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मध्य प्रदेश के हिस्से आए पांच मंत्री

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प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार शपथ ले ली है। उनके साथ ही कैबिनेट के कई मंत्रियों ने भी शपथ ली है। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद मध्य प्रदेश की सभी 29 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की है। इसका दबदबा केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल में भी देखने को मिल रहा है। इस बार भी प्रदेश से पांच सांसदों को मंत्री बनाया गया है। मध्य प्रदेश से शिवराज सिंह चौहान, डॉ. वीरेंद्र खटीक, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कैबिनेट मंत्री की शपथ ली। इसके अलावा दुर्गादास उईके और सावित्री ठाकुर ने राज्य मंत्री के रूप में शपथ ली है। आइए जानते हैं इनके बारे में…

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को नरेंद्र मोदी के केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री बनाया गया है। उन्होंने छठे नंबर पर शपथ ली है। इससे मध्य प्रदेश की ताकत और ज्यादा बढ़ेगी। विदिशा से छठवीं बार सांसद चुने गए शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में भाजपा के सबसे कद्दावर नेता हैं। वह मध्य प्रदेश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने सर्वाधिक समय तक मुख्यमंत्री पद का कार्यभार संभाला है। उनका कार्यकाल करीब 16.5 वर्ष का रहा। इससे पहले  भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष व भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे हैं।

शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश में ‘मामा’ नाम से भी पुकारा जाता है। उनका पेशा राजनीति और कृषि रहा है। सीहोर जिले के बुधनी में 5 मार्च 1959 को जन्मे शिवराज अब 64 के हो चुके हैं। लेकिन ऊर्जा से अब भी किसी युवा को मात देने की क्षमता रखते हैं। उन्होंने बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से शिक्षा हासिल की है। एमए (दर्शनशास्त्र) कर चुके हैं। पिता प्रेम सिंह चौहान हैं, तो माता का नाम सुंदर बाई चौहान है। साधना सिंह से उनका विवाह हुआ है। उनके दो पुत्र कार्तिकेय चौहान, कुणाल चौहान हैं। 

राजनीति से पहले आरएसएस में थे सक्रिय
गौरतलब है कि राजनीति में कदम रखने पहले शिवराज सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में कार्यकर्ता के रूप में कार्य किया था। शिवराज सिंह चौहान छह बार उस सीट से सांसद हैं, जहां से कभी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सांसद थे। प्रदेश में मुख्यमंत्री पद का दायित्व संभालने से पहले शिवराज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 

शिवराज सिंह चौहान को जमीन से जुड़ा हुआ नेता माना जाता है। शिवराज का राजनीतिक अनुभव भी सबसे जुदा रहा है। शिवराज सिंह चौहान ने 1972 में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ज्वाइन कर लिया था और 1975 में मॉडल हायर सेकेंडरी स्कूल छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए थे। शिवराज ने आपातकाल में भी हिस्सा लिया और उन्हें आंतरिक सुरक्षा अधिनियम के तहत जेल में बंद कर दिया गया था। आपातकाल के बाद उनकी क्षमता को देखते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने उन्हें भोपाल में संगठन सचिव की जिम्मेदारी सौंप दी।

अब छठी बार सांसद
1978 से 1980 तक शिवराज सिंह चौहान अभाविप में मध्यप्रदेश के संयुक्त सचिव रहे। 1980 से 1982 तक शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश एबीवीपी के महासचिव चुने गए और उसके बाद 1982 से 1983 तक राष्ट्रीय मंत्री रहे। शिवराज सिंह चौहान को भारतीय जनता युवा मोर्चा में भेजा गया और उन्हें मध्यप्रदेश का संयुक्त सचिव बनाया गया। 1990 में उन्हें बुधनी विधानसभा सीट से विधानसभा का प्रत्याशी बनाया गया और उन्होंने जीत दर्ज की। 1991 के बाद उपचुनाव में शिवराज सिंह चौहान को उम्मीदवार बनाया और शिवराज सिंह चौहान सांसद बन गए। शिवराज सिंह चौहान 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में विदिशा लोकसभा सीट से सांसद चुने जा चुके हैं।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान ने पहली बार 29 नवंबर 2005 को शपथ ली और 2008 तक वह मुख्यमंत्री रहे। दूसरी बार 12 दिसंबर 2008 को मुख्यमंत्री बने। तीसरी बार उन्होंने 14 दिसंबर 2013 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, वहीं चौथी बार उन्होंने 2020 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। अब 2024 में रणनीति के तहत उन्हें फिर सांसद के लिए मैदान में उतारा गया और आठ लाख से ज्यादा वोटों से शिवराज ने जीत दर्ज की।

