झारखंड सरकार का कोयला रॉयल्टी का बकाया 1.36 लाख करोड़ रुपए के दावे को केंद्र सरकार ने देने से इंकार कर दिया है। मोदी सरकार ने कहा कि झारखंड का कोई कर बकाया नहीं। गौरतलब है कि बिहार के निर्दलीय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने लोकसभा में सवाल उठाया था कि- “कोयले से राजस्व के रूप में अर्जित कर में झारखंड सरकार की हिस्सेदारी 1.40 लाख करोड़ रुपए केंद्र सरकार के पास लंबित है। उसे ट्रांसफर नहीं किया जा रहा है। इसके क्या कारण हैं?”
इस पर केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने 16 दिसंबर को लिखित जवाब में कहा कि- “यह सही नहीं है। कोयले से प्राप्त 1.40 लाख करोड़ रुपए के राजस्व के रूप में अर्जित कर में झारखंड सरकार का कोई हिस्सा केंद्र सरकार के पास लंबित नहीं है। राज्य के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा रहा है।”
इस बयान के बाद झारखंड के राजनीतिक हलकों में इस मामले पर चर्चा का बाजार गर्म हो गया है वहीं राज्य व केंद्र सरकार के बीच एक बार फिर विवाद की संभावना बढ़ गई है।
बताना जरूरी हो जाता है कि झारखंड सरकार वर्षों से बकाए 1.36 लाख करोड़ रुपए की मांग केंद्र से कर रही है। अपने पिछले कार्यकाल 2022 में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तत्कालीन केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी से कहा था कि कोयला कंपनियों से राज्य सरकार को 1.36 लाख करोड़ रुपए दिलाया जाए।
इस बावत मार्च 2022 को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी को संबोधित करते हुए एक पत्र लिखा था। उस पत्र में उन्होंने कहा था कि कोयला कंपनियां झारखंड के हिस्से की कुल 1.36 लाख करोड़ रुपए बकाया रखे हुए है। कोयला मंत्री इन कंपनियों को निर्देश दें कि वह बकाए का भुगतान करे।
हेमंत सोरेन इस तरह बकाया राशि की मांग केंद्र सरकार से उसके पहले भी कई बार कर चुके हैं। उन्होंने केंद्रीय कोयला मंत्री को लिखे पत्र में बताया था कि कोल कंपनियों द्वारा राज्य में 32,802 एकड़ गैर मुमकिन भूमि (जीएम लैंड) और 6,655.70 एकड़ गैर मुमकिन जंगल झाड़ी भूमि (जीएम जेजे लैंड) का अधिग्रहण हो चुका है, लेकिन इन सरकारी भूमि का मुआवजा करीब 41,142 करोड़ का भुगतान भी नहीं हुआ है। जिसपर केवल सूद की रकम ही 60 हजार करोड़ हो गई है। कुल बकाया 1,01,142 करोड़ रुपए केवल भूमि मुआवजा मद में हो गया है।
सूत्रों के अनुसार अभी तक कोल इंडिया को कितनी जमीन दी गई, और कितना बाकी है, इसका सर्वे किया ही नहीं गया था। साल 2019 में झारखंड सरकार और कोल कंपनियों के अधिकारियों की ज्वाइंट कमेटी ने ये सर्वे किया, जिसमें पता चला कि कितनी जमीन कंपनियों के पास है और कितनी अनुपयोगी है?
चूंकि सर्वे नहीं किया गया था, इसलिए इसका टैक्स भी नहीं लिया गया था। ऐसे में ये मान सकते हैं कि सारा बकाया अभी जोड़ा गया है। चूंकि ये राज्य सरकार के हिस्से का है, इसलिए केंद्र से मांगा जा रहा है।
प्रसंग वश बता दें कि भारत में जमीन को लेकर कानून तय है। कौन कितनी तक जमीन रख सकता है, इसे लेकर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नियम बनाए गए हैं।
उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 368 के तहत 1976 में, संसद ने संविधान में एक संशोधन कर भारत की सभी भूमि को भारत सरकार की संपत्ति घोषित कर दिया। इसे “भूमि अधिग्रहण (संशोधन) अधिनियम, 1976” के रूप में जाना जाता है। इस संशोधन के बाद, भारत की सभी भूमि भारत सरकार के नाम पर रजिस्टर्ड है। हालांकि, यह ज़मीन का स्वामित्व नहीं देता है।
भारत सरकार ज़मीन का स्वामित्व केवल उन लोगों को दे सकती है जो उसे कानूनी रूप से खरीदते हैं। वहीं ज़मीन की बिक्री की प्रक्रिया राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित की जाती है।
बताना जरूरी है कि जब कोई व्यक्ति किसी जमीन का उपयोग कृषि कार्य कर रहा है और वह जमीन उसकी खतियानी होती है, तो उसके एवज में उसे मालगुजारी यानी टैक्स देना होता है और अगर किसी जमीन का इस्तेमाल व्यावसायिक कामों के लिए होता है तो उसका रेवेन्यू टैक्स देना होता है। कोल बियरिंग एक्वेजिशन एक्ट के कोल इंडिया को जमीन दी गई है। संविधान में इसे रेवेन्यू स्टेट अफेयर का मसला माना गया है। यानी जमीन का टैक्स राज्य सरकार वसूलती है।
