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बिहार में एनडीए के घटक दलों के बीच सीटों का बंटवारा

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भाजपा 17-जदयू 16 पर लड़ेगी, लोजपा को पांच तो हम-लोक मोर्चा को एक-एक सीट,पशुपति पारस और मुकेश सहनी महागठबंधन में जाने को मुक्त

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में बिहार की सीटों का बंटवारा हो चुका है। सोमवार शाम दिल्ली में एनडीए की ओर से प्रेस कांफ्रेंस की गई। बिहार भाजपा प्रभारी विनोद तावड़े ने बिहार एनडीए में सीट शेयिरिंग की घोषणा कर दी। उन्होंने ‘अमर उजाला’ की खबर पर मुहर लगाते हुए कहा कि बिहार में भारतीय जनता पार्टी 17 सीटों पर, जनता दल यूनाईटेड 16 सीटों पर और लोक जनशक्ति पार्टी पांच सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ेगी। वहीं हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा को एक-एक सीट दिया गया है।असल खेल लोजपा में हुआ। चिराग को धैर्य का फल मिला। कुशवाहा और मांझी को भी वही, जिसकी उम्मीद थी। जिद में फंस गए पशुपति पारस

मांझी और कुशवाहा को एक-एक सीट
बिहार भाजपा के प्रभारी विनोद तावड़े ने कहा कि भाजपा पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, औरंगाबाद, मधुबनी, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, महाराजगंज, सारण, उजियारपुर, बेगूसराय, नवादा, पटना साहिब, पाटलिपुत्र, आरा, बक्सर और सासाराम समेत 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। जदयू वाल्मिकी नगर, सीतामढ़ी, शिवहर, झंझारपुर, सुपौल, किशनगंज, कटिहार, मधेपुरा, गोपालगंज, सीवान, भागलपुर, बांका, मुंगेर, नालंदा और सीवान में चुनाव लड़ेगी। लोजपा (रा) वैशाली, हाजीपुर, समस्तीपुर, खगड़िया और जमुई सीटों पर चुनाव लड़ेगी। मांझी की पार्टी गया और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी काराकाट सीट से चुनाव लड़ेगी। 

हमलोग 40 के 40 सीट जीतेंगे
सीट बंटवारें की घोषणा से पहले विनोद तावड़े ने कहा कि  भले पार्टी के चुनाव चिन्ह अलग हों लेकिन सभी 40 सीट पर एनडीए की सभी पार्टियां पूरा ताकत लगाएगी। हमलोग 40 के 40 सीट पर जीतेंगे। वहीं लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी ने कहा कि लोजपा (रामविलास) को पांच सीटें मिलीं हैं। मैं प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा समेत सभी दलों को धन्यवाद देता हूं। जदयू के सांसद संजय झा ने कहा कि जदयू को 16 सीटें मिली हैं। 2024 के चुनाव में एनडीए बिहार में 40 के 40 सीट पर जीतेगा। 

पशुपति पारस का जिक्र तक नहीं
सीट शेयरिंग के घोषण के वक्त राष्ट्रीय लोकशक्ति पार्टी के प्रमुख पशुपति पारस का जिक्र तक नहीं किया गया। तीन दिन पहले ही दिल्ली में हाजीपुर, समस्तीपुर और नवादा में पशुपति पारस ने अपने उम्मीदवारों का नाम तय किया था। भाजपा ने हाजीपुर और समस्तीपुर चिराग को दे दिया। वहीं नवादा सीट खुद के पास रख लिया। अब देखना यह होगा कि पारस का अगला कदम क्या होता है।

सीट शेयरिंग की घोषणा करते हुए बताया कि भाजपा 17, जदयू 16, लोक जनशक्ति पार्टी पांच, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा एक और राष्ट्रीय लोक मोर्चा एक सीट पर बिहार में चुनाव के लिए अपने प्रत्याशी उतारेंगे। तावड़े ने लोक जनशक्ति पार्टी कहा और बाद में इसे स्पष्ट किया गया कि यह सीटें मुख्य रूप से चिराग पासवान के नाम गई हैं। उन्होंने कहा कि यह सीटें एनडीए अपने घटक दलों के बीच बांट रहा है। मतलब, बाकी के लिए कुछ नहीं कहा। मतलब, पशुपति पारस मायने नहीं रखते। मुकेश सहनी भी देखते रह गए। क्यों हुआ ऐसा? समझने के लिए पिछले चार-पांच दिनों की गतिविधियां काफी हैं।