पार्लियामेंट्री बोर्ड के सदस्य भी रह चुके हैं शिवराज
शिवराज सिंह चौहान की गिनती भाजपा के बड़े ओबीसी नेताओं में होती है। शिवराज भाजपा की पार्लियामेंट्री बोर्ड के सदस्य भी रह चुके हैं और 2019 में भारतीय जनता पार्टी सदस्यता अभियान के प्रमुख भी रह चुके हैं। उनके सदस्यता अभियान के प्रमुख रहते हुए भाजपा के सदस्यों की संख्या 18 करोड़ से अधिक हो गई थी। 2018 में जब भाजपा की मध्यप्रदेश में हार हुई तो उसके बाद शिवराज को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद की भी जिम्मेदारी दी गई थी।

बड़ी जीत दर्ज करने वाले नेताओं में शिवराज
2024 के चुनावों में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विदिशा संसदीय सीट से 8.21 लाख मतों से जीत हासिल की है। देश में सर्वाधिक वोट से जीतने वाले नेताओं में शिवराज सिंह चौहान शामिल हुए हैं। शिवराज सिंह चौहान की प्रदेश और देश में मामा के रूप में पहचान है। शिवराज सिंह चौहान की लाडली लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन जैसी योजनाओं को दूसरे राज्यों ने अपनाया है। अब मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना को भी पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को बहुत लाभ मिला है। शिवराज सिंह चौहान ओबीसी वर्ग से आते हैं। 

ज्योतिरादित्य सिंधिया
गुना सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया जीते हैं। 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में सिंधिया राजघराने की परंपरागत सीट से भारी बहुमत से विजयी रहे और पांचवीं बार लोकसभा में पहुंचे हैं। ग्वालियर के सिंधिया राजघराने के वंशज ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं। आजाद भारत में राजमाता विजयाराजे सिंधिया, उनके बेटे माधव राव सिंधिया, बेटियां वसुंधरा राजे सिंधिया, यशोधरा राजे सिंधिया और पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया का राजनीति में दबदबा रहा है। 2007 में केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्री परिषद में शामिल किया गया। इसके बाद 2009 में हुए चुनाव में वह लगातार तीसरी बार गुना सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचे और इस बार उन्हें वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री बनाया गया।

2024 में हुए लोकसभा चुनाव में वह सिंधिया राजघराने की परंपरागत सीट से भारी बहुमत से विजयी रहे और पांचवीं बार लोकसभा में पहुंचे हैं। ग्वालियर के सिंधिया राजघराने के वंशज ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं। आजाद भारत में राजमाता विजयाराजे सिंधिया, उनके बेटे माधव राव सिंधिया, बेटियां वसुंधरा राजे सिंधिया, यशोधरा राजे सिंधिया और पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया का राजनीति में दबदबा रहा है। 

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हार्वर्ड कालेज, हार्वर्ड विश्वविद्यालय से स्नातक किया। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस से एमबीए डिग्री हासिल की। इसके उपरांत उन्होंने एक बैंकर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। हालांकि 30 सितम्बर 2001 को पिता माधवराव सिंधिया की एक विमान हादसे में आकस्मिक निधन के बाद परिस्थितियों ने कुछ ऐसा मोड़ लिया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया भी राजनीति में आ गए और उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण करते हुए अपने पिता की सीट गुना से चुनाव लड़ा और पहली बार संसद पहुंचे।

2007 में पहली बार बने केंद्रीय मंत्री
ज्योतिरादित्य सिंधिया को मई 2004 में फिर से इसी सीट से चुना गया और 2007 में केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्री परिषद में शामिल किया गया। इसके बाद 2009 में हुए चुनाव में वह लगातार तीसरी बार गुना सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचे और इस बार उन्हें वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री बनाया गया। 2014 में, सिंधिया गुना से फिर चुने गए थे। लेकिन 2019 में उन्हें भाजपा के डा. कृष्णपाल सिंह यादव के मुकाबले हार झेलनी पड़ी। इसके बाद कांग्रेस पार्टी में ही एक गुट लगातार साइडलाइन करने की साजिश रचते रहा। आखिरकार 2020 में उन्होंने अपने समर्थकों के साथ भाजपा ज्वाइन कर ली और भाजपा के टिकट पर राज्यसभा में पहुंच गए। इसके बाद 2021 में हुए मोदी कैबिनेट के विस्तार में उन्हें जगह मिली और नागरिक उड्डयन मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया। 