कोल कंपनी के सूत्रों के अनुसार जो कोयला डिस्पैच किया जाता है, उसका जो बेसिक प्राइस होता है, उसका 14 परसेंट रॉयल्टी सरकार को मिलता है। कोई भी कोल कंपनी राज्य सरकार के आदेश के बिना कोयला नहीं बेच सकती है। चाहे वह कितना भी प्रोडक्शन कर लें। जबकि हर ग्रेड के कोयले का एक न्यूनतम बेसिक प्राइस कोल इंडिया तय करती है।
कोयला प्रोडक्शन करके बेचने की एक सीमा होती है। उसको एनवायरमेंट क्लियरेंस में वर्णित मात्रा कहा जाता है। किसी भी खनन वाली जगह पर यह असेसमेंट करके बताया जाता है कि वो कंपनी सालभर में 5000 टन कोयला निकालेगी। उससे ज्यादा नहीं निकाल सकती है, लेकिन टाटा स्टील ने एक बार बहुत ज्यादा निकाल दिया। मामला हाईकोर्ट में गया। हाईकोर्ट ने कहा कि जितना अधिक निकाले हैं, उसका पैसा दीजिए।
फिर मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। सुप्रीम कोर्ट में टाटा ने कहा था कि जितना अधिक निकाला है, उसकी रॉयल्टी दे चुके हैं। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपने सरकार की ओर से तय मात्रा से अधिक निकाला है। यह अवैध निकासी है। आपको पूरा पैसा देना होगा। इसके बाद तय मात्रा से जितना अधिक कोयला बेचा गया, उसका सारा पैसा टाटा को देना पड़ा। इसको कॉमन कॉज कहा गया।
चूंकि यह फैसला सुप्रीम कोर्ट का था। ऐसे में यह देशभर में लागू हुआ। इसी आदेश के आलोक में झारखंड में सब जिलों से तय मात्रा से अधिक खनन का हिसाब मांगा गया। इस तरह विभिन्न कंपनियों का 50 हजार करोड़ से अधिक बकाया झारखंड सरकार पर हो गया।
सरकार अब बकाएदार कंपनियों को यह भी कह रही है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी सालों तक भुगतान नहीं किया है, ऐसे 24 प्रतिशत सालाना ब्याज भी देना होगा। ब्याज का प्रावधान दी माइंस एंड मिनरल्स एमेंडमेंट एक्ट 2015 में किया गया है।
बताते चलें कि अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को झारखंड के 1.36 लाख करोड़ देने का आदेश दिया है। मुख्यमंत्री सोरेन ने सोशल मीडिया हैंडल एक्स के माध्यम से जानकारी देते हुए बताया था कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि झारखंड सरकार के बकाया 1.36 लाख करोड़ केंद्र सरकार दे दें। हेमंत सोरेन ने लिखा कि झारखंड सरकार लगातार केंद्र सरकार से राज्य के पैसे मांग रही थी।
हेंमत सोरेन ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा झारखंड की बकाया पैसे लौटाने के आदेश को बड़ी जीत बताया था। लेकिन अब केंद्र के रवैए ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी धूमिल कर दिया है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश बाद झारखंड में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ गई और चुनाव के ठीक पहले सितंबर माह में हेमंत ने पुनः केंद्र को पत्र लिखा था।
मुख्यमंत्री से लेकर मुख्य सचिव तक ने केंद्र से राशि भुगतान के लिए पत्र लिखा था। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विधानसभा चुनाव के पूर्व 24 सितंबर को भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था। चुनाव में इसे मुद्दा भी बनाया था। बड़े-बड़े होर्डिंग लगाकर कोयला रॉयल्टी के रूप में राज्य को कथित रूप से देय 1.36 लाख करोड़ रुपए के भुगतान की मांग की थी।
पीएम मोदी को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री ने कहा था कि कोयला कंपनियों पर हमारा 1.36 लाख करोड़ रुपए बकाया है। कानून में प्रावधानों और न्यायिक घोषणाओं के बावजूद कोयला कंपनियां भुगतान नहीं कर रही हैं ये सवाल आपके कार्यालय, वित्त मंत्रालय और नीति आयोग सहित विभिन्न मंचों पर उठाए गए हैं। लेकिन अभी तक यह 1.36 लाख करोड़ का भुगतान नहीं किया गया है। बकाया राशि का भुगतान न होने के कारण झारखंड का विकास और आवश्यक सामाजिक-आर्थिक परियोजनाएं बाधित हो रही हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास, स्वच्छ पेयजल और अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी जैसी सामाजिक क्षेत्र की विभिन्न योजनाएं धन की कमी के कारण जमीनी स्तर पर लागू नहीं हो पा रही हैं।
वहीं अब पुनः सरकार में आने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्र द्वारा झारखंड की बकाया राशि की मांग ठुकराये जाने पर अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा है कि झारखंड भाजपा के सांसदों से उम्मीद है कि वे हमारे इस जायज़ मांग को दिलवाने के लिए अपनी आवाज़ अवश्य बुलंद करेंगे। झारखंड के विकास के लिए यह राशि नितांत आवश्यक है।