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 रामजन्मभूमि विवाद पर कांग्रेस का रुख कई विरोधाभासों से भरा… ताला खुलवाया, भूमि पूजन की मंजूरी दी, तो न्योता क्यों ठुकराया?

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देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने से इनकार कर दिया है। इसको लेकर अब राजनीति भी शुरू हो गई है। जहां कांग्रेस के ही कुछ नेताओं ने फैसले पर असहमति जताई है तो भाजपा का कहना है कि राम विरोध कांग्रेस के चरित्र में ही है।

अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को अब महज 11 दिन ही बचे हैं। 22 जनवरी को राम लला के आगमन के लिए राम नगरी में भव्य तैयारियां की जा रही हैं। पूरे अयोध्या में गलियों, चौराहों से लेकर दीवारों तक को आकर्षक आकृतियों से सुशोभित किया जा रहा है। उधर कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोगों को निमंत्रण भेजा जा रहा है। इसमें देश के विभिन्न राजनीति दलों के नेताओं को भी न्योता दिया गया है। 

रामजन्मभूमि विवाद पर कांग्रेस का रुख कई विरोधाभासों से भरा हुआ है। विवाद के बीच जब 1986 में परिसर के ताले खोले गए थे, तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। फिर विश्व हिंदू परिषद को विवादित स्थल पर शिलान्यास करने की अनुमति भी दी गई थी।

आइए जानते हैं कि राम मंदिर मुद्दे के शुरुआत से कांग्रेस का रुख क्या रहा है? सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का बाद पार्टी की क्या प्रतिक्रिया रही? राम मंदिर के शिलान्यास पर क्या कहा गया था और अब राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा पर क्या फैसला लिया गया है? आइए फैसले की वजह और अन्य बातों को विस्तार से समझें…

राम मंदिर मुद्दे के शुरुआत से कांग्रेस का रुख क्या रहा है?
अयोध्या में राम जन्मभूमि पर बाबर के सेनापति मीरबाकी के मस्जिद बनाने के 330 साल बाद 1858 में राम मंदिर के लिए लड़ाई कानूनी शुरू हुई थी। हालांकि, मंदिर के लिए मुहिम आजादी के बाद तेज हुई। देश के आजाद होने के दो साल बाद 22 दिसंबर 1949 को ढांचे के भीतर गुंबद के नीचे मूर्तियों का प्रकटीकरण हुआ। इस घटना के बाद इलाके में कानून व्यवस्था की स्थिति गड़बड़ हो गई थी। 29 दिसंबर 1949 को फैजाबाद की एक अदालत ने बढ़ते सांप्रदायिक तनाव को नियंत्रित करने के लिए इस स्थल को सरकार को सौंप दिया। कुछ ही समय बाद विवादित परिसर में ताला लग गया। जब यह सब कुछ हुआ, उस वक्त देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे।

ताला खुलवाने की घटना क्या थी?
जब इतिहास के पन्ने पलटते हैं तो राम मंदिर को लेकर देश की सबसे पुरानी पार्टी का रुख विरोधभासी सा प्रतीत होता है। राम जन्मभूमि को लेकर लड़ी जा रही कानूनी लड़ाई को सबसे बड़ी हवा मिली पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में। दरअसल, 1986 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। सरकार के इस फैसले से न केवल बुद्धिजीवी वर्ग नाराज हो गया था, बल्कि दक्षिणपंथ के विचार को भी बढ़ावा मिला था। उस वक्त राजनीतिक विश्लेषकों ने महसूस किया कि कांग्रेस मुस्लिम रूढ़िवादिता का पक्ष ले रही है।

इस कठिन सियासी मोड़ पर राजीव गांधी ने विवादित बाबरी मस्जिद परिसर के ताले खोलने को हरी झंडी दे दी। अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि शाहबानो विवाद से ध्यान भटकाने के लिए केंद्र सरकार के कहने पर अयोध्या में स्थानीय प्रशासन के प्रतिनिधि व्यक्तिगत रूप से फैजाबाद में जिला न्यायालय के समक्ष उपस्थित हुए और मुख्य न्यायालय से ताला हटाने की बात कही। अंततः फरवरी 1986 में ताले खोले गए और परिसर में पुजारियों को पूजा पाठ की अनुमति दे दी गई। 2019 में राम मंदिर के शिलान्यास के वक्त कांग्रेस के दिग्गज नेता और गांधी परिवार के करीबी कमलनाथ ने कहा था कि राम मंदिर परिसर का ताला कांग्रेस की सरकार ने खुलवाया था।