पहली बार भाजपा से लड़े और बड़े अंतर से जीते
बता दें कि ज्योतिरादित्य सिंधिया पहली बार भाजपा के टिकट से लोकसभा चुनाव लड़े हैं। उन्होंने ये चुनाव 540929 वोटों से जीता है। गुना शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र उनका गढ़ माना जाता है, हालांकि 2019 के चुनावों में भाजपा के केपी यादव से चुनाव हारे थे। 

डॉ. वीरेंद्र खटीक
डॉ. वीरेन्द्र खटीक एक बार फिर से मोदी सरकार में मंत्री बने हैं। टीकमगढ़ संसदीय क्षेत्र से आठवीं बार सांसद चुने गए वीरेंद्र खटीक लोकप्रिय नेता हैं। सागर में जन्मे वीरेंद्र खटीक को पिछली सरकार में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली थी। वीरेंद्र कुमार ने चार लोकसभा चुनाव प्रदेश की सागर लोकसभा सीट और चार लोकसभा चुनाव टीकमगढ़ लोकसभा सीट से जीते हैं। पहली बार वो साल 1996 में हुए 11वें लोकसभा चुनावों में निर्वाचित हुए। जिसके बाद उन्होंने साल 1998, 1999, 2004, 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में अपने प्रतिद्वंदियों पर जीत हासिल की। 2024 के चुनाव में वे चार लाख मतों से जीते हैं। उन्होंने कांग्रेस के पंकज अहिरवार को हराया था। 

सबसे अनुभवी डॉ. वीरेंद्र कुमार खटीक ही हैं। वे आठवीं बार सांसद बने हैं। वीरेंद्र कुमार ने चार लोकसभा चुनाव प्रदेश की सागर लोकसभा सीट और चार लोकसभा चुनाव टीकमगढ़ लोकसभा सीट से जीते हैं। पहली बार वो साल 1996 में हुए 11वें लोकसभा चुनावों में निर्वाचित हुए। जिसके बाद उन्होंने साल 1998, 1999, 2004, 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में अपने प्रतिद्वंदियों पर जीत हासिल की। 2024 के चुनाव में वे चार लाख मतों से जीते हैं। उन्होंने कांग्रेस के पंकज अहिरवार को हराया था। 

पीएचडी हैं वीरेंद्र खटीक
बता दें कि डॉ. वीरेंद्र कुमार उच्च शिक्षित हैं। उन्होंने पीएचडी कर रखी है। उनका जन्म सागर जिले में हुआ था। सागर के चकराघाट, सिंघई जैन मंदिर के पास उनका घर है। उनके पिता अमर सिंह और माता सुमत रानी हैं। उनका विवाह 1987 में कमल वीरेंद्र से हुआ है। उनकी तीन बेटियां और एक बेटा है। गौरीशंकर शेजवार उनके बहनोई हैं। उनका पारिवारिक पेशा खेती-किसानी है। उनके पास 2 करोड़ 88 लाख की प्रॉपर्टी है। वीरेंद्र के खिलाफ कोई क्रिमिनल केस नहीं है।

लंबा राजनीति अनुभव
डॉ. वीरेंद्र खटीक का लंबा राजनीतिक अनुभव रहा है। 1977 में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े थे, वे रीवा संयोजक बने थे। 1979-82 से वे मंडल संगठन सचिव रहे। इसके बाद उन्होंने भारतीय जनता युवा मोर्चा की राजनीति शुरू की। 1982 से 84 तक वे सागर जिले के महासचिव रहे। 1987 में बजरंग दल के सागर जिले के संयोजक बने। 1991 में भाजपा में सागर के सचिव बनाए गए। 1994 में भाजपा के राज्य प्रतिनिधि बने। 1996 में पहली बार सांसद चुने गए। उनकी सक्रियता को देखते हुए उन्हें श्रम और कल्याण संबंधी स्थायी समिति का सदस्य बनाया गया। 1998-99 में वे स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की परामर्श दात्री समिति के सदस्य बने। 1998 में दूसरी बार सांसद चुने गए। 1999 में तीसरी बार सांसद बनने का मौका मिला। 2004 में बतौर सांसद चौथा कार्यकाल शुरू किया। इस दौरान वे श्रम संबंधी समिति में सदस्य रहे, विशेषाधिकार समिति में सदस्य रहे। 2006-08 में भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष रहे। 2009 में पांचवीं बार सांसद बने। मई 2014 में छठी बार सांसद चुने गए। 

