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कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर और बेटी सुरन्या मुश्किल में,मिला घर खाली करने का नोटिस

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नई दिल्ली: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर और उनकी बेटी सुरन्या अय्यर मुश्किल में फंसते दिख रहे हैं। मणिशंकर की बेटी को राम मंदिर के उद्घाटन पर सोशल मीडिया पोस्ट की वजह से घर खाली करने के लिए कहा गया है। दोनों बाप-बेटी दिल्ली के जंगपुरा में रहते हैं। वहां के RWA के सदस्यों ने एक नोटिस में दोनों से गुहार की है कि वो ऐसे काम न करें जिससे लोगों की शांति भंग हो या उनके धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचे। लोगों ने दरख्वास्त की है कि दोनों इस घर को छोड़कर कहीं और चले जाएं। पूरा मामला क्या है आइए समझते हैं।

मणिशंकर अय्यर की बेटी ने रखा था व्रत
दरअसल, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर औरक उनकी बेटी दिल्ली के जंगपुरा इलाके में रहते हैं। राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के दिन मणिशंकर की बेटी सुरन्या ने इसके विरोध में एक सोशल मीडिया पोस्ट किया था जिसमें उन्होंने तीन दिन व्रत भी रखा था। सुरन्या की यह पोस्ट और राम मंदिर के विरोध में रख गए व्रत को जान वहां रहने वाले RWA के सदस्य नाराज हो गए। पड़ोसियों ने दोनों बाप-बेटी को जल्द से जल्द घर खाली करने को कह दिया। RWA ने अपने नोटिस में कहा कि हम आपके ऐसे बयानों की कदर नहीं करते, जो मोहल्ले की शांति भंग कर सकते हैं या यहां रहने वालों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकते हैं। आगे लिखा गया कि अगर आपको लगता है कि अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन का विरोध करना जायज है, तो हम यह सुझाव देंगे कि आप कृपया ऐसी कॉलोनी में चले जाएं जहां लोग ऐसी नफरत के प्रति आंखें मूंद लेते हैं।

सुरन्या अय्यर की वो फेसबुक पोस्ट
सुरन्या अय्यर ने मंदिर के अभिषेक के विरोध में 20 से 23 जनवरी तक तीन दिवसीय उपवास किया, मुसलमानों के साथ एकजुटता व्यक्त की और हिंदू धर्म और राष्ट्रवाद के नाम पर किए गए कृत्यों की निंदा की थी। उन्होंने 20 जनवरी को एक फेसबुक पोस्ट में उपवास के बारे में लिखा था। आरडब्ल्यूए ने अपने पोस्ट का हवाला देते हुए कहा, ‘सुश्री अय्यर ने सोशल मीडिया के माध्यम से जो कहा वह एक शिक्षित व्यक्ति के लिए अशोभनीय था, जिसे यह समझना चाहिए था कि राम मंदिर 500 वर्षों के बाद बनाया जा रहा था और वह भी सुप्रीम कोर्ट के 5-0 फैसले के बाद।’ इसमें कहा गया, ‘आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ ले सकते हैं, लेकिन कृपया याद रखें कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं हो सकती है।

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