1989 में राम मंदिर के शिलान्यास की अनुमति दी
नवंबर 1989 में एक अन्य फैसले में राजीव गांधी ने विश्व हिंदू परिषद को राम मंदिर के शिलान्यास की अनुमति दी। उस वक्त तत्कालीन गृह मंत्री बूटा सिंह को शिलान्यास में भाग लेने के लिए भेजा था। राजीव गांधी सरकार के फैसले के बाद मुस्लिम समुदाय ने कांग्रेस से दूरी बना ली। समुदाय के बड़े नेता जनता दल में शामिल हो गए, जिससे दो बड़े राज्यों में कांग्रेस की करारी हार हुई।

1989 में अविभाजित उत्तर प्रदेश में तो 1990 में अविभाजित बिहार में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। वहीं 1989 में ही हुए लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस के चार दशकों से चल रहा सियासी रथ रुक गया और आम चुनाव में उसे हार मिली।

1991 में भाजपा के विमर्शों को ध्यान में रखते हुए लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के घोषणा-पत्र में राम मंदिर का उल्लेख किया गया। इसमें कहा गया कि पार्टी बाबरी मस्जिद को ध्वस्त किए बिना मंदिर के निर्माण के पक्ष में है। एक साल बाद कारसेवकों ने विवादित ढांचा ढहा दिया और उस वक्त देश में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी।

बाबरी ढांचा ध्वंस के समय कांग्रेस का रुख कैसा था?
तारीख थी 6 दिसंबर 1992, इस दिन अयोध्या पहुंचे हजारों कारसेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया। इसकी जगह इसी दिन शाम को अस्थायी मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी। नरसिम्हा राव सरकार ने राज्य की कल्याण सिंह सरकार सहित अन्य राज्यों की भाजपा सरकारों को भी बर्खास्त कर दिया। वहीं, जनवरी 1993 में नरसिम्हा राव वाली केंद्र सरकार ने ढांचे वाले स्थान और कल्याण सिंह सरकार द्वारा न्यास को दी गई भूमि सहित यहां पर कुल 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया। 

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का बाद क्या प्रतिक्रिया रही?
9 नवंबर 2019 को 134 साल से चली आ रही लड़ाई में अब वक्त था अंतिम फैसले का। 9 नवंबर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित स्थल को श्रीराम जन्मभूमि माना। कांग्रेस ने सर्वोच्च अदालत के आदेश का स्वागत किया और घोषणा की कि वह राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में है।

राम मंदिर का भूमिपूजन

राम मंदिर के शिलान्यास पर क्या कहा था? 
न्यायालय के आदेश के बाद 5 अगस्त 2020 को राम मंदिर के लिए भूमि पूजन के साथ आधिकारिक रूप से राम मंदिर का निर्माण शुरू हुआ था। इससे एक दिन पहले कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने भूमिपूजन पर बयान जारी किया और कहा कि भगवान राम सब में हैं और सबके हैं। ऐसे में अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए होने जा रहा भूमि पूजन राष्ट्रीय एकता, बंधुत्व और सांस्कृतिक समागम का कार्यक्रम बनना चाहिए।

वहीं दूसरी ओर एमपी के पूर्व सीएम कमलनाथ ने भोपाल में निवास पर हनुमान चालीसा का पाठ किया। उन्होंने कहा था, ‘हम 11 चांदी की ईंटें अयोध्या भेज रहे हैं। यह एतिहासिक दिन है, जिसका पूरा देश इंतजार कर रहा था।’ 

जयराम रमेश

अब राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा पर क्या फैसला है, वजह क्या है? 
बुधवार को कांग्रेस ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का निमंत्रण ठुकरा दिया। पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, ‘यह भाजपा का राजनीतिक प्रोजेक्ट है। धर्म एक व्यक्तिगत मामला है। लेकिन भाजपा और संघ ने अयोध्या में राजनीतिक परियोजना बनाई है। भाजपा-आरएसएस के नेता अधूरे मंदिर का उद्घाटन कर रहे हैं। वह चुनावी लाभ के लिए यह सब कर रहे हैं।’

भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी

क्या इसका विरोध हो रहा है? 
कांग्रेस आलाकमान के इस फैसले पर पार्टी में ही एक राय नहीं है। गुजरात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन मोढवाडिया ने इस फैसले की आलोचना की और कहा कि राम मंदिर के मामले में कांग्रेस को राजनीतिक निर्णय नहीं लेना चाहिए। वहीं, एक अन्य कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा कि यह आत्मघाती फैसला है। 

भाजपा ने भी कांग्रेस आलाकमान के इस फैसले पर पार्टी को घेरा है। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने गुरुवार को एक प्रेस वार्ता में कहा कि कांग्रेस भगवान राम के विरोध पर आ गई है। भारत का इतिहास जब भी करवट लेता है तब कांग्रेस पार्टी उसका बहिष्कार करती है।

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