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राजस्थान में केजरीवाल और कांग्रेस के बीच चुनावी समझौता संभव

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एस पी मित्तल, अजमेर 

कांग्रेस ने फैसला किया है कि मोदी सरकार दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार के अधिकारों की कटौती को लेकर जो प्रस्ताव लाएगी उसका संसद के दोनों सदनों में विरोध किया जाएगा। यानी कम से कम राजस्थान में तो प्रस्ताव को मंजूरी नहीं देने दी जाएगी। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को समर्थन देने का कांग्रेस का यह बहुत बड़ा फैसला है। इसे 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में विपक्ष की एकता के तौर पर भी देखा जा रहा है। मोदी सरकार के प्रस्ताव के विरोध में केजरीवाल की विपक्षी दलों से समर्थन मांग रहे हैं। लोकसभा चुनाव से पहले इसी वर्ष राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इन चारों राज्यों में से राजस्थान में ही केजरीवाल ने पूरा जोर लगा रखा है। केजरीवाल राजस्थान में वैसे ही चुनाव लड़ना चाहते हैं जैसे गुजरात में लड़ा। केजरीवाल की पार्टी के उम्मीदवारों की वजह से गुजरात में 182 में से कांग्रेस को मात्र 19 सीटें ही मिल सके, जबकि 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 77 सीटें मिली थी। सवाल उठता है कि जब दिल्ली में कांग्रेस केजरीवाल को सहयोग कर रही है। तब राजस्थान में केजरीवाल कांग्रेस को हराने का काम कैसे कर सकते हैं? सूत्रों की मानें तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े से अरविंद केजरीवाल की जो बात हुई है, उसमें राजस्थान भी शामिल था।  राजस्थान पर सकारात्मक वार्ता के बाद ही खडग़े ने मोदी सरकार के प्रस्ताव का विरोध करने का निर्णय लिया है। दिल्ली में चल रही राजनीतिक गतिविधियों से ही यह निष्कर्ष निकाला जा रहा है कि अब राजस्थान में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ेंगे, क्योंकि केजरीवाल को भी भाजपा को मात देनी है, इसलिए वह भी समझौते को तैयार है। यदि राजस्थान में कांग्रेस और केजरीवाल के बीच समझौता होता है तो यह राजस्थान की राजनीति के लिए बड़ी घटना होगी। क्योंकि इससे तीसरी राष्ट्रीय पार्टी को राजस्थान में पैर जमाने का अवसर मिलेगा, अब तक तो राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस में ही सीधा मुकाबला होता रहा है।

खिर गहलोत को झुकना पड़ा:

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जिन सचिन पायलट को भाजपा से पैसा लेने वाला नेता बताया, उन्हीं पायलट के साथ 29 मई को दिल्ली में न केवल समझौता वार्ता करनी पड़ी बल्कि एकजुटता दिखाने के लिए मीडिया के सामने खड़ा भी होना पड़ा। गहलोत के चेहरे से साफ जाहिर हो रहा था कि वह कांग्रेस हाईकमान की इस भूमिका से खुश नहीं है। जबकि पायलट के चेहरे पर मुस्कान थी। सीएम गहलोत नहीं चाहते थे कि वह पायलट के साथ बैठे हैं, लेकिन राहुल गांधी का दबाव रहा कि गहलोत को पायलट के सामने बैठ कर बात करनी ही पड़ेगी। यही वजह रही कि बैठक में 2 घंटे बाद गहलोत को पायलट के सामने बैठाया गया। सूत्रों की मानें तो पायलट के आने से पहले 2 घंटे तक सीएम गहलोत अपनी सरकार की उपलब्धियां बताते रहे और राहुल गांधी व खडग़े को यह भरोसा दिलाते रहे कि उनकी सरकार खासकर महंगाई राहत शिविरों के दम पर सरकार रिपीट हो जाएगी। लेकिन राहुल और खडग़े ने स्पष्ट कहा कि राजस्थान में सचिन पायलट के सहयोग से ही सरकार रिपीट हो सकती है। राहुल और खडग़े का मानना रहा कि 2018 में पायलट की मेहनत से ही सरकार बनी थी। 29 मई को दिल्ली में जो बैठक हुई उसका पहला नतीजा यह है कि सचिन पायलट गहलोत सरकार के खिलाफ आंदोलन की घोषणा नहीं कर पाएंगे। पायलट की तीन मांगों का क्या हुआ? यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।  लेकिन अब अशोक गहलोत को सचिन पायलट के साथ लेकर काम करना पड़ेगा। दिल्ली में जो बैठक हुई उस में राजस्थान में पायलट के समर्थक उत्साहित हैं। पायलट ने गत 11 मई से अजमेर से जब जन आक्रोश यात्रा शुरू की थी, तब कयास लगाए जा रहे थे कि पायलट अलग पार्टी बनाएंगे। लेकिन अब जब कांग्रेस हाईकमान ने अशोक गहलोत को पायलट के साथ खड़ा कर दिया है, तब पायलट समर्थकों को आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट मिलने की उम्मीद हो गई है। पायलट उन्हीं को टिकट दिलाएंगे जिन्होंने मुसीबत के समय साथ दिया है। 

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