सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने संकेत दिए हैं कि वे ईरान के साथ तनाव कम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
उन्हें ये भी उम्मीद है कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को वो ईरान के साथ रिश्ते सुधारने के लिए मना सकते हैं.ईरान के साथ सऊदी अरब के रिश्ते तनाव भरे रहे हैं.लेकिन अरब के देश अब चाहते हैं कि ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में ईरान को लेकर नरमी बरतें और इसराइल पर दबाव डाल कर गज़ा और लेबनान में चल रही उसकी सैन्य कार्रवाई ख़त्म कराएं.
ईरान और सऊदी अरब में लंबे समय से मतभेद रहे हैं. लेकिन पिछले साल चीन की मध्यस्थता में दोनों देशों के बीच समझौते के बाद सऊदी अरब का रुख़ ईरान के प्रति बदला है. सऊदी अरब चाहता है कि अमेरिका ईरान के ख़िलाफ़ अपना रुख़ नरम करे.
मंगलवार को सऊदी अरब की राजधानी रियाद में आयोजित अरब इस्लामिक समिट में वहाँ के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने ईरान पर इसराइल के मिसाइल हमले की आलोचना की है.
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस ने कहा कि ईरान की संप्रभुत्ता का सम्मान होना चाहिए.
अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने ईरान के साथ परमाणु समझौता ख़त्म कर दिया था और उस पर काफ़ी प्रतिबंध भी लगाए थे.
पिछले दिनों लेबनान में सक्रिय हिज़्बुल्लाह और हमास के प्रमुख नेताओं की इसराइली हमले में मौत के बाद इसराइल और ईरान के बीच भी तनाव काफी बढ़ गया है. दोनों ने एक दूसरे के ख़िलाफ़ मिसाइल हमले किए हैं.
ब्रिटिश अख़बार फ़ाइनैंशियल टाइम्स से अरब के एक सीनियर डिप्लोमैट ने कहा, ”ट्रंप अगर दबाव बनाते हैं कि ईरान के मामले में फ़ैसला करना होगा कि कौन उनके साथ है और कौन ईरान के साथ तो बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी. ट्रंप उन लोगों में से नहीं हैं, जिन्हें जवाब में ना पसंद है.”
यूएई के राष्ट्रपति के सलाहकार अनवर गार्गश ने सोमवार को अबू धाबी में एक कॉन्फ़्रेंस में कहा था, ”ट्रंप प्रशासन के साथ एक व्यापक दृष्टिकोण रखने की ज़रूरत है. प्रतिक्रियावादी और टुकड़े-टुकड़े वाली नीति से काम नहीं चलेगा.”
इस टिप्पणी को उस संकेत के रूप में देखा जा रहा है कि 2017 में ट्रंप के आने से सऊदी अरब और यूएई जितने सहज थे, वो सहजता अब सतर्कता में बदल गई है. अरब में भी अमेरिका की नीतियों में अस्थिरता और अलगाव को लेकर आशंकाएं बढ़ी हैं.
2018 में ट्रंप ने जब ईरान से परमाणु क़रार तोड़ा था तो सऊदी अरब और यूएई ने ख़ुशी जताई थी. ट्रंप ने परमाणु क़रार तोड़ने के बाद ईरान के ख़िलाफ़ कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे. लेकिन इस बार ईरान के ख़िलाफ़ ट्रंप जो सख़्त रुख़ अपनाना चाहते हैं, उससे सऊदी और यूएई सहमत नहीं दिख रहे हैं.
ट्रंप क्या ईरान के मामले में अरब देशों की सुनेंगे
डोनाल्ड ट्रंप ने एलिसी स्टेफेनिक को यूएन में अमेरिका का राजदूत बनाया है.
एलिसी स्टेफेनिक ने एक ट्वीट कर कहा है कि अमेरिका ईरान पर अधिकतम दबाव बनाने के अभियान के साथ तैयार है.
उन्होंने लिखा, ”पिछले काफ़ी समय से हमारे दुश्मन बाइडन-हैरिस प्रशासन की कमज़ोरी की वजह से दुस्साहसी हो गए हैं. राष्ट्रपति ट्रंप की वापसी के साथ ही शक्ति के साथ शांति हासिल करने का दौर शुरू हो गया है.’’
अरब के देश भले इसराइल के मामले में ट्रंप पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन ट्रंप पर इसका असर होता नहीं दिख रहा है.
ट्रंप ने आरकंसॉ के गवर्नर माइक हकबी को इसराइल में अमेरिका का राजदूत बनाने का ऐलान कर संकेत दे दिया है कि इसराइल को लेकर उनका क्या रुख़ हो सकता है.
ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने इसराइल को पूरा समर्थन दिया था.
ट्रंप के इस फ़ैसले से इस्लामी और अरब देशों की चिंता बढ़ सकती है, जिन्होंने दो दिन पहले सऊदी अरब की राजधानी रियाद में ग़जा और लेबनान पर इसराइली हमले रोकने की अपील की थी.
अरब और इस्लामी देश डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुनाव जीतने के ठीक बाद इस सम्मेलन का आयोजन कर अमेरिका पर दबाव बनाना चाहते हैं कि वो इसराइल को जल्द से जल्द ग़जा और लेबनान में कार्रवाई रोकने को कहें.
हकबी इसराइल के कट्टर समर्थक हैं. वो कब्जे़ वाले वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियां बसाए जाने का समर्थन करते हैं.
