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10 हजार से ज्यादा अर्जियों से भी नहीं डिगे सहकारी अफसर

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इंदौर

15 साल में 10 सहकारिता उपायुक्त इंदौर में आकर जा चुके हैं। इन डेढ़ दशक में विभिन्न संस्थाओं के सदस्यों ने प्लाॅट आवंटन, कब्जा दिलाने के लिए 10 हजार से ज्यादा अर्जियां लगाईं, लेकिन विभाग ने अपने स्तर पर किसी को प्लाॅट आवंटित नहीं कराया।

संचालक मंडल भंग, रिसीवर की नियुक्ति, वरीयता सूची बनाकर भेजने का काम तो हुआ, लेकिन प्लाॅट दिलाने, भूमाफिया पर कायमी के लिए हर बार प्रशासन, पुलिस को ही सहकारिता विभाग का काम करना पड़ा, जबकि विभाग के पास प्लाॅट दिलाने, गड़बड़ी करने वालों को जेल पहुंचाने तक के अधिकार हैं। ज्यादातर मामलों में अफसरों ने शिकायतें दबाकर रखीं, इसकी वजह से लोग वर्षों से सारी जमा पूंजी लगाने के बाद भी प्लॉट के लिए परेशान हो रहे हैं।

ऑडिट में आपत्ति तक नहीं दर्ज की
हाउसिंग सोसायटी एक्ट की धारा 19 में वरीयता सूची, प्लॉट ‌‌आवंटन में गड़बड़ पर उपायुक्त संचालक मंडल को हटा सकते हैं। 2005 में जब गैर सदस्यों को प्लाॅट बेचने का षड्यंत्र शुरू हुआ तो कई अफसर ही ऐसी संस्थाओं के सलाहकार बन गए। सोसायटी दर्शाए पते पर नहीं मिलती है तो भी धारा 32 में निरीक्षक के प्रतिवेदन पर उपायुक्त कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं। इसी तरह हर हाउसिंग सोसायटी का हर साल धारा 58 में आॅडिट किया जाता है, जो सख्ती से हुआ ही नहीं, इससे संस्थाओं की लापरवाही पर अंकुश नहीं लग पाया।

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