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प्रदेश में बदलाव की सम्भवनाओं पर छाए असमंजस के बादल

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 _*बेटियों के मामा भये तो बहनों के भाई भये की नही भये…कहने वाले “जगत मामा” को “भक्त प्रहलाद” नहीं भा रहे हैं। मामा की मंशा तो फिर से अपने उसी प्रिय मंत्री की ताजपोशी पर हैं, जिसे लेकर प्रदेश में हंगामा खड़ा हुआ हैं। मामा को भय है कि अगर भक्त प्रहलाद सबको भा गए तो फिर वे बदलाव की चपेट में आ जाएंगे। ” दिल्ली दरबार” बिल्कुल नही चाहेगा कि चुनावी साल में सत्ता और संगठन के शीर्ष पर पिछड़ी जातियों का नेतृत्व ही हो। ये मिशन 2023 के लिहाज से मुफ़ीद नही माना जायेगा। लिहाजा सत्ता पर किसी अगड़ी जाती के नेतृत्व की सम्भवनाओं को बल मिल जाएगा। फिलहाल तो प्रदेश में बदलाव की बयार अपने साथ असमंजस के बादल भी लेकर आई हैं।*_ 

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 *नितिनमोहन शर्मा।* 

माँ नर्मदा के अनन्य भक्त प्रहलाद पटेल, जगत मामा यानी शिवराज सिंह चौहान को भा नही रहे हैं।  शुक्रवार को पूरा दिन केंद्रीय मंत्री और प्रदेश के कद्दावर नेता प्रहलाद पटेल को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने के सन्देश दौड़ते रहें। सोशल मीडिया पर तो बधाई संदेशों की बाढ़ सी आ गई। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नही। *पार्टी का एक बड़ा धड़ा पटेल के पक्ष में है ताकि बुंदेलखंड से लेकर नर्मदा पट्टी की 120 विधानसभा सीट पर एकदम से पार्टी के पक्ष में माहौल बने। बावजूद इसके प्रदेश अब भी बदलाव की सम्भवनाओं के बीच फंसा हुआ हैं। संगठन में फेरबदल करें या सत्ता का चेहरा बदले? इस पर असमंजस के बादल छाए हुए हैं।* 

असमंजस की इसी घटाटोप के बीच एक तरफ मुख्यमंत्री ने शुक्रवार शाम दिल्ली के लिए उड़ान भरी तो संघ और संगठन के बड़े नेताओं ने राजधानी भोपाल में बैठक की। देर रात तक चली इस चिंतन बैठक में राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय शामिल होने के लिए दिल्ली से भोपाल पहुँचे। उधर *सीएम शनिवार को दिल्ली में नीति आयोग की बैठक के बाद राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल सन्तोष और अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलने की खबर हैं। सीएम की संगठन के शीर्ष नेतृत्व से होने वाली ये मुलाकात बेहद अहम रहना हैं।* इसी बैठक से प्रदेश के संभावित बदलाव की तस्वीर साफ होगी।

 *भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का कार्यकाल खत्म हुई दो माह से ज्यादा होने को आये हैं। उन्हें इस पद पर बने रहने का एक्सटेंशन लेटर भी अब तक दिल्ली दरबार ने जारी नही किया हैं। लिहाजा शर्मा बदलाव की इस बयार का ताजा शिकार माने ओर बनाये जा रहे हैं। सत्ता की भी मंशा ये ही है कि बदलाव संगठन स्तर पर ही हो। सरकार सुरक्षित रहें।* लिहाजा कल दिनभर वीडी की जगह पटेल को अध्यक्ष बना दिये जाने के सन्देश चलते रहें। जबकि दिल्ली में ऐसी कोई हलचल नही थी। वहां तो नई संसद के कारण राजदण्ड और राजधर्म के बीच दिनभर संघर्ष चलता रहा। 

 *प्रहलाद पटेल के नाम को लेकर प्रदेश भाजपा में कही कोई दिक्कत भी नही हैं। वे दिल्ली की भी पसन्द हैं। लेकिन हर बार की तरह एक बार फिर से इस मामले में “सरकार” वीटो पावर के साथ खड़ी हो गई हैं। सूत्रों की माने तो पटेल के नाम से सबसे ज्यादा दिक्कत सरकार के मुखिया को हो रही हैं। वे नही चाहते कि चुनावी साल में सरकार और संगठन, दोनो के शीर्ष पर पिछड़ा वर्ग के नेता काबिज़ रहे।* 

 *सूत्रों की माने तो सीएम को डर है कि अगर प्रहलाद पटेल को अध्यक्ष बनाया जाता है तो फिर सरकार का चेहरा भी बदलना पड़ेगा। सत्ता फिर किसी अगड़ी जाती के नेता के हवाले करना होगी। ऐसे में सीएम की मंशा है कि प्रदेश अध्यक्ष अगड़ी जाति से बनाया जाना चाहिए ताकि मिशन 2023 में समीकरण सही रहे और चुनाव मामा के चेहरे के साथ ही लड़ा जाए। हालांकि इसका फैसला तो दिल्ली दरबार को लेना है कि वे सिर्फ संगठन में ही फेरबदल करेंगे या सरकार का चेहरा भी बदलेंगे? लेकिन ” सरकार ” की पुरजोर इच्छा है कि संगठन स्तर पर राजपूत समाज से किसी नेता को आगे लाना मुफ़ीद रहेगा।* 

इसी कारण सूत्र बताते है कि सीएम दिल्ली फिर से भूपेंद्र सिंह का नाम लेकर पहुंचे हैं। साथ मे अरविंद भदौरिया का नाम भी है ताकि भूपेंद्रसिंह के नाम पर कोई अड़चन आये तो भदौरिया को आगे किया जा सके। भदौरिया भी लम्बे समय से इसी उम्मीद से बेठे हैं। बीच मे भी उनका नाम चला था। तब ” सरकार ” दिल्ली में आदिवासी कार्ड फेंक आई थी। नतीजतन आदिवासी नेतृत्व तो आया नही, भदौरिया फिर लटक गये। अब फिर वे चर्चा में हैं।

 *इस बीच खबर मिली है कि पार्टी के राज्यसभा सांसद अजय प्रताप सिंह का नाम भी सामने आया हैं। अजय प्रताप सिंह नरेंद्र सिंह तोमर के प्रदेश अध्यक्ष रहते महामंत्री की भूमिका अच्छे से निभा चुके हैं। वे प्रभात झा के कार्यकाल में भी प्रदेश महामंत्री रह चुके हैं। इन सब नामों में सहमति नही बनती है तो बतौर विकल्प नरेंद्र सिंह तोमर को भी एक बार फिर से प्रदेश अध्यक्ष की कमान सोंपी जा सकती हैं।*

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