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उत्तर प्रदेश के सूचना विभाग से संबंधित खबर को मात्र तीन घंटे में डिलीट कर दिया दैनिक भास्कर ने

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दैनिक भास्कर समूह ने एक बार फिर अपने डिजिटल प्लेटफॉर्म भास्कर डॉट कॉम से एक ख़बर को हटा लिया है. ख़बर को टेक्स्ट और वीडियो दोनों फॉर्मेट में प्रकाशित किया गया था, लेकिन प्रकाशित होने के करीब तीन घंटे बाद ही इसे हटा दिया गया. पाठक इस स्टोरी के लिंक पर जाते हैं तो उन्हें मायूसी से लौटना पड़ता है. अब सवाल उठ रहे हैं कि दैनिक भास्कर ने खबर क्यों हटा ली. न्यूज़लॉन्ड्री ने इसकी पड़ताल की है. 

इस रिपोर्ट में दैनिक भास्कर ने यूपी सूचना विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे. साथ ही पार्थ श्रीवास्तव सुसाइड केस से लेकर आईएएस शिशिर तक के करियर का वर्णन किया था. इस ख़बर का वीडियो और स्क्रीनशॉट न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद हैं.

हमने इस खबर की रिपोर्टर ममता त्रिपाठी से बात की. वह कहती हैं, “ये खबर मैंने शुक्रवार यानी 22 सिंतबर को दी थी, लेकिन पब्लिश शनिवार 23 सितंबर करीब 11:30 बजे हुई और फिर लगभग ढाई-तीन बजे हटा दी गई. खबर क्यों डिलीट की गई मुझे नहीं पता, जब ये स्टोरी डिलीट हो गई तब मुझे पता चला. स्टोरी लगी थी लेकिन ड्रोप क्यों हुई मुझे नहीं पता.” 

वह आगे कहती हैं, “स्टोरी डिलीट होने के बाद लखनऊ से लेकर दिल्ली तक हल्ला है. कल पूरे दिन उद्योग भवन, विधान भवन, तमाम राजनीतिक गलियारों और अधिकारियों में इस बात की चर्चा रही कि खबर डिलीट हो गई. क्योंकि यह खबर काफी पढ़ी गई थी और फिर डिलीट कर ली गई. हमें भी खबर डिलीट होने का वहीं से पता चला. हमारा काम था खबर करना हमने कर दी.”

ममता आगे कहती हैं, “न मैंने कुछ पूछा है न ही मुझे कुछ बताया गया है. अब स्टोरी लगे न लगे क्या फर्क पड़ता है. मुझे 20 साल हो गए हैं नौकरी करते हुए. इसलिए अब इस सब की आदत पड़ गई है.”    

तो ऐसा क्या था इस स्टोरी में?

इस वीडियो स्टोरी में कहा गया, “सिंतबर महीने में यूपी सरकार ने सोशल मीडिया के कामकाज को लेकर 40 करोड़ का टेंडर निकाला था. इस टेंडर में नियमानुसार गैजेटेड ऑफिसर की जगह क्लर्क को रिपोर्टिंग अफसर बना दिया. जबकि 2017 से लेकर 2021 तक भारत सरकार की पब्लिक सेक्टर यूनिट बीईसीआईएल इस काम को महज एक करोड़ 58 लाख रुपए में करती थी.”

सूत्रों के आधार पर आगे रिपोर्ट में बताया गया, “मुख्यमंत्री के इर्द-गिर्द अफसरों के गुट खुद को श्रेष्ठ साबित करने की होड़ में हैं. इस गुटबाजी में मुख्यमंत्री का सोशल मीडिया सर्कस में तब्दील हो गया है. कई मौकों पर सूचना विभाग के अफसरों ने सरकार की भद्द ही पिटवाई है. यह तब है जब यूपी सरकार के सूचना विभाग का बजट पिछले तीन साल में दोगुना हो चुका है. वित्तीय वर्ष 2020-21 से 2023-24 आते-आते यह बजट 473.72 करोड़ से 988 करोड़ रुपए हो गया है. जिसमें 700 करोड़ रुपए विज्ञापन के लिए, 150 करोड़ रुपए प्रिंटिंग के लिए और 10 करोड़ रुपए प्रेस आतिथ्य के लिए हैं.”

रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रेस आतिथ्य का सारा पैसा अधिकारी अपने लोगों के लिए खर्च कर देते हैं. 

रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि सीएम योगी की सोशल मीडिया टीम में काम करने वाले पार्थ श्रीवास्तव के सुसाइड का मामला अभी भी ठंडे बस्ते में है. इस सुसाइड के बाद सूचना विभाग के कई रसूखदार अफसरों पर सवाल उठे थे, लेकिन अभी तक इस मामले में कोई जांच नहीं हुई है. 

रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि जनसंवाद के लिए बनी यूपी सीएम हेल्पलाइन और जनसुनवाई पोर्टल के ट्विटर हैंडल की दो साल से कोई सुध लेने वाला नहीं है. ऐसे में सवाल है कि आखिर सूचना विभाग के कर्ताधर्ता के कानों पर सीएम की सख्ती के बाद भी जूं नहीं रेंगती. ऐसा क्या राज है कि बड़े-बड़े कांड के बाद भी न तो मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार मृत्युंजय सिंह पर कोई आंच आती है न ही सूचना निदेशक शिशिर सिंह पर कोई फर्क पड़ता है?

आगे कहा गया, “लखनऊ से दिल्ली तक यह चर्चा आम है कि सूचना विभाग के सबसे बड़े अफसर की माया ऐसी है कि सरकार चाहे मायावती की हो, अखिलेश यादव की या फिर योगी आदित्यनाथ की, वो हर सरकार में बड़े पद पर काबिज रहते हैं. अब ये अधिकारी सबसे ज्यादा वक्त तक सूचना विभाग के पद पर बने रहने का रिकार्ड भी दर्ज कर चुके हैं. दैनिक भास्कर से लखनऊ से ममता त्रिपाठी की रिपोर्ट.” 

क्या कहते हैं भास्कर वाले?

नाम नहीं छापने की शर्त पर लखनऊ के एक पत्रकार कहते हैं, “यह खबर योगी सरकार के खिलाफ थी, खबर पब्लिश होने के बाद यहां बवाल हो गया. सोशल मीडिया समेत व्हाट्सएप के तमाम ग्रुपों में शेयर होने लगी. वायरल हुई तो ऊपर से दबाव बना, जिसके बाद खबर डिलीट करनी पड़ी. हालांकि, भास्कर ने ऐसा पहली बार नहीं किया है इससे पहले भी कई खबरें भास्कर ने डिलीट की हैं.”

दैनिक भास्कर डिजिटल के एडिटर प्रसून मिश्रा से हमने इस बारे में बात की. वह कहते हैं कि ये मामला मेरी जानकारी में नहीं है. मैं पता करके फिर आपको बताता हूं.

भास्कर की यूपी टीम को लीड कर रहे राज किशोर तिवारी से भी हमने बात की. तिवारी मीटिंग में होने की बात कह कर फोन काट देते हैं. दोबारा कॉल करने पर भी वह यही बात दोहराते हैं.  

बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब दैनिक भास्कर ने इस तरह से खबर डिलीट की है. इससे पहले दैनिक भास्कर डिजिटल ने उदयपुर हत्याकांड के आरोपी से जुड़ा एक वीडियो 3 जुलाई 2022 को पब्लिश किया था, लेकिन 24 घंटे के भीतर ही इसे वेबसाइट से हटा लिया गया. इस बारे में रिपोर्ट आप यहां पढ़ सकते हैं. 

फर्जी ख़बर हिंदी में तो ‘माफीनामा’ अंग्रेजी में प्रकाशित

तमिलनाडु में बिहार के प्रवासी श्रमिकों पर हमले को लेकर फर्जी ख़बर प्रकाशित करने के चलते मद्रास हाईकोर्ट ने दैनिक भास्कर अख़बार को अपने पहले पन्ने पर माफीनामा प्रकाशित करने का आदेश दिया था. इस आदेश के बाद आज दैनिक भास्कर ने अपने यहां शुद्धिपत्र प्रकाशित भी किया. हालांकि, हर ओर इस बात की चर्चा है कि हिंदी में झूठी ख़बर प्रकाशित करने वाले भास्कर ने माफीनामा अंग्रेजी में क्यों प्रकाशित किया?

दरअसल, पिछले हफ्ते सुनवाई के दौरान भास्कर को ये आदेश मिले थे.  

शुद्धिपत्र में क्या? 

शुद्धिपत्र में कहा गया है कि 2 मार्च को अख़बार में तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों पर हिंसा की खबर सच्ची नहीं थी. दैनिक भास्कर की संपादकीय टीम उक्त खबर को रिपोर्ट करने के लिए तमिलनाडु और बिहार के लोगों से माफी मांगती है. दैनिक भास्कर हमेशा सच्ची और तथ्य आधारित पत्रकारिता को बढ़ावा देता है, माननीय अदालत, और लोगों को हुई किसी भी असुविधा के लिए खेद है.  

शुद्धिपत्र के अंत में यह लिखा हुआ था कि यह शुद्धिपत्र उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार जारी किया गया है. 

