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शास्त्रीय नृत्य नाटिका ‘लंका’ ने किया दर्शकों को मंत्रमुग्ध

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भरतनाट्यम के कलाकार गायत्री शर्मा एवं भद्रा सिन्हा द्वारा प्रस्तुत शास्त्रीय नृत्य नाटिका ‘लंका’ में रावण और उसकी पत्नी मंजोदरी की कहानी दर्शाई गई है। कलाकार रावण के एक स्वयंभू सर्व शक्तिशाली राजा के रूप में उभरने की कहानी प्रस्तुत करते हैं, और वहीं मंदोदरी द्वारा उसे धर्म के मार्ग पर ले जाने के बार-बार के प्रयासों के बावजूद, उसके अहंकार के परिणामस्वरूप उसके महाकाव्य के विनाश को भी दर्शाते हैं। प्रसिद्ध कुचिपुड़ी और भरतनाट्यम प्रतिपादक, डॉ जी रतीश बाबू द्वारा कोरियोग्राफ की गई नृत्य नाटिका ‘लंका’ को दिल्ली तमिल संगम में प्रस्तुत किया गया। रामायण के विभिन्न संस्करणों के साथ-साथ अन्य ग्रंथों और लोककथाओं से प्रसंगों को चित्रित करते हुए, “लंका” रावण की कहानी के अनेक पहलू टटोलता है कि किस प्रकार एक सर्व-शक्तिशाली, महाज्ञानी एवं बुद्धिमान राजा का अहंकार उसे आत्म-विनाश की ओर ले जाता है। ‘लंका’ दुर्जेय साम्राज्य की रानी मंडोदरी की भी कहानी है, जिसकी धार्मिकता एवं उच्च सोच रावण के अहंकार के सामने फीकी पड़ गई और वह अपने राज्य को बिखरने से बचाने में विफल रही।

प्रस्तुति की शुरुआत रावण की मां कैकसी से होती है जो उसे दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बनने और अपने अमीर सौतेले भाई वैश्रवण, जिसे कुबेर के नाम से भी जाना जाता है, के बराबर बनने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। रावण (भद्रा द्वारा अभिनीत) अपनी तपस्या से देवताओं से कई वरदान हासिल करने में सफल रहा, भले ही उसकी भक्ति समर्पण से रहित थी। यहां तक कि उसने ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए अपने सिर भी काट दिए, और इस प्रकार उसे मनुष्यों को छोड़कर सभी देव, दानव व जंतुओं से अविनाशी होने का वरदान मिला। वहीं, भगवान शिव ने रावण को उसके अहंकार का सबक सिखाने के लिए उसके हाथों को कैलाश पर्वत के नीचे फँसा दिया था, क्योंकि उसने कैलाश पर्वत को एक गेंद की तरह उठा लिया था। किंतु जब रावण ने अपने हाथों की नसों को खींचकर उन्हें वीणा के तारों की तरह सकुशल बजाया, तो भोलेनाथ भी उससे प्रसन्न हो गये।

कलाकार दर्शाते हैं कि कैसे रावण का पतन उसकी अपनी बहन (गायत्री द्वारा अभिनीत ) शूर्पणखा की कुटिलता से शुरू होता है, क्योंकि वह अपने पति की हत्या के लिए रावण से द्वेष रखती थी। जब राम और लक्ष्मण उसे अस्वीकार किया और सीता को मारने की उसकी कोशिश के बदले उसकी नाक काट कर उसे अपमानित किया, तो वह रावण के अंत की साजिश रचने के लिए इस उदाहरण का उपयोग करती है। रावण क्रोध से अंधा ही जाता है जब शूर्पणखा उसे अपने अपमान का बदला लेने के लिए सीता का अपहरण करने के लिए उकसाती है। 

दूसरी ओर, रावण की पत्नी (गायत्री द्वारा अभिनीत) उच्च नैतिक स्तर की महिला थी। एक समय था वह मधुरा नाम की सुन्दर अप्सरा हुआ करती थी, और पार्वती की करीबी दोस्त होने के कारण उनके निवास पर अक्सर आती जाती थी। एक बार मधुरा को शिव ने गलती से पार्वती समझ लिया, और शिव को लुभाने के लिए दोषी मान कर पार्वती ने मधुरा को 12 वर्षों तक ‘मंडूक’, एक कुएं के मेंढक के रूप में रहने का श्राप दिया। आख़िर में, ‘मंडूक’ बनी सुंदर मंडोदरी है और वीर रावण से विवाह करती है, जो उससे असीम प्रेम करता है और विश्व की हर सर्वश्रेष्ठ वस्तु उसपर न्योछावर करता है।

कलाकार दर्शाते हैं कि कैसे मंडोदरी ‘लंका’ में सीता को देखकर टूट जाती है। उसे देख कर दाव समझ जाती है कि सीता कोई और नहीं बल्कि उसकी पहली संतान है जिसे रावण ने दूर देश में जिंदा दफना दिया था, क्योंकि एक भविष्यवाणी के अनुसार वह ना केवल रावण की परंतु पूरे राक्षस वंश के विनाश का कारण होगी। मंडोदरी ने रावण से सीता को राम को लौटाने का आग्रह किया, लेकिन रावण ने उल्टा उसे समझाने की कोशिश की कि सीता का अपहरण उसने वासना के लिए नहीं किया था, बल्कि इसलिए किया कि दुनिया की सबसे सुंदर महिला भी संसार की अन्य अमूल्यवान वस्तुओं की तरह ‘लंका’ में होनी चाहिये।

युद्ध में अपने बेटे और अपने बहनोई के साथ-साथ अनगिनत सैनिकों को खोने के बाद, दुखी और मौत से घिरी मंडोदरी ने फिर से रावण से अभिमान त्यागकर राम के समक्ष आत्मसमर्पण करने का आग्रह किया। अहंकारी रावण ऐसा करने से इंकार कर देता है और अंततः उसके सबसे बड़े शत्रु- अहंकार और क्रोध के कारणवश उसका पतन हो जाता है!

इस प्रस्तुति में रावण के ‘कर्म योगी पहलू को दर्शाया गया, जो अंत समय तक अपने कर्म का पालन करता है और अंततः श्री राम के तीर के समक्ष आत्मसमर्पण करने पर स्वर्ग या ‘मोक्ष’ की प्राप्ति करता है।

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