राष्ट्रीय राजधानी में इस साल अब तक आग लगने से 55 लोगों की मौत हुई। जबकि 300 से ज्यादा लोग घायल हुए। सोमवार को सामने आए आधिकारिक आंकड़ों में इसका खुलासा किया गया है। दिल्ली अग्निशमन सेवा (डीएफएस) के आंकड़ों के मुताबिक आग लगने से जनवरी में 16, फरवरी में 16, मार्च में 12 , अप्रैल में चार और 26 मई तक 7 लोगों की मौत हुई। आग लगने की घटनाओं में जनवरी में 51, फरवरी में 32, मार्च में 62, अप्रैल में 78 और 26 मई तक 71 लोगो घायल हुए हैं।
डीएफएस के एक अधिकारी ने बताया कि इस साल आग लगने की कॉल की संख्या बढ़कर 32.26 फीसदी हो गई। आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल 1 जनवर से 26 मई के बीच आग लगने की घटनाओं से जुड़े 6,436 फोन कॉल आए थे। लेकिन इस साल इसी अवधि के दौरान 8,912 आग से संबंधित कॉल के साथ यह संख्या 32 फीसदी से अधिक बढ़ गई है।
अधिकारी ने कहा, पिछले साल 36 लोगों की जान गई थी, इस साल अब तक कुल 55 लोगों ने अपनी जान गंवाई है। पूर्वी दिल्ली के विवेक विहार स्थित एक निजी बाल अस्पताल में रविवार को भीषण आग लगने से छह नवजात शिशुओं की मौत हो गई। अधिकारी ने बताया कि नवजात बच्चों के अस्पताल में शनिवार की रात करीब साढ़े 11 बजे आग लगी और जल्द ही पास की दो अन्य इमारतों तक फैल गई। आग बुझाने के लिए 16 दमकल वाहनों को लगाया गया और अस्पताल से 13 बच्चों को निकालने के लिए बड़े पैमाे पर बचाव अभियान चलाया गया। इसमें से छह की मौत हो गई। पुलिस ने कहा था कि आग लगने से पहले ही एक बच्चे की मौत हो चुकी थी।
डीएफएस प्रमुख अतुल गर्ग ने बताया कि नवजात अस्पताल के पास फायर एनओसी नहीं थी और यहां तक कि आग को बुझाने के लिए भी उचित इंतजाम नहीं थे। इसके अलावा वहां ऑक्सीजन सिलेंडर भी रखे हुए थे, जो फट गए थे। एनओसी जरूरी हो या नहीं, सभी को सभी प्रकार की इमारतों में उचित आग से सुरक्षा की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए। स्प्रिंकलर लगाना आगे से निपटने और अग्निशामकों को सूचित करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है।
इस घटना पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मृतक नवजातों के शोक-संतप्त माता-पिता के साथ संवेदना व्यक्त की थी। पुलिस ने रविवार को अस्पताल के मालिक को गिरफ्तार किया। अस्पताल में योग्य डॉक्टर भी नहीं थे और अग्निशमन विभाग से कोई मंजूरी भी नहीं थी।