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डिजिटलीकरण के दौर में जटिल होती गई है हदबंदी

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वित्तमंत्री की अध्यक्षता में हाल ही में वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (एफएसडीसी) की बैठक हुई। यह परिषद की 28वीं बैठक थी। उल्लेखनीय है कि वित्तीय स्थिरता बनाए रखने, अंतर-नियामक समन्वय बढ़ाने और वित्तीय क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने की व्यवस्था को मजबूत और संस्थागत बनाने के लिए एफएसडीसी का गठन 2010 में एक शीर्ष निकाय के रूप में किया गया था। वैश्विक स्तर पर मुद्रास्फीति का उच्च स्तर पर बने रहना, कमजोर वैश्विक मांग और वैश्विक आपूर्ति शृंखला में व्यवधान वर्तमान समय की सबसे बड़ी चुनौतियां हैं। ऐसे में परिषद के विचार-विमर्श को बढ़ती वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता, ब्रिटेन, जापान व कुछ अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में दस्तक देती मंदी के संदर्भ में ही देखा जाना चाहिए। बढ़ते वैश्विक कर्ज और वित्तीय बचत में गिरावट वाले परिदृश्य में वित्तीय स्थिरता संबंधी मुद्दे गंभीर रूप से महत्वपूर्ण हो गए हैं।

भारत के लिए भी कुछ चिंताएं अवश्य हैं, क्योंकि यहां का कर्ज-जीडीपी अनुपात, जो कोविड के दौरान अपने शिखर पर था, तेजी से गिरा जरूर है, लेकिन अब भी यह कोविड से पहले के समय की तुलना में ज्यादा है।वृहत राजकोषीय स्थिरता बनाए रखने और घरेलू क्षेत्र से उत्पन्न होने वाले प्रणालीगत जोखिमों को कम करने के लिए 2022-23 की चौथी तिमाही में देखी गई बचत में वृद्धि को समय के साथ बनाए रखने और बढ़ाने की भी जरूरत है। खासकर जब घरेलू देनदारियां बढ़ रही हों, तब इस क्षेत्र में भविष्य के वित्तीय जोखिमों के संबंध में सक्रिय उपाय और निरंतर निगरानी बेहद महत्वपूर्ण है।

वृहत राजकोषीय स्थिरता पर नजर रखना एफएसडीसी के प्रमुख कार्यों में से एक है। ऐसे में, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 28 दिसंबर, 2023 को प्रकाशित वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट (एफएसआर) के प्रमुख निष्कर्षों का उल्लेख भी जरूरी है। एफएसआर दरअसल एफएसडीसी की एक उप-समिति की रिपोर्ट है, जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय बैंक के गवर्नर करते हैं। एफएसआर के जो निष्कर्ष होते हैं, वे दरअसल वित्तीय स्थिरता के जोखिमों और भारतीय वित्तीय प्रणाली के लचीलेपन पर एफएसडीसी की उप-समिति के सामूहिक मूल्यांकन को ही प्रकट करते हैं। उप-समिति का कहना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था धीमी वृद्धि के खतरे, बढ़ते सार्वजनिक कर्ज, बढ़ते आर्थिक विखंडन और लंबे खिंचते भू-राजनीतिक संघर्षों जैसी कई चुनौतियों का सामना कर रही है। रिपोर्ट में इस पर भी प्रकाश डाला गया कि घरेलू नियामक उपाय वित्तीय प्रणाली के प्रणालीगत जोखिमों को कम करते हुए किस प्रकार से ग्राहक सुरक्षा, सुरक्षित डिजिटलीकरण और वित्त के विस्तार जैसी दूसरी चीजों में सुधार पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। वृहत राजकोषीय जोखिम विश्लेषण पर एफएसआर की रिपोर्ट कहती है कि भारत में वित्तीय बचत में गिरावट के साथ-साथ परिवारों की वित्तीय देनदारियों में तेज बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार 2021-22 और 2022-23 के बीच जीडीपी अनुपात में वित्तीय देनदारियां 3.8 से लेकर 5.8 फीसदी तक पहुंच गईं। हालांकि रिपोर्ट में यह भी देखा गया कि शुद्ध घरेलू वित्तीय बचत 2022-23 की चौथी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद का सात फीसदी हो गई, जो पिछली तिमाही में जीडीपी का चार फीसदी थी। एफएसडीसी के हालिया विचार-विमर्श को एफएसआर के निष्कर्षों के सामने रखकर ही देखना चाहिए।