जिद के कारण नजर से उतरे पारस
जहां एक तरफ दिवंगत रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने धैर्य दिखाया, वहीं उनके चाचा पशुपति कुमार पारस ने जिद ठाने रखी। उन्हें यह भी समझना चाहिए था कि चिराग पासवान के पास दिवंगत रामविलास पासवान के पीछे चलने वाले लोग ज्यादा हैं। उन्होंने यह भी नहीं समझा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्नेह चिराग को मिल रहा है। उन्हें साथ आने कहा गया, नहीं माने। उन्हें हाजीपुर सीट चिराग पासवान के लिए छोड़ने कहा गया, दूसरी सीटों का ऑफर दिया गया- किसी पर नहीं माने। और तो और, एनडीए के तहत केंद्रीय मंत्री रहते हुए हाजीपुर जाकर प्रेस से बात कर एलान कर दिया कि उनकी किसी से बात नहीं हुई है। मतलब, उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह से लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तक को झुठला दिया। यह आखिरी गलती ने भाजपा को उनसे विमुख कर दिया।

क्या महागठबंधन में जाने को मुक्त किया
वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्रा कहते हैं- “भाजपा किसी पुराने साथी को खोना नहीं चाह रही, लेकिन खुद को अपर हैंड मानकर किसी दबाव में भी नहीं आ रही। वह 17 सीटों पर लड़ी और जीती थी- इस बार भी उतनी सीटों पर लड़ रही है। जदयू ने 17 पर चुनाव लड़कर 16 पर जीत हासिल की। उसे भी उतना ही दिया। लोजपा को छह सीटें पिछली बार मिली थी, इस बार पशुपति कुमार पारस की एक सीट को घटाकर शेष लोजपा (रामविलास) को पांच सीटें दी गई हैं। भाजपा अंतिम तक पारस को खोना नहीं चाह रही थी और अब भी उनके लिए दरवाजे बंद नहीं किए गए हैं। लेकिन, वह दरवाजा राज्यपाल या फिर राज्यसभा का इंतजार जैसा है।” इन पंक्तियों का मतलब कई दिनों से समझ में भी आ रहा था।

दरअसल, पारस को पहले लोजपा की एकजुटता के लिए कहा गया था, लेकिन वह भतीजे के साथ जाने को तैयार नहीं हुए। भाजपा को चिराग में जितनी संभावना नजर आयी, उस हिसाब से पारस में नहीं। पारस अगर खुद एलान नहीं कर थोड़ा नरम होते तो दूसरे अच्छे ऑफर उनके पास थे। चाणक्या इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं- “जातीय जनगणना में संख्याबल के हिसाब से दुसाध बिहार में दूसरे नंबर की जाति है। उसे दरकिनार करना कोई नहीं चाहता। इस हिसाब से पारस को भी दरकिनार नहीं किया गया, बल्कि भाजपा उन्हें अपनी करनी के कारण भुगतान करने वाले के रूप में ही छोड़ रही है। चिराग पासवान जिस हिसाब से बिहार में सक्रिय हैं और जैसे पारस अपने साथी चार सांसदों को अंतिम समय तक साथ नहीं रख सके- यह तो होना ही था।” 

मुकेश सहनी मूकदर्शक क्यों रह गए
उपेंद्र कुशवाहा के राष्ट्रीय लोक मोर्चा और जीतन राम मांझी के हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा को भी एक-एक सीट मिल गई, लेकिन मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी पर भाजपा ने क्यों नहीं ध्यान दिया? वजह ‘अमर उजाला’ ने पहले ही बताया था कि सीट बंटवारा भी मंत्रिमंडल विस्तार के लिए रुका है। मंत्रिमंडल विस्तार में मुकेश सहनी की जाति को सम्मानजनक प्रतिनिधित्व दिया गया था। जातीय जनगणना में मल्लाह जाति की आबादी 2.60 प्रतिशत बताई गई थी। भाजपा और जदयू ने मंत्रिमंडल विस्तार में इस जाति पर ध्यान दिया, तभी मुकेश सहनी ने भी मान लिया था कि भाजपा उनपर शायद ही ध्यान दे। भाजपा ने विधान पार्षद हरी सहनी, जबकि जदयू ने बहादुरपुर दरभंगा के विधायक मदन सहनी को मंत्रिमंडल में जगह दी थी। वैसे, जहां तक दरवाजा बंद किए जाने का सवाल है तो ऐसा नहीं करते हुए उन्हें विधानसभा चुनाव के लिए ऑफर किया गया है। 


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