केंद्र में बने मंत्री
अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण संबंधी समिति में सदस्य बने, श्रम संबंधी स्थायी समिति में सभापति रहे। ऊर्जा संबंधी स्थायी समिति में सभापति बनाए गए। 3 सितम्बर, 2107 को वे केंद्रीय राज्य मंत्री बने। उन्हें महिला एवं बाल विकास मंत्रालय; और अल्प संख्य क कार्य मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई। 2019 में सातवीं बार सांसद बने। जून 2019 में प्रोटेम स्पीकर रहे। सत्रहवीं लोकसभा में वे केंद्रीय कैबिनेट मंत्री बने, उन्हें सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय दिया गया। 

लो प्रोफाइल रहना खासियत
डॉ. वीरेंद्र कुमार जमीन से जुड़े नेता हैं। 2009 से वे टीकमगढ़ सीट से सांसद हैं। वे यहीं सिविल लाइन में निवास करने लगे हैं। केंद्रीय मंत्री होने के बाद भी वे बिना सुरक्षा क्षेत्र में घूमते रहते हैं। बाइक, स्कूटर घूमते मिल जाते हैं। यहां तक की सब्जी लेने भी पहुंच जाते हैं। वे लोगों से लगातार संवाद करते रहते हैं। आमजन से उनका सीधा जुड़ाव है। 

सावित्री ठाकुर
मध्य प्रदेश के धार लोकसभा सीट से दो लाख से अधिक वोटों से जीतने वालीं सांसद सावित्री ठाकुर को मोदी कैबिनेट में जगह मिली है। मोदी 3.0 में उन्हें मंत्री बनाया गया है। चुनाव में सावित्री ने कांग्रेस उम्मीदवार राधेश्याम मुवेल को करारी शिकस्त दी थी। सांसद सावित्री ठाकुर ने राजनीति में अपने दम पर जगह बनाई है। उनके परिवार का दूर-दूर तक राजनीति से कोई नाता नहीं था। उनके पति तुकाराम ठाकुर किसान है और पिता राज्य वन विभाग के कर्मचारी रह चुके हैं। एनजीओ में को-ऑर्डिनेटर बनने के दौरान सावित्री आरएसएस के संपर्क में आईं थी। इसके बाद उससे जुड़ गईं। आदिवासी समाज से और पढ़ी लिखी महिला होने का फायदा सावित्री को मिला और धीरे-धीरे उन्होंने राजनीति में अपनी जगह बनाई।

नाम में ठाकुर, पर हैं आदिवासी
सांसद सावित्री ठाकुर का जन्म 1 जून 1978 को हुआ था। वे आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की पृष्ठभूमि से आती हैं। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक एनजीओ में को-ऑर्डिनेटर के रूप में की थी। सावित्री के नाम में ही सिर्फ ठाकुर लगा है, लेकिन मूल रूप से वे आदिवासी समाज से आती हैं। वे 10वीं पढ़ी हुई हैं।    

राजनीति में अपने दम पर पाया ये मुकाम
सांसद सावित्री ठाकुर ने राजनीति में अपने दम पर जगह बनाई है। उनके परिवार का दूर-दूर तक राजनीति से कोई नाता नहीं था। उनके पति तुकाराम ठाकुर किसान है और पिता राज्य वन विभाग के कर्मचारी रह चुके हैं। एनजीओ में को-ऑर्डिनेटर बनने के दौरान सावित्री आरएसएस के संपर्क में आईं थी। इसके बाद उससे जुड़ गईं। आदिवासी समाज से और पढ़ी लिखी महिला होने का फायदा सावित्री को मिला और धीरे-धीरे उन्होंने राजनीति में अपनी जगह बनाई। सबसे पहले साल 2003 में सावित्री जिला पंचायत सदस्य चुनी गईं। 2004 में उन्हें जिला पंचायत अध्यक्ष बनने का भी मौका मिला।

