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फर्जी फाइलें निगम में बनी…अधिकारियों की रही लिप्तता…आरोपियों से पूछताछ जारी

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इंदौर। नगर निगम के बहुचर्चित 107 करोड़ रुपए के फर्जी बिल घोटाले की 188 फाइलों की जांच-पड़ताल जहां जांच कमेटी द्वारा की जा रही है, तो दूसरी तरफ इसमें लिप्त 5 में से 2 ठेकेदार पुलिस (Police) के हत्थे चढ़ गए। कल रात पुलिस ने मोहम्मद जाकिर और मोहम्मद साजिद को गिरफ्तार किया और देर रात तक पूछताछ भी की, जिसका सिलसिला आज भी जारी रहा। डीसीपी (DCP) पंकज पांडे का कहना है कि इन आरोपियों ने जो जानकारी या घोटाले में लिप्त अधिकारियों-कर्मचारियों व अन्य के नाम बताए हैं उनकी पुष्टि की जाएगी और उससे संबंधित साक्ष्य भी जुटा रहे हैं। दूसरी तरफ सूत्रों का कहना है कि कुछ अधिकारियों की लिप्तता सामने आई है और आरोपियों ने भी खुद को तो बेकसूर बताया और फर्जी फाइलें निगम में ही बनना बताई और वडेरा को इस घोटाले का मास्टरमाइंड भी कहा है।

इस महाघोटाले से जुड़े कई महत्वपूर्ण तथ्य अग्रिबाण ने उजागर किए, जिसके चलते पुलिस को भी अपनी जांच में बड़ी मदद मिली। यहां तक कि दो ठेकेदार, जिनकी फर्में क्षितिज और जाह्नवी इंटरप्राइजेस है, उनके आलीशान बंगले पर कल सुबह पुलिस ने छापा भी मारा। राहुल और रेणु वडेरा के बंगले से पासबुक, पासपोर्ट, दो कारों सहित कई अन्य दस्तावेज जब्त किए गए। इसके लिए कोतवाली सर्कल के एसीपी विनोद दीक्षित और थाना प्रभारी एमजी रोड विजयसिंह सिसौदिया, कोतवाली थाना प्रभारी देवेन्द्रसिंह कुशवाह ने पुलिस बल के साथ यह कार्रवाई अपोलो डीबी सिटी अपटाउन निपानिया में की। वहीं दूसरी तरफ कल देर रात इस घोटाले में लिप्त दो ठेकेदार भाइयों मोहम्मद जाकिर और मोहम्मद साजिद को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। हालांकि दो दिन पहले ही हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत की याचिका खारिज कर दी थी। तब भी आरोपियों के वकीलों ने उनके जल्द सरेंडर होने की बात कही थी। फिलहाल जो दो आरोपी पुलिस के हाथ आए हैं उनसे लगातार पूछताछ की जा रही है, जिसमें इन आरोपी ठेकेदारों ने कहा कि फर्जी फाइलें उन्होंने नहीं बनाई, बल्कि निगम में ही बनी, जिसमें अधिकारियों और कर्मचारियों की पूरी लिप्तता रही। साथ ही लेगेसी पोर्टल पर फाइलें उन्होंने भी अपलोड नहीं करवाई। साथ ही उन्होंने राहुल वडेरा को इस पूरे मामले का मुख्य कर्ताधर्ता भी बताया, जिसके कईनिगम के नेताओं-पार्षदों से सम्पर्क भी हैं और वह लम्बे समय से इस फर्जीवाड़े में शामिल रहा। पुलिस ने कल मदीना नगर में भी इन ठेकेदारों मोहम्मद सिद्दीकी और साजिद के घरों के अलावा अन्य ठिकानों पर भी जांच-पड़ताल की। अब पुलिसिया पूछताछ में 107 करोड़ के इस घोटाले से जुड़े राज उजागर होंगे। हालांकि उसके लिए पुलिस को साक्ष्य यानी सबूत भी जुटाना पड़ेंगे।

ऑडिट विभाग के तीन अफसरों पर गिरेगी गाज
निगमायुक्त शिवम वर्मा ने इस महाघोटाले के उजागर होते ही अपर आयुक्त सिद्धार्थ जैन के नेतृत्व में एक जांच कमेटी गठित की, जो एक-दो दिन में अपनी रिपोर्ट तैयार कर सौंप देगी। इस जांच कमेटी को लेखा शाखा से 188 फाइलों की जानकारी मिली, जिसके जरिए 107 करोड़ रुपए की राशि का खुलासा हुआ है। जांच कमेटी सूत्रों का कहना है कि ऑडिट विभाग के तीन अफसरों पर भी इस घोटाले की गाज गिरेगी, क्योंकि यह पूरा घोटाला ऑडिट होने के बाद ही अंजाम दिया गया। इसमें डिप्टी डायरेक्टर लोकल फंड परमार के अलावा सीनियर ऑडिटर अहरोलिया और असि. ऑडिटर रामेश्वर परमार का नाम बताया जा रहा है।

30 फीसदी तक कमीशन डकार जाते हैं नेता और अफसर
निगम के इस 107 करोड़ के घोटाले में चूंकि अधिकांश फाइलें फर्जी हैं, जिनके जरिए लगभग 80 करोड़ रुपए का भुगतान इन पांचों फर्मों ने हासिल कर लिया है और इनमें से कुछ ही करोड़ के काम वाकई हुए हैं। वैसे तो निगम में 3 से लेकर 5-6 प्रतिशत तक कमीशन बंटता है, मगर इस तरह की बोगस फाइलों में कमीशन का प्रतिशत 30-40 तक पहुंच जाता है, क्योंकि ठेकेदारों को आयकर, जीएसटी व अन्य कर काटने के बाद पूरा पैसा ही एक तरह से मुफ्त मिलता है, जिसमें से वे आधी राशि अधिकारियों-नेताओं, कर्मचारियों को बांट देते हैं। नगर निगम में सालों से इस तरह के फर्जी कामों की प्रेक्टिस चलती रही है, जिनमें पार्षदों की भी मिलीभगत रहती है। वहीं पार्षद अपने क्षेत्र में मंजूर होने वाले हर कामों में पीसी यानी पर्सनल कमीशन भी अधिकारियों की तरह हासिल करते हैं।

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