Site icon अग्नि आलोक

कांग्रेस भी दिग्गजों को देगी टिकट!

Share

मप्र विधानसभा चुनाव में जीत के लिए भाजपा और कांग्रेस तू डाल-डाल, मैं पात-पात की रणनीति पर काम कर रही हैं। इसी रणनीति के तहत भाजपा ने अपने दिग्गज नेताओं को टिकट देकर मैदान में उतार दिया है। अब लोहे को लोहा से काटने की रणनीति के तहत कांग्रेस भी अपने दिग्गज नेताओं को टिकट देकर मैदान में उतार सकती है। सूत्रों का कहना है कि इसके लिए पार्टी रणनीति बना रही है, वहीं दिग्गजों से सलाह मशवरा कर रही है। अगर सबकुछ ठीक रहा तो इस बार का चुनावी घमासान काफी रोचक हो सकता है।
गौरतलब है कि भाजपा ने अभी तक 79 प्रत्याशियों की घोषणा की है। इसमें सात सांसदों समेत आठ दिग्गज नेता मैदान में हैं। इसको देखते हुए कांग्रेस भी इसी रणनीति पर काम करना चाह रही है। कांग्रेस ने अभी तक अपने एक भी प्रत्याशी की घोषणा नहीं की  है। बताया जाता है की भाजपा ने केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को उम्मीदवार बनाकर कांग्रेस पर रणनीति बदलाव करने का दबाव बना दिया है। भाजपा के दिग्गज नेताओं को चुनावी रण में उतारने से राजनीतिक समीकरण बदले हैं। ऐसे में कांग्रेस को भाजपा को मात देने के लिए अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा।
भाजपाई दिग्गजों को घेरने की रणनीति
भाजपा के दिग्गज नेताओं को टिकट मिलने के साथ ही कांग्रेस ने उनकी घेरेबंदी की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। सियासी गलियारों में चल रही चर्चाओं के मुताबिक बीजेपी के दिग्गज नेताओं का सामना करने के लिए कांग्रेस भी दिग्गज नेताओं का सहारा ले सकती है। जहां कांग्रेस पहली रणनीति के तौर पर दिग्गज नेताओं के सामने दिग्गजों को चुनाव लड़ा सकती है, तो वहीं दूसरी रणनीति के मुताबिक दिग्गज नेताओं को अपने-अपने क्षेत्र में चुनावी मैदान में उतरा जा सकता है। कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने इसी रणनीति के मद्देनजर मैदान संभाल लिया है। जहां तमाम निकले अपने-अपने क्षेत्र में नजर आ रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने भोपाल से दिग्विजय सिंह को प्रत्याशी बनाया था। चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। वर्तमान में वो राज्यसभा सांसद हैं। सिंह का जनाधार पूरे प्रदेश में हैं। वो दो बार प्रदेश के सीएम रहे। इसके अलावा 2018 में पार्टी को सत्ता में वापसी कराने में भी उनकी भूमिका अहम थी। सुरेश पचौरी दो बार भोजपुर सीट से चुनाव लड़ चुके हैं और दोनों ही बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस बार सुरेश पचौरी ने चुनाव नहीं लडऩे के संकेत दे दिए हैं। अरुण यादव को बुधनी से शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ उतारा गया था। अरुण यादव को लोकसभा चुनाव में भी उतारा गया था। मालवा निमाड़ में दखल होने के साथ ही पिछड़ा वर्ग में भी यादव का दखल है। ऐसे में पार्टी यादव को चुनाव में उतार कर ओबीसी कार्ड खेल सकती है। अजय सिंह चुरहट से विधानसभा चुनाव हार गए थे। हालांकि अजय सिंह का विंध्य में खासा दखल है। पार्टी अजय सिंह राहुल को सामने रखकर विंध्य में फिर इतिहास दोहरा सकती है। विवेक तन्खा जबलपुर से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। जहां उन्हें राकेश सिंह ने शिकस्त दी थी। वर्तमान में वो मप्र से राज्यसभा सांसद हैं। हालांकि विवेक तन्खा महाकौशल में खासे सक्रिय हैं। वो लगातार दौरा कर रहे हैं और जनता के बीच जा रहे हैं।