2014 में भाजपा ने दिया बड़ा मौका
इसके दस साल बाद 2014 में सावित्री ठाकुर की किस्मत चमकी और भाजपा ने उन्हें धार लोकसभा सीट से प्रत्याशी घोषित किया। इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार  उमंग सिंघार को हराकर बड़ी जीत दर्ज की। उन्हें उद्योग पर बनी संसदीय समिति का सदस्य भी बनाया गया। 

2019 में लगा झटका 
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में सावित्री ठाकुर को भाजपा से झटका लगा। पार्टी ने धार सीट से उनका टिकट काटकर छतर सिंह दरबार को दे दिया। छतर सिंह दरबार ने चुनाव में जीत हासिल की। 

2024 में फिर हुई बल्ले-बल्ले 
2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मौजूदा सांसद छतर सिंह दरबार का टिकट काट दिया। पार्टी की ओर से एक बार की सांसद सावित्री ठाकुर को प्रत्याशी बनाया। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी राधेश्याम मुवैल को 2.18 लाख वोटों से मात दी। 

क्या कहती हैं सावित्री?
अपने राजनीति सफर को लेकर सावित्री कहती हैं कि मैंने कभी ऐसा नहीं सोचा था कि मैं राजनीति में आऊंगी। एक एनजीओ से जुड़े रहने के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संपर्क में आई और यहां मेरे लिए राजनीति के द्वार खुल गए।  

अब जानिए क्यों बनाया गया मंत्री? 
सावित्री ठाकुर आदिवासी समाज से आती हैं। जिस लोकसभा सीट धार से वे चुनाव जीतकर सांसद बनी हैं, वह आदिवासी इलाका है। आदिवासी समाज ने भाजपा को झोली भरकर वोट दिए हैं। ऐसे में पार्टी इस समाज से नाराजगी मोल नहीं लेना चाहती है। मोदी 3.0 कैबिनेट में आदिवासी समाज से आने वाले फग्गन सिंह कुलस्ते का नाम शामिल नहीं है, ऐसे में आदिवासियों और महिला को साधने के लिए भाजपा ने सावित्री ठाकुर के मंत्रिमंडल में जगह दी है। कहा जा रहा है कि सावित्री   

इन राजनीतिक पदों पर रहीं सावित्री ठाकुर

दुर्गादास उईके
मध्य प्रदेश के बैतूल से लोकसभा सांसद दुर्गादास उईके को भी मोदी कैबिनेट में जगह मिली है। दुर्गादास उइके का जन्म  29 अक्टूबर 1963 में ग्राम मीरापुर जिला बैतूल में हुआ था। उनके पिता  स्व.सूरतलाल उइके, माता स्व. रामकली उइके, पत्नी ममता उईके हैं। उनकी शैक्षणिक योग्यता एमए, बीएड है। पेशे से शिक्षक दुर्गादास उइके 2019 में इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हुए थे और पहली बार उन्हें भाजपा ने सांसद पद का प्रत्याशी बनाया था। वह लंबे समय से गायत्री परिवार से भी जुड़े हुए हैं। वे  राजनीति में आने से पहले वे एक शिक्षक थे। उईके आदिवासी वर्ग से आते हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि जातिगत समीकरणों को साधने के लिए उन्हें कैबिनेट में शामिल किया गया है।

दुर्गादास उईके भाजपा से दूसरी बार सांसद चुने गए हैं। उन्होंने 32 साल तक शिक्षक के रूप में सेवा दी। 61 साल के दुर्गादास उईके सालों पहले संघ यानी आरएसएस से जुड़ गए थे। आरएसएस ने ही उन्हें आदिवासी बाहुल्य बैतूल में राजनीतिक तौर पर आगे बढ़ाया। 2019 में दुर्गादास उइके ने कांग्रेस के प्रत्याशी को 3 लाख 60 हजार 241 वोटों के भारी भरकम अंतर से हरा दिया था। बैतूल लोकसभा सीट पर 2024 में एक बार फिर भाजपा के दुर्गादास उइके ने जीत हासिल की। लोकसभा चुनाव में इस बार दुर्गादास ने कांग्रेस के प्रत्याशी रामू टेकाम को 3,79761 वोटों से शिकस्त दी। दुर्गादास उइके को 854298 वोट मिले और उनका वोट शेयर 62.5 फीसदी रहा। कांग्रेस के प्रत्याशी रामू टेकाम को 474575 वोट ही मिले और उनका वोट शेयर मात्र 35.40 फीसदी रहा।

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