गौरतलब है कि दैनिक भास्कर ने 2 मार्च को ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया था. जिसमें कहा गया था कि तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों को हिंदी में बात करने के लिए दंडित किया जा रहा है. वीडियो में यह भी बताया था कि तमिलनाडु में 15 से अधिक बिहारी प्रवासी श्रमिकों की हत्या हो चुकी है, जो की सरासर गलत खबर थी. 

खबर के दो दिन बाद, तमिलनाडु पुलिस ने दैनिक भास्कर पर झूठी खबर फैलाने का मामला दर्ज किया था. मद्रास उच्च न्यायालय ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि  मीडिया और प्रेस को नैतिकता अपनानी चाहिए. केवल अपने व्यावसायिक हित को बढ़ावा देने के लिए सनसनीखेज खबरों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय सार्वजनिक हित का ध्यान रखने की जरूरत है. 

न्यूज़लॉन्ड्री ने तमिलनाडु में प्रवासी श्रमिकों पर हमले की अफवाहों का विश्लेषण किया था, इन अफवाहों को मेनस्ट्रीम मीडिया ने भ्रामक तौर पर प्रस्तुत किया था. 

पत्रकार दीपक गोस्वामी ने मध्यप्रदेश में सक्रिय बजरंग सेना और कांग्रेस पार्टी के विलय को लेकर एक रिपोर्ट की थी. यह रिपोर्ट ‘द वायर हिंदी’ के वेबपेज पर 19 जून को प्रकाशित हुई थी.

इस स्टोरी में विस्तार से बताया गया कि कैसे कांग्रेस राज्य के आगामी विधानसभा चुनावों में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए सांप्रदायिक ताकतों का सहारा ले रही है. खबर में वह विस्तृत रूप से बजरंग सेना और उनकी कार्यशैली का विश्लेषण करते हैं. 

इसके बाद, 23 जून को दैनिक भास्कर के वेबपेज पर एक ‘एक्सक्लूसिव स्टोरी’ प्रकाशित हुई. लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि स्टोरी का ज्यादातर कंटेंट द वायर पर प्रकाशित दीपक गोस्वामी की रिपोर्ट से कॉपी किया गया है. 

भास्कर ने इसे इनसाइड स्टोरी बताते हुए इस पर एक एक्सप्लेनर वीडियो भी बनाया है.

हमने इस मामले में दीपक गोस्वामी से बात की. वे कहते हैं, “दैनिक भास्कर ने उनकी स्टोरी से बहुत सी सामग्री चुराई है और उसे एक्सक्लूसिव बना कर पेश किया है. आखिर चोरी किए कंटेंट को वे लोग एक्सक्लूसिव बताकर कैसे चला सकते हैं?” 

उन्होंने कहा, “दैनिक भास्कर की पहचान मध्यप्रदेश से है. अखबार यहीं से शुरू हुआ है. अब अगर कोई ये दोनों स्टोरी पढ़ेगा तो उसे यही लगेगा कि मैंने कंटेंट चुराया है. पिछले कई दिनों से लगातार मैं दैनिक भास्कर से इस बारे में जानने की कोशिश कर रहा हूं, हालांकि उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला”.

वह आगे कहते हैं, “24 जून को मैंने भास्कर के संपादक प्रसून मिश्रा से बात की और पूरा मामला बताया. हालांकि, अभी तक न ही कंटेंट हटाया गया है और न ही उसमें कोई बदलाव किए गए हैं.” 

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस मामले पर दैनिक भास्कर का पक्ष भी जानने की कोशिश की. इस पर मध्य प्रदेश के स्टेट एडिटर राजेश माली कहते हैं, “दीपक की शिकायत को संज्ञान में लिया गया है, पूरी तरह तहकीकात के बाद ही हम इस बारे में कुछ बता सकते हैं.” 

हालांकि, जब अब हम यह ख़बर प्रकाशित कर रहे हैं तो भास्कर अपनी इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में बदलाव कर चुका है. 

भास्कर ने स्टोरी के कंटेंट में बदलाव किया और वायर से चोरी किए हुए दो पैराग्राफ भी हटा दिए हैं. खोजबीन के बाद हमने पाया कि भास्कर ने स्टोरी के शब्द तो बदल दिए हैं लेकिन वह अभी भी इसे अपनी एक्सक्लूसिव रिपोर्ट के तौर पर पेश कर रहा है. वहीं, इस मामले में दीपक का कहना है कि भास्कर ने उन्हें बदलावों की कोई जानकारी नहीं दी है और न ही उनका कंटेंट चुराने के लिए कोई माफी मांगी है.

न्यूज़ लांड्री से साभार

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