भाजपा की आज दिल्ली में बैठक
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का भोपाल आना टल गया है। शाह आज दोपहर में भोपाल आने वाले थे। शाम तक उनका चुनाव को लेकर संगठन के नेताओं से चर्चा का कार्यक्रम था। वहीं केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक जल्द ही नई दिल्ली में होने जा रही है। इसमें सिटिंग एमएलए के टिकट पर चर्चा की जाएगी। माना जा रहा है कि इस बैठक के बाद भाजपा अपनी तीसरी सूची जारी कर देगी। माना जा रहा है कि चुनावी आचार सहिंता पांच अक्टूबर के बाद कभी भी लग सकती है। ऐसे में भाजपा ने अपनी चुनावी तैयारियां तेज कर दी हैं। पार्टी इस बार समय से उन सीटों पर टिकट वितरित कर देना चाहती है जिन पर कोई विवाद की स्थिति नहीं है। पार्टी ने करीब 70 ऐसी सीटें तय भी कर ली हैं, जहां से सिंगल नाम आया है।
स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में बनेगी रणनीति
कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा के दिग्गजों को शिकस्त देने के लिए कांग्रेस भी बड़े चेहरों पर दांव खेल सकती है। इसे लेकर 3 अक्टूबर को दिल्ली में स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक है। जहां प्रदेश के बड़े नेताओं के नाम पर मंथन होगा। साथ ही पार्टी फैसला करेगी कि कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, अरुण यादव, सुरेश पचौरी और विवेक तन्खा विधानसभा चुनाव लड़ेंगे या क्षेत्रों में सक्रिय रह कर भूमिका निभाएंगे। दरअसल, भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को उम्मीदवार बनाने से कई क्षेत्रों में समीकरण बदल गए हैं। इंदौर में भाजपा ने कैलाश विजयवर्गीय को उम्मीदवार बनाया है। यहां से कांग्रेस के संजय शुक्ला विधायक हैं। उनकी स्थिति काफी मजबूत मानी जा रही थी । इसी तरह सतना में गणेश सिंह और विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा के बीच मुकाबला दिलचस्प हो गया है। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती महाकौशल में है। यहां वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में 38 में से 24 सीटें जीती थीं। जबकि 13 सीट भाजपा के कब्जे में आई थी। इस बार भाजपा ने यहां से दिग्गज नेताओं राकेश सिंह, प्रहलाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते को मैदान में उतारा है। इससे कांग्रेस के लिए लड़ाई मुश्किल हो गई है। पटेल लोधी समाज से आते हैं, कुलस्ते आदिवासी और राकेश सिंह सवर्ण वर्ग से हैं। इसमें भौगोलिक जातिगत और सियासी समीकरण साधने का काम किया गया है। इसी तरह विंध्य में ओबीसी नेता गणेश सिंह और रीति पाठक के माध्यम से स्थानीय और जातीय समीकरण पर काम किया है। ग्वालियर-चंबल में अंचल में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के माध्यम से संदेश देने का काम किया है। वहीं कमलनाथ साफ कर चुके हैं कि वे विधानसभा करेगी। अगर पार्टी कहेगी तो चुनाव लड़ेंगे। चुनाव लड़ेंगे या नहीं इसका फैसला पार्टी गौरतलब है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कमलनाथ ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था। पार्टी के सत्ता में आने के बाद उन्होंने उपचुनाव लड़ा था। गौरतलब है कि पार्टी ने कमलनाथ को 2023 के विस चुनाव के लिए सीएम फेस घोषित किया है। ऐसे में इन्हें चुनाव लड़ा कर पार्टी बड़ा संदेश दे सकती है।

Exit mobile version