रायपुर। अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा ने आज विधान सभा में पेश आर्थिक सर्वेक्षण को प्रदेश के कथित ‘विकास की ढोल’ की पोल खोलने वाला बताया है। किसान सभा ने कहा है कि इस आर्थिक सर्वेक्षण से स्पष्ट है कि प्रदेश में कृषि का संकट गहरा रहा है और आर्थिक असमानता बढ़ रही है।
आज यहां जारी एक बयान में किसान सभा के राज्य संयोजक संजय पराते ने कहा है कि आर्थिक सर्वेक्षण से स्पष्ट है कि उद्योग और सेवा के क्षेत्र में विकास दर में न केवल राष्ट्रीय औसत की तुलना में गिरावट आई है, बल्कि प्रदेश में भी कृषि सहित तीनों क्षेत्रों में पिछले वर्ष 2022-23 की तुलना में विकास दर में गिरावट आई है। इससे स्पष्ट है कि प्रदेश में बहुसंख्यक मेहनतकश जनता की आय में गिरावट आई है और और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि कॉर्पोरेटों की तिजोरी में कैद होकर रह गई है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की इस दुर्दशा के लिए राज्य में पिछली कांग्रेस सरकार से ज्यादा जिम्मेदार केंद्र की वह मोदी सरकार है, जो इस प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों की कॉर्पोरेट लूट की नीतियों को लागू करने के लिए राज्य सरकारों पर दबाव डालती है।
किसान सभा नेता ने कहा कि पिछले वर्ष कृषि विकास की दर 4.33% थी, जो इस वर्ष एक चौथाई से भी ज्यादा गिरकर 3.23% रह गई है, जबकि कृषि और संबद्ध कार्यों में प्रदेश की 70% जनता की हिस्सेदारी है। इससे कृषि अर्थव्यवस्था और किसानों की बदहाली पता चलती है, जिसकी अभिव्यक्ति प्रदेश में बढ़ती किसान आत्महत्याओं में हो रही है। उन्होंने कहा कि इस संकट से उबरने का रास्ता यही है कि कृषि के क्षेत्र और ग्रामीण विकास के कार्यों में सार्वजनिक निवेश बढ़ाया जाए, किसानों को उन पर चढ़े बैंक और महाजनी कर्जों से मुक्त किया जाए, उन्हें फसल की सी-2 लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य दिया जाएं तथा मनरेगा में काम के दिन और मजदूरी दर बढ़ाई जाए। पराते ने कहा कि कल विधानसभा में पेश होने वाला बजट इसी कसौटी पर कसा जाएगा।
*संजय पराते*
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