वृहत राजकोषीय स्थिरता बनाए रखने और घरेलू क्षेत्र से उत्पन्न होने वाले प्रणालीगत जोखिमों को कम करने के लिए 2022-23 की चौथी तिमाही में देखी गई बचत में वृद्धि को समय के साथ बनाए रखने और बढ़ाने की भी जरूरत है। खासकर जब घरेलू देनदारियां बढ़ रही हों, तब इस क्षेत्र में भविष्य के वित्तीय जोखिमों के संबंध में सक्रिय उपाय और निरंतर निगरानी बेहद महत्वपूर्ण है। चूंकि घरेलू बचतें निजी क्षेत्र में निवेश के लिए वित्त का प्रमुख स्रोत हैं, और समग्र सरकारी उधार कार्यक्रम का आधार भी हैं, इसलिए भारत के समग्र व्यापक आर्थिक प्रदर्शन में इनकी भूमिका पर जरूरत से ज्यादा जोर नहीं दिया जा सकता। निजी क्षेत्र को ज्यादा संसाधन उपलब्ध कराने के लिए राजकोषीय सुदृढ़ीकरण पर ज्यादा ध्यान देना होगा, खासकर जब घरेलू वित्तीय बचत में गिरावट दिख रही हो। राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के लिहाज से अंतरिम बजट 2024-25 के आंकड़े उत्साहवर्धक हैं। हालांकि सरकारी कर्ज में निरंतर कमी सार्वजनिक क्षेत्र से उत्पन्न होने वाले राजकोषीय जोखिमों को कम करने में प्रमुख भूमिका निभाएगी।

एफएसडीसी की बैठक में व्यापक राजकोषीय जोखिमों पर निरंतर निगरानी की जरूरत के अलावा समावेशी आर्थिक विकास का समर्थन करने के लिए वित्तीय क्षेत्र के अंतर-नियामक समन्वय को मजबूत करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया है। परिषद ने वित्तीय क्षेत्र में केवाइसी प्रक्रिया को सरल व डिजिटल बनाने के लिए रणनीति तैयार करने और ऑनलाइन ऐप के जरिये हो रहे अनधिकृत कर्ज को रोकने के लिए रणनीति तैयार करने का भी निर्णय लिया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बैंक समेत वित्तीय क्षेत्र के नियामकों से ऑनलाइन ऐप के जरिये अनधिकृत कर्ज लिए जाने के प्रसार पर नियंत्रण करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने को भी कहा। परिषद ने सामाजिक स्टॉक एक्सचेंजों के माध्यम से सामाजिक उद्यमों द्वारा धन जुटाने की शुरुआत करने का भी फैसला किया। ‘सामाजिक स्टॉक एक्सचेंज’ दरअसल  सेबी के विनियमन के तहत इलेक्ट्रॉनिक फंड जुटाने वाला एक मंच है। समावेशी विकास और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए 2019-20 के बजट में इसकी घोषणा की गई थी। सामाजिक स्टॉक एक्सचेंज का विचार सामाजिक कल्याण की दिशा में काम कर रहे सामाजिक उद्यमों व स्वैच्छिक संगठनों को सूचीबद्ध करता है, ताकि वे इक्विटी, कर्ज या म्यूचुअल फंड जैसी इकाइयों के रूप में पूंजी जुटा सकें।

निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि तेजी से बदलती वैश्विक आर्थिक व्यवस्था और बढ़ते डिजिटलीकरण के दौर में वित्तीय विनियमन कुछ साल पहले की तुलना में ज्यादा जटिल हो गया है। ऐसे में, विनियामक उपायों को विकसित करने के लिए जरूरी है कि तेजी से बदलती सीमाहीन वित्तीय दुनिया से भारतीय वित्तीय क्षेत्र खुद को बचाए। आज वैश्विक आर्थिक परिदृश्य क्रिप्टो-परिसंपत्तियों, साइबर जोखिमों और उभरती तकनीकों जैसे कई विकासों से गुजर रहा है, जो एफएसआर की रिपोर्ट में उल्लिखित भी हैं। वर्तमान समय में तमाम सुरक्षा उपायों पर ध्यान देते हुए डिजिटलीकरण और वित्तीय समावेशन पर केंद्रीय बैंक का फोकस बना हुआ है। यह जरूरी भी है, क्योंकि भारतीय वित्तीय क्षेत्र गहरा और विस्तृत हो रहा है।

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