ये इस बात का संकेत है कि गज़ा और लेबनान में इसराइली कार्रवाई और मध्य-पूर्व में शांति बहाल करने को लेकर ट्रंप क्या कर सकते हैं.
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रूथ पर हकबी की नियुक्ति का ऐलान करते हुए लिखा,” वो (हकबी) इसराइल और इसराइल के लोगों से प्रेम करते हैं. इसराइल के लोग भी उनसे प्रेम करते हैं. माइक मध्य-पूर्व में शांति लाने के लिए बिना थके काम करेंगे.”
इसराइल समर्थक और ईसाई धर्म से ताल्लुक रखने वाले हकबी 2008 के बाद इसराइल में नियुक्त होने वाले पहले ग़ैर यहूदी अमेरिकी राजदूत होंगे.2008 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ग़ैर यहूदी जेम्स कनिंगम को इसराइल में अमेरिका का राजदूत बनाया था.
क्या इसराइल पर दबाव बनाएंगे ट्रंप
दो दिन पहले ही इसराइल के धुर दक्षिणपंथी नेता और वित्त मंत्री बेज़ालल स्मो रिच ने जनवरी 2025 में ट्रंप के सत्ता संभालने से पहले ही कब्जा किए गए वेस्ट बैंक को अपने देश में मिलाने की तैयारी शुरू करने की अपील की थी.
स्मोरिच ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, ‘’ 2025 : जुडिया और समायरा में संप्रभुता का साल. इसराइल कब्जा किए गए वेस्ट बैंक के लिए इन्हीं नामों का इस्तेमाल करता है. बाइबिल में इन नामों का ज़िक्र है.’’
सोमवार को इसराइली संसद के धुर दक्षिपंथी गुट की बैठक में स्मोरिच ने ट्रंप की चुनावी जीत का स्वागत करते हुए कहा कि उन्होंने रक्षा मंत्रालय के सेटलमेंट डायरेक्टरेट एंड सिविल ऐडमिनिस्ट्रेशन को निर्देश दिया है कि इस इलाके को इसराइल में मिलाने की ज़मीनी तैयारी शुरू कर दी जाए.
स्मोरिच ने कहा कि उन्हें कोई शक नहीं है कि अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने जो साहस और दृढ़ता का परिचय दिया था, उसी तरह वो दूसरे कार्यकाल में भी इसराइल के इस क़दम का समर्थन करेंगे.
ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में यरुशलम को इसराइल की राजधानी के तौर पर मान्यता दे दी थी और अमेरिका के दूतावास को तेल अवीव से हटा कर यहां स्थानांतरित कर दिया था.
साथ ही उन्होंने गोलान हाइट्स पर भी इसराइल के कब्ज़े को मान्यता दे दी थी. इससे इस्लामिक देश नाराज़ हो गए थे जबकि यरुशलम फ़लस्तीनियों के धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन का केंद्र है.
कब्जा वाले वेस्ट बैंक के इलाकों को इसराइल में मिलाने वाले स्मोरिच के बयान के एक दिन बाद ही ट्रंप ने माइक हकबी को इसराइल में अमेरिका का राजदूत बनाकर इरादा ज़ाहिर कर दिया. इससे ऐसा लगने लगा है इसराइल को उनका समर्थन पहले की तरह जारी रहेगा.क़तर ने वेस्ट बैंक को लेकर दिए गए इसराइली वित्त मंत्री के बयान का विरोध किया है.
क़तर के विदेश मंत्रालय ने इस बयान के ख़िलाफ़ एक बयान जारी कर कहा है, ”क़तर इसराइली वित्त मंत्री के उस बयान की कड़ी निंदा करता है, जिसमें उन्होंने कब्जा किए गए वेस्ट बैंक को मिलाने के लिए ज़रूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने का निर्देश दिया है. ये अंतरराष्ट्रीय क़ानून और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2334 का सरासर उल्लंघन है. इससे इस क्षेत्र में शांति की संभावना को गंभीर चोट पहुंच सकती है. ख़ास कर ऐसे समय में जब ग़जा में चल रहे निर्मम युद्ध के भयावह नतीजे सामने आए हैं.’’
क़तर पहले इसराइल और हमास के बीच समझौता कराने की कोशिश कर रहा था. लेकिन वो इस मध्यस्थता प्रक्रिया से खुद को अलग कर चुका है.सऊदी अरब ने विदेश मंत्रालय ने कब्जे वाले वेस्ट बैंक पर इसराइली संप्रभुता संबंधी इसराइली मंत्री के बयान की कड़ी निंदा की है.
सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि इस तरह के बयान दो देशों के समाधान वाले हल लागू करने और शांति बहाल करने की दूसरी कोशिशों को कमज़ोर करते हैं. इससे उग्रवाद बढ़ेगा और ये क्षेत्रीय अस्थिरता के लिए ख़तरनाक साबित होगा.ट्रंप के पहले कार्यकाल में अरब दुनिया बिल्कुल दूसरी स्थिति में थी लेकिन दूसरे कार्यकाल में चीज़ें तेज़ी से बदल गई हैं. ट्रंप ने पहले कार्यकाल में पहला विदेशी दौरा सऊदी अरब का किया था और संकेत दिया था कि उनकी प्राथमिकता क्या है.
लेकिन अब अरब के देश अपनी प्राथमिकता तय कर रहे हैं और ये ट्रंप की प्राथमिकता से टकरा सकती हैं.रियाद में अरब इस्लामी देशों का सम्मेलन को उसकी इसी पहल का सुबूत माना जा रहा है.