातार खराब होती गई, जब तक कि 2004 का चुनाव नहीं हुआ। 1996 में कांग्रेस को 140 व भाजपा को 161 सीटें मिलीं। 1998 में पार्टी ने 141 तो भाजपा ने 184 सीटें जीतीं। 1999 में भाजपा ने 182 सीटें जीत एनडीए सरकार बनाई। कांग्रेस इस बार भी 114 सीटों पर सिमट गई। उसका वोट भी 28.30 फीसदी रह गया।

सुप्रीम कोर्ट से केरल को राहत नहीं, अब संविधान पीठ करेगी मामले की सुनवाई

राज्यों के कर्ज लेने की क्षमता पर केंद्र सरकार की तरफ से सीमा तय करने के केंद्र बनाम केरल मामले की सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ करेगा।केरल की याचिका में कहा गया कि केंद्र सरकार ने वित्त आयोग की सिफारिशों के मुताबिक राज्य के हिस्सा का कर्ज नहीं दिया है। लिहाजा, कर्ज को लेकर केंद्र की तरफ से लगाई गई पाबंदियो में ढील दिए जाने का निर्देश दिया जाए।

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत व जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले में केरल को किसी भी तरह की अंतरिम राहत देने इन्कार करते हुए मामले को संविधान पीठ को सौंप दिया। केरल की तरफ से दायर याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि केंद्र सरकार को केरल पर लगाए गई उधारी सीमा प्रतिबंधों में ढील देने का निर्देश दिया जाए। हालांकि, अदालत ने मांग को खारिज करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया यह माना जाता है कि जब राज्य ज्यादा उधार ले, तो केंद्र अगले वित्तीय वर्षों में कर्ज में कटौती कर सकता है। इस स्तर पर यह मामला केंद्र के पक्ष में है।

केरल की याचिका में कहा गया कि केंद्र सरकार ने वित्त आयोग की सिफारिशों के मुताबिक राज्य के हिस्सा का कर्ज नहीं दिया है। लिहाजा, कर्ज को लेकर केंद्र की तरफ से लगाई गई पाबंदियो में ढील दिए जाने का निर्देश दिया जाए। इसके जवाब में केंद्र सरकार के महाधिवक्ता आर वेंकटरमानी ने कहा कि केरल सरकार का अपना अधिनियम कहता है कि वे अपने स्वयं के वित्तीय अनुशासन को नियंत्रित करेंगे। इससे पहले, केंद्र सरकार ने शर्तों के अधीन एकमुश्त उपाय के रूप में केरल को 5000 करोड़ देने का प्रस्ताव दिया था।

वरिष्ठ नागरिकों की रियायत समाप्त कर रेलवे ने चार वर्षों में कमाए 5,800 करोड़, RTI से खुलासा

भारतीय रेलवे ने ट्रेन किराये में वरिष्ठ नागरिकों को दी जा रही रियायत को समाप्त कर चार साल में 5,800 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई की है। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मिली जानकारी से इसका खुलासा हुआ। रेल मंत्रालय ने कोविड-19 के कारण देशव्यापी तालाबंदी की घोषणा के बाद वरिष्ठ नागरिकों को दी जाने वाली ट्रेन किराये में छूट वापस ले ली थी। रेलवे महिला यात्रियों को ट्रेन किराये में 50 प्रतिशत, पुरुष और ट्रांसजेंडर वरिष्ठ नागरिकों को 40 प्रतिशत की छूट देता था। रेलवे के नियमों के अनुसार, 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के पुरुष व ट्रांसजेंडर और 58 वर्ष और उससे अधिक उम्र की महिलाएं वरिष्ठ नागरिक मानी जाती हैं। 

इससे पूर्व, रेलवे महिला यात्रियों को ट्रेन किराये में 50 प्रतिशत, पुरुष और ट्रांसजेंडर वरिष्ठ नागरिकों को 40 प्रतिशत की छूट देता था। रेलवे के नियमों के अनुसार, 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के पुरुष व ट्रांसजेंडर और 58 वर्ष और उससे अधिक उम्र की महिलाएं वरिष्ठ नागरिक मानी जाती हैं। मध्य प्रदेश के चंद्र शेखर गौड़ की ओर से अलग-अलग समय पर आरटीआई अधिनियम के तहत दायर किए गए कई आवेदनों से खुलासा हुआ है कि 20 मार्च, 2020 से 31 जनवरी, 2024 तक रेलवे ने 5,875 करोड़ से अधिक का अतिरिक्त राजस्व कमाया।

गाजियाबाद: लोनी की झोपड़ियों में आग लगी, दमकल की गाड़ियां मौके पर मौजूद हैं।

दुर्ग में एक केमिकल फैक्ट्री में आग लगी। मौके पर दमकल की गाड़ियां मौजूद हैं।

देश में कई जगह पारा 42 डिग्री पहुंचा

देशभर में तेजी से तापमान बढ़ रहा है। मौसम विभाग ने बताया कि देश के कई राज्यों में पारा मार्च में ही 42 डिग्री तक पहुंच गया है। मध्य प्रदेश, विदर्भ और उत्तरी कर्नाटक समेत कई प्रदेशों में हीटवेव की चेतावनी जारी की गई है। लखनऊ में 39 डिग्री तापमान के साथ रविवार मार्च का सबसे गर्म दिन दर्ज किया गया।

 IMD के महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय महापात्र ने कहा, “…कल उत्तर बंगाल और असम में कुछ इलाकों में बिजली चमकने के साथ आंधी, बारिश और ओलावृष्टि हुई… हम स्थिति पर नजर रख रहे हैं और अगले 5 दिनों में असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में आंधी तूफान की गतिविधियां हो सकती हैं…”

केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, “मौसम विभाग के मुताबिक भारत के बहुत बड़े क्षेत्र में हीट वेव का असर होने वाला है…चुनाव के समय में ज्यादा गतिविधि होगी, रैली होंगी…तो ऐसे में कम से कम लोगों को नुकसान हो, इसके लिए तैयारी की गई हैं…”

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को तिहाड़ जेल लाया गया जहां उन्हें जेल नंबर 2 में रखा जाएगा। दिल्ली शराब नीति मामले में उन्हें 15 अप्रैल तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।

सुप्रिया श्रीनेत और दिलीप घोष के बयानों की चुनाव आयोग ने कि निंदा

चुनाव आयोग ने महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी के लिए भाजपा सांसद दिलीप घोष और कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत की निंदा की। आयोग ने नैतिक आचार संहिता(MCC) उल्लंघनों पर उन्हें जारी किए गए नोटिसों का जवाब मिलने के बाद अपने आदेश में कहा कि वे आश्वस्त हैं कि उन्होंने व्यक्तिगत हमला किया और इस तरह आदर्श आचार संहिता के प्रावधानों का उल्लंघन किया। उन्हें आदर्श आचार संहिता की अवधि के दौरान सार्वजनिक बयानों में सावधानी बरतने की चेतावनी दी गई है। इस बार से उनके चुनाव संबंधी संचार पर आयोग द्वारा विशेष और अतिरिक्त निगरानी रखी जाएगी।

Exit mobile version