अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) ने भारत की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख को लेकर बीएचयू गेट पर कार्यक्रम किया। इसके पूर्व छात्राएं आंबेडकर प्रतिमा तक शिक्षा अधिकार रैली निकालना चाहती थी लेकिन पुलिस ने यूपी में धारा 144 का हवाला देकर महिलाओं और बच्चियों को रास्ते में ही रोक दिया।
तत्पश्चात आयोजित सभा की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी प्रोचौथीराम यादव ने कहा कि फातिमा शेख और सावित्रीबाई को किस कदर विरोध झेलना पड़ा था, हम सब इसकी कहानियां जानते हैं लेकिन इन दोनों महिलाओं ने हिम्मत नहीं हारी और घर-घर जाकर, लड़कियों को बुलाकर शिक्षा के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि उस दौर में जो शक्तियां सावित्रीबाई और फातिमा शेख के खिलाफ खड़ी थीं, उनके उत्तराधिकारी आज भी समाज में सक्रिय हैं और महिला अधिकारों को कुचलने में लगे हुए हैं। सावित्रीबाई फुले से प्रेरणा लेते हुए एक समतामूलक समाज के लिए महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए एकजुट होना समय की मांग है।
नारीवादी लेखक वीके सिंह ने कहा कि आज के दौर में पूरे देश में सावित्रीबाई के जन्मदिन 3 जनवरी से लेकर फातिमा शेख के जन्मदिन 9 जनवरी तक एक अभियान चलाकर इन दोनों पुरखिनों के विरासत को आगे बढ़ाने की जरूरत है ताकि पितृसत्ता और महिलाओं की गुलामी से मुक्ति का संघर्ष तेज किया जा सके। साथ ही शिक्षा व बराबरी के अपने अधिकारों की दावेदारी को पूरा करने के संघर्ष के सपने को पूरा किया जा सके।
डॉ. मुनीजा रफीक खान ने कहा कि इस देश में अगर झांसी की रानी और बेगम हजरत महल ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में शहादत दी तो सावित्रीबाई और फातिमा शेख ने शिक्षा और समाज सुधार आंदोलन चलाया। साझी शहादत, साझी विरासत की इस परंपरा को हमें याद रखने की जरूरत है।
ऐपवा जिला सचिव स्मिता बागड़े ने कहा कि आज से लगभग पौने दो सौ साल पहले सावित्रीबाई और फातिमा शेख ने समाज के वर्चस्वशाली ताकतों को चुनौती दी थी और लड़कियों की शिक्षा के लिए और कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष का बीड़ा उठाया था। आज हम महिलाओं को दोनों क्रांतिकारियों से प्रेरणा लेकर संगठित होकर शिक्षा और रोज़गार के अधिकार के लिए संघर्ष करना होगा।
छात्रा नैना ने कहा कि सभी छात्राएं सावित्रीबाई और फातिमा शेख के सामाजिक सुधार आंदोलन को समझ सकें इसलिए हम मांग करते हैं कि हमारे स्कूली पाठ्यक्रम में दोनों सम्मानीय वीरांगनाओं को शामिल किया जाए।
डाक्टर बनने का सपना देखने वाली तनीषा ने कहा कि अपने सपनों को पूरा करने के लिए सरकारों को चाहिए कि सस्ती समान शिक्षा की गारंटी करें।
संचालन करते हुए ऐपवा राज्य सचिव कुसुम वर्मा ने वाराणसी पुलिस प्रशासन की निंदा करते हुए कहा कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाली सरकार में बेटियों को शिक्षा अधिकार रैली निकालने से रोकना बेटियो का अपमान है। इस कृत्य से यह मालूम चलता है कि प्रदेश की डबल इंजन सरकार को बेटियों की आजादी और उनके लोकतांत्रिक अधिकारों से कोई लेना देना नहीं है। कुसुम वर्मा ने कहा कि जब सावित्रीबाई फुले लड़कियों की शिक्षा के लिए घर से बाहर निकलती थीं तो वर्चस्ववादी ताकतें खुलकर उनका विरोध करती थीं और आज पौने दो सौ साल बाद भी हमारे देश में भी वर्चस्ववादी महिला विरोधी ताकतें जिंदा हैं जो लड़कियों को शिक्षा अधिकार रैली निकालने की इजाजत तक नही दे रही हैं। इसलिए इन ताकतों को शिकस्त देने के लिए आज महिलाओं को सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख के जीवन संघर्षों से प्रेरणा लेने की जरूरत है।
सभा को मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव सोनिया घटक, बीएलडब्लू से अनिता और फिल्म मेकर प्रोनिहार भट्टाचार्य ने भी संबोधित किया। घरेलू कामगार की सचिव और अध्यक्ष धनशिला विमला और सुनीता के साथ पूजा, रानी और पूनम आदि छात्राओं ने भी अपनी बात रखी। ऐपवा सदस्य अनिता और सविता एवं सरस्वती ने क्रांतिकारी गीत की प्रस्तुति दी। इस अवसर पर RYA के प्रदेश उपाध्यक्ष कमलेश यादव, AISA से राजेश, चंदा और सूरज बकम से सिद्धि ने भी सभा को संबोधित किया। ऐपवा जिलाध्यक्ष सुतपा गुप्ता और जिला उपाध्यक्ष विभा प्रभाकर ने भी शिक्षा अधिकार के संबंध में ऐपवा की मांगो को रखा।