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आदिवासी वोटरों को साधने की भाजपा और कांग्रेस की हर कोशिश

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भोपाल। मप्र में आदिवासियों की आबादी भले ही 20-22 फीसदी है, लेकिन उनका राजनीतिक महत्व सबसे अधिक है। यही कारण है की मप्र की राजनीति पार्टियों का सबसे अधिक फोकस आदिवासी क्षेत्रों पर रहता है। खासकर चुनावी समय में तो आदिवासी बहुल क्षेत्र राजनीति का ऐसा तीर्थ बन जाता है, जहां हर पार्टी और हर नेता जाने की कोशिश करता है। मिशन 2023 की तैयारी में जुटी भाजपा और कांग्रेस का भी पूरा फोकस आदिवासी क्षेत्रों पर है। अब जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 27 जून को आदिवासी बहुल क्षेत्र शहडोल आ रहे हैं तो दोनों पार्टियों के नेताओं ने अपना रूख आदिवासी बहुल क्षेत्रों की ओर कर लिया है। अब हर पार्टी के नेता आदिवासी के घर पहुंचने की तैयारी में जुट गए हैं।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27 जून को शहडोल आ रहे हैं, जहां वे वहां जनसभा को संबोधित करने के साथ आदिवासियों से संवाद भी करेंगे। भाजपा उनके इस दौरे की तैयारियों में जुट गई है। 22 जून से मप्र के पांच स्थानों से रानी दुर्गावती गौरव यात्रा निकाली जाएगी, जिसका समापन 27 जून को शहडोल में होगा। उधर, कांग्रेस के नेताओं ने भी क्षेत्र में डेरा डाल दिया है। आदिवासी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रामू टेकाम शहडोल पहुंच गए हैं। वे तीन दिन क्षेत्र में रहेंगे। वहीं, 24 जून को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ मंडला में जनसभा को संबोधित करेंगे।
आदिवासी वोटरों को साधने की हर कोशिश
भाजपा-कांग्रेस आदिवासी वोटरों को साधने में हर कोशिश कर रही है। इसके लिए अब भाजपा ने बड़ा प्लान बनाया है। भाजपा 22 जून को प्रदेश के पांच अंचलों से वीरांगना रानी दुर्गावती गौरव यात्रा प्रारंभ कर रही है। इसका शुभारंभ केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह करेंगे। इसके अलावा छिंदवाड़ा से सांसद दुर्गादास उईके, सिंगरामापुर में नबतरी से मंत्री विजय शाह, रानी दुर्गावती के जन्मस्थान कालिंजर में संपतिया उईके और धोहनी सीधी में हिमाद्री सिंह गौरव यात्रा का शुभारंभ करेंगी। यह यात्रा गांव-गांव होते हुए 27 जून को शहडोल पहुंचेगी। यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में यात्रा का समापन होगा। दोनों दलों की नजर आदिवासी वोट बैंक पर है। इन्हें अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा हो या कांग्रेस, कोई कसर नहीं रहने देना चाहते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पेसा का नियम लागू करके इन्हें प्रभावित करने का प्रयास किया है तो युवा अन्न दूत सहित अन्य योजनाओं के माध्यम से स्थानीय आदिवासी युवाओं को स्वरोजगार से जोडऩे की पहल की है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सतना में कोल महाकुंभ में भाग ले चुके हैं तो छिंदवाड़ा भी पहुंचे थे। मप्र में जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) का जनाधार भी तेजी से बढ़ रहा है। संगठन ने युवाओं को आदिवासी प्रभावशाली 80 सीटों पर चुनाव लड़ाने का ऐलान किया है। इसके लिए संगठन लगातार जमीनी स्तर पर काम करते आ रहा है। जयस का बढ़ता जनाधार भाजपा और कांग्रेस के लिए मुसीबत बन रहा है।
बूथ स्तर पर टीम बना रहे
