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लागू हो रहा है सीओआरएस सिस्टम,अब कालोनाइजर को वही प्लाट देना होगा जो दिखाया गया है

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भोपाल। बिल्डरों द्वारा प्लाट खरीदने वालों के साथ की जाने वाली धाखाधड़ी से बचाने के लिए अब प्रदेश सरकार का राजस्व महकमा जल्द ही प्रदेश में कंटीनुअस आॅपरेटिंग रिफरेंस स्टेशंस यानि की सीओआरएस शुरू करने जा रहा है। इस सिस्टम के काम शुरू होने के बाद बिल्डर को वही प्लाट खरीददार को देना होगा जो उसके द्वारा दिखाया गया है। यानि की कब्जा देते समय बिल्डर प्लाट की लोकेशन को नहीं बदल सकेगा। इस वजह से जिस लोकेशन की भूमि बेचने का सौदा खरीददार से किया जाएगा , उसी लोकेशन का ही प्लाट देना होगा। यह नियम पूरे प्रदेश में लागू होगा फिर चाहे मामला शहरी हो या फिर ग्रामीण  इसके लागू होने के बाद नक्शे बनाने में मामूली अंतर (50 एमएम) रह जाता है और जमीन की वास्तविक स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट होती है। दरअसल अभी अधिकतर यह शिकायतें आती है कि बिल्डर या जमीन के मालिक द्वारा जमीन का सौदा करते समय तो लोकेशन बताई थी, वह कब्जा देते समय बदल दी गई है। इसकी वजह से विवाद की स्थितियां बनती हैं। दरअसल यह पूरा खेल नक्शे में लोकेशन बदल कर किया जाता है, जिसमें प्लाट का नंबर वही रहता है और लोकेशन बदल जाती है। सीओआरएस की रेंज 70 किमी की दूरी में सभी दस तरह की दिशाओं में होती है। यह सिस्टम पूरी तरह से  सेटेलाइट के माध्यम से काम करता है। इसकी वजह से इसके सत्तर किमी के दायरे में आने वाले तालाब, नदी, मकान, कृषि भूमि समेत अन्य सभी जानकारियां एक्वरेट रुप से बता सकता है।  इस सिस्टम को नक्शा बनाते समय मोबाइल से भी कनेक्ट किया जा सकता है। इसकी वजह से एक्युरेट नक्शा बनाया जा सकेगा। इस सिस्टम को लगाने का काम इन दिनों जारी है। इसे हर 70 किमी की दूरी में बने सरकारी भवनों के परिसर में लगाया जा रहा है।
एक साथ कई जगह दर्ज हो जाएगी जानकारी
राजस्व विभाग की सीओआरएस मैपिंग और इससे तैयार होने वाले नक्शों को न सिर्फ राजस्व विभाग के रिकॉर्ड में वेब जीआईएस के जरिये रखा जाएगा। बल्कि यह सीधे तौर पर टीएनसीपी, पंजीयन विभाग से भी इंटीग्रेट होगा। इसकी वजह से अब बिल्डर द्वारा खरीददार को जो लोकेशन बताई जाएगी वह रजिस्ट्री में दर्ज होते ही राजस्व रिकार्ड और टीएनसीपी के डेटा में अपने आप दर्ज हो जाएगी और फिर बिल्डर या जमीन बेचने वाले माफिया जो प्लॉट लोकेशन बताएंगे, उसका ही कब्जा उन्हें देना होगा।

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