तेलंगाना में इंजीनियरिंग की सीटों में 70 फीसदी की गिरावट आ जाने के बाद कालेजों के प्रोफेसर सड़क पर आ गए हैं और उन्हें अपने जीवनयापन के लिए डिलीवरी ब्वाय जैसे पेशे में जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। कई वरिष्ठ प्रोफेसर जिनके पास पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री है, और जिनके पास दशकों का अनुभव है उनमें से बहुत सारे इस समय डिलीवरी एक्जीक्यूटिव के तौर पर काम कर रहे हैं। जिसके तहत ये लोगों के घरों में ग्रोसरी और खान-पान के सामानों की डिलीवरी करते हैं। इनमें से कई ऐसे हैं जो अपने घर के खर्चे के लिए सड़कों के किनारे सब्जी के ठेले लगा रहे हैं।
इसके जरिये उनको रोजाना 500 से लेकर 1000 तक की कमाई हो जाती है जो उनके प्रोफेसरशिप के दौरान होने वाली 40 हजार से लेकर 1.5 लाख की आय से बहुत कम है। हालांकि इनमें से ऐसे कुछ लोगों की स्थिति बेहतर है जो फ्रीलांस अध्यापक या फिर आउटसोर्स कर्मचारी के तौर पर काम कर रहे हैं। लेकिन बहुत सारे अभी भी बेरोजगार हैं। जबकि उनकी नौकरी छूटे तकरीबन दो साल हो गए हैं जब उन्हें एकाएक पद से मुक्त कर दिया गया था।
मौजूदा समय में तेलंगाना में 86943 इंजीनियरिंग की सीटें हैं। जिनको ईएपी और सीईटी के जरिये भरा जाता है। इनमें से 61587 सीटें कंप्यूटर साइंस और उससे जुड़ी ब्रांचों की हैं। जबकि सिविल, मेकैनिकल और उससे जुड़ी ब्रांचों के लिए केवल 7458 सीटें हैं। जबकि 2020 से पहले इसमें भी 18 हजार सीटें हुआ करती थीं। यहां तक कि इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रानिक्स की अधिकतम सीटें 4751 हैं।
कोर इंजीनियरिंग सेक्टर में इतनी सीमित सीटें होने के बावजूद हर साल 25 फीसदी सीटें खाली जा रही हैं। जैसी की संभावना व्यक्त की जा रही है लहर के कोर इंजीनियरिंग सेक्टर मेकैनिकल, सिविल और इलेक्ट्रिकल के एआई, डाटा साइंस, एलओटी और साइबर सिक्योरिटी की तरफ शिफ्ट होने के बाद तेलंगाना के 175 से ज्यादा इंजीनियरिंग कालेज अपनी सीटों में 50-75 फीसदी की कटौती कर देंगे।
इसका नतीजा क्या निकलेगा। इन पाठ्यक्रमों के फैकल्टी सदस्यों को दरवाजे का रास्ता दिखा जाएगा या फिर उन्हें बहुत कम सैलरी पर अपनी शर्तों के मुताबिक काम करने के लिए मजबूर कर दिया जाएगा। अच्युत वी ने बताया कि मैंने इसलिए छोड़ा क्योंकि मुझे पहले से ही कम सैलरी में भी 50 फीसदी की कटौती करने का प्रस्ताव दिया गया। अच्युत एक सिटी कॉलेज में मैकेनिकल इंजीनियरिंग का कोर्स पढ़ाते थे।
अब वह एक डिलीवरी ब्वाय के तौर पर काम कर रहे हैं जिसके रूप में उन्हें 600 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मिलते हैं। और बीच में समय मिलने पर टू ह्वीलर के टैक्सी ड्राइवर का भी काम कर लेते हैं। उन्होंने बताया कि पहले मुझे शुरुआत में 40 हजार मिलता था लेकिन मैनेजमेंट ने उसे कम करके 20 हजार कर दिया। उसके बाद उसमें और कटौती की बात की जाने लगी। मुझे वहां से छोड़ना पड़ा क्योंकि मेरा परिवार 10 हजार पर जिंदा नहीं रह सकता था। अच्युत के दो बच्चे भी हैं। एक कक्षा 7 जबकि दूसरा कक्षा 8 में पढ़ाई कर रहा है। उन बच्चों को नहीं पता है कि उनके पिता डिलीवरी ब्वाय के रूप में काम कर रहे हैं।
अच्युत ने दूसरी जगहों पर पढ़ाने की कोशिश की लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। उन्होंने बताया कि ब्रांच के तौर पर बहुत सारे कॉलेजों ने या तो छुट्टी पा ली या फिर वो सीटों की संख्या घटाकर 30 तक ला दिए हैं। चौधरी वामसी कृष्णन जो इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर हैं और उन्हें 19 साल का अनुभव है, को भी इसी तरह के अनुभव का सामना करना पड़ा। उन्होंने बताया कि मैं 1.30 लाख प्रति माह पा रहा था। उसके बाद मैनेजमेंट ने मुझसे 50 हजार में काम करने के लिए कहा। मैंने बेहद अपमानित महसूस किया। अभी वह अपनी बचत पर ही अपना जीवन गुजार रहे हैं।
तेलंगाना टेक्निकल इंस्टीट्यूशन इंप्लाइज एसोसिएशन के सदस्यों का कहना है कि जब तक सरकार या फिर विश्वविद्यालय उनके बचाव में नहीं आते हैं फैकल्टी को लगातार संघर्ष करना पड़ेगा।
(रिपोर्ट टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित हुई थी।)