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बिहार में जातीय जनगणना का अंतिम फलाफल,आरक्षण अधिनियम तत्काल प्रभाव से लागू

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बिहार की जातीय जनगणना के आंकड़े आने के 50 दिनों के बाद अब राज्य में आरक्षण का संशोधित प्रावधान लागू कर दिया गया है। 21 नवंबर 2023 को बिहार गजट में प्रकाशन के साथ इसे तत्काल लागू कर दिया गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री थे तो जातीय जनगणना पर राज्य सरकार ने मुहर लगाई थी और उनके महागठबंधन सरकार के सीएम रहते इस जनगणना की रिपोर्ट आयी। जनगणना की रिपोर्ट पर भाजपा ने भले हंगामा किया, लेकिन इस आधार पर आरक्षण प्रावधानों में बदलाव के सरकारी प्रस्ताव पर खुली सहमति दी। जिस दिन मुख्यमंत्री ने बिहार विधानसभा में आरक्षण में बदलाव का प्रस्ताव दिया, उसी दिन राज्य कैबिनेट ने इसे पास भी कर दिया। फिर बिहार विधानसभा और विधान परिषद् से पास होने के बाद छठ के दौरान राज्यपाल की भी सहमति आ गई। अब इसे गजट में प्रकाशित करते हुए तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है।

 आरक्षण में इस संशोधन के बाद विधेयक का नाम अंतिम तौर पर है- बिहार पदों एवं सेवाओं की रिक्तियां में आरक्षण (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के लिए) (संशोधित) अधिनियम 2023.

कौन-सा नियम-अधिनियम बदला
बिहार पदों एवं सेवाओं की रिक्तियां में आरक्षण (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के लिए) अधिनियम 1991 (बिहार अधिनियम 03, 1992) का यह संशोधित रूप है। इस अधिनियम की धारा 4(1), 4(2) और 4 (3) में बदलाव किया गया।

सीधी भर्ती के लिए, यानी रिक्तियों में आरक्षण का बंटवारा इस तरह होगा-
अनुसूचित जातियां- 20%
अनुसूचित जनजातियां- 02%
अत्यंत पिछड़ा वर्ग- 25%
पिछड़ा वर्ग- 18%

प्रोन्नति के लिए आरक्षण का बंटवारा इस तरह होगा-
अनुसूचित जातियां- 20%
अनुसूचित जनजातियां- 02%

65% आरक्षण के अलावा यह भी मिलेगा
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अत्यंत पिछड़ा वर्ग या पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार अगर जाति के आधार पर आरक्षण नहीं लेकर प्रतिभा के आधार पर चुने जाते हैं तो उनकी नियुक्ति शेष 35 प्रतिशत (आर्थिक आधार पर पिछड़ा 10% और 25% अनारक्षित पद) के तहत मानी जाएगी।

आरक्षण में बदलाव की जरूरत क्या बताई-
1. सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक पहलुओं में न्याय की व्यवस्था।
2. स्थिति और अवसर में समानता देने का प्रयास किया जाना है।
3. आय, स्थिति, सुविधा और अवसरों में असमानता को कम करना।
4. एससी/एसटी ओर अन्य कमजोर वर्ग के शैक्षिक-आर्थिक हितों को बढ़ावा।

आरक्षण में बदलाव का आधार क्या बताया-
जाति सर्वेक्षण के दौरान एकत्र आंकड़ों के विश्लेषण से स्पष्ट है कि पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बड़े हिस्सों को बढ़ावा देने की जरूरत है। मतलब, आरक्षण को बढ़ाना जरूरी है। भारतीय संविधान में एक संशोधन के जरिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया था। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण राज्य में इस वर्ग की आबादी प्रतिशत के संदर्भ में 64.5% हिस्सेदारी दिखाता है। मतलब, 64.5% आबादी को इस 10% का लाभ मिलता है। अनारक्षित वर्ग की आबादी (अल्पसंख्यक समुदाय सहित) राज्य की कुल आबादी लगभग 15 प्रतिशत ही है। मतलब, अनारक्षित सीटों का 25% होना पर्याप्त है और इसमें आरक्षित वर्ग के लोगों का भी हक है, जो आरक्षण लाभ नहीं लेंगे। आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य सरकार की सेवाओं में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व अनुपातिक रूप से कम है। मतलब, सरकारी नौकरियों में आरक्षित लोगों का प्रतिनिधित्व बढ़ाना है।

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