उधर, कांग्रेस भी आदिवासियों को साधने में कोई कमी नहीं रहने देना चाहती है। आदिवासी एकता परिषद के माध्यम से जिलों में संपर्क कार्य प्रारंभ कर दिए हैं तो आदिवासी कांग्रेस बूथ स्तर पर टीम बना रही है। सामाजिक सम्मेलन करने के साथ आदिवासी बहुल क्षेत्रों में नेताओं के दौरे हो रहे हैं। इसी कड़ी में संगठन के प्रदेश अध्यक्ष रामू टेकाम शहडोल पहुंचे। यहां से उमरिया और फिर अनूपपुर जाएंगे। 24 जून को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ मंडला में कार्यकर्ताओं के साथ बैठक और जनसभा को संबोधित करेंगे। टेकाम ने कहा कि आदिवासी बहुत समझदार हैं और सच्चाई को पहचानते हैं कि उनके हित में किसने क्या किया है। कमल नाथ सरकार में जो योजनाएं लागू की गई थीं, उन्हें भाजपा सरकार ने बंद कर दिया है। बेरोजगारी के कारण पलायन हो रहा है। पेसा का नियम में कई कमियां हैं, जिन्हें कांग्रेस की सरकार बनने पर इसे दूर कर नए सिरे से लागू किया जाएगा।
जनकल्याणकारी योजनाओं की झड़ी  
मप्र में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग ने जब-जब भाजपा को समर्थन दिया है प्रदेश में पार्टी की सरकार बनी है। इसको देखते हुए सत्ता, संगठन और संघ का फोकस इन पर रहता है। 2018 में दलितों और आदिवासियों का समर्थन नहीं मिलने के कारण भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी थी। हालांकि पार्टी ने 2020 के बाद इन दोनों समुदायों में वापसी की। इसी वजह से 2020 के बाद होने वाले 31 विधानसभा और एक लोकसभा के चुनाव में भाजपा ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। पंचायत एवं नगरीय निकाय चुनाव में भी भाजपा ने आरक्षित वर्ग से अधिक से अधिक सीटें जीती। भाजपा इस समय अपना सारा जोर ओबीसी, दलित और आदिवासी समुदाय को रिझाने में लगा रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासियों के लिए पेसा एक्ट लागू कर जबरदस्त मास्टर स्ट्रोक खेला है। इसी तरह दलितों के लिए भी जनकल्याणकारी योजनाओं की झड़ी लगाई गई है। भाजपा को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के पिछड़ा वर्ग से होने का और महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू और राज्यपाल मंगू भाई पटेल के आदिवासी होने का भी लाभ मिल रहा है।
यह है आदिवासी वोट का गणित
मप्र की 230 सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 30 और भाजपा को 16 सीट पर जीत मिली थी। एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी। इसके अलावा 30 सीटों पर आदिवासी वोटर प्रभाव रखता है। इसलिए कहा जाता है कि आदिवासी वोट जिधर गया, सिंहासन पर पहुंचा। अब भाजपा, कांग्रेस के अलावा दूसरी अन्य पार्टियां भी आदिवासी वर्ग को साधने में जुटे हुए है। यहीं वजह है कि  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह पूरी ताकत लगा रहे है। सरकार आदिवासियों को साधने के लिए पेसा एक्ट से लेकर कई योजनाओं का शुभारंभ किया है। वहीं, कांग्रेस ने भी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का रूट आदिवासी वोटर को साधने के हिसाब से तय किया था।  हाल ही में प्रियंका गांधी ने भी जबलपुर में कांग्रेस की जनसभा को संबोधित करने से पहले रानी दुर्गावती की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।
आदिवासी सीटों पर ऐसे बदले समीकरण
2003 विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए 41 सीट रिजर्व थी। इसमें से भाजपा ने 37 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस सिर्फ दो सीट पर सिमट गई थी। इसके अलावा गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने दो सीट जीती थी। 2008 विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या बढक़र 47 हो गई। इसमें भाजपा ने 29 सीटें जीती। वहीं, कांग्रेस की सीटें बढक़र 17 पहुंच गई। 2013 विधानसभा चुनाव में 47 सीटों में से भाजपा ने 31 सीटें जीती। वहीं, कांग्रेस की सीटें बढक़र 15 पहुंच गई।  2018 विधानसभा चुनाव में 47 आरक्षित सीटों में से कांग्रेस ने 30 सीटें जीती, भाजपा को सिर्फ 16 सीटें ही मिली। एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार जीता।

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