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 प्रदेश में हर साल गायब हो जाता है ढाई हजार हेक्टेयर का वन

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भोपाल। सरकार भले ही कितने दावे करे , लेकिन वास्तविकता यह है की मध्यप्रदेश में अकेले एक साल में औसत रुप से ढाई हजार हेक्टेयर का वन गायब हो जाता है। इसकी वजह है प्रदेश में सक्रिय संगठित वन माफिया। इस माफिया को विभाग के अलावा स्थानीय प्रशासन के अलावा राजनैतिक संरक्षण भी बन रहता है। इसकी वजह से यह माफिया हर साल प्रदेश में करीब एक अरब रुपए का अवैध कारोबार करता है।

ताजा मामला विदिशा जिले के लटेरी का है। इस इलाके में सक्रिय वन मािफया से हुई वन अमले की मुठभेड़ में एक युवक की मौत के बाद प्रशासन ने बन अमले पर ही हत्या का प्रकरण दर्ज कर लिया।  इस घटना के बाद वन मंत्री विजय शाह भी मृतक के परिजनों से मिले हैं। वनों की सुरक्षा में तैनात अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर विदिशा की तरह अपराधिक प्रकरण दर्ज होते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब सबसे अधिक वन संपदा होने का गौरव तो जाएगा ही साथ ही वन माफिया के हौसले और बुलंद हो जाएंगे। हास्यास्पद पहलू यह है कि विदिशा के लटेरी में लकड़ी कटाई के आरोपी की मौत पर 25 लाख का मुआवजा मिलता है, जबकि जंगलों की सुरक्षा में मौत होने पर वन कर्मियों को चार लाख तक का मुआवजा देने का प्रावधान है। दरअसल प्रदेश के विदिशा, बैतूल, हरदा और गुना वन मंडल में अवैध लकड़ी की कटाई सर्वाधिक होती है। इसी तरह से बुरहानपुर खंडवा नेपानगर देवास वन मंडल भी अवैध कटाई व  अतिक्रमण के लिए अति संवेदनशील माना जाता है। इसके अलावा निवाड़ी ,ग्वालियर मुरैना सीधी शिवपुरी वन मंडल भी  अवैध उत्खनन और परिवहन के लिए कुख्यात है। इन जिलों से अवैध रुप से लकड़ी की तस्करी दूसरे प्रदेशों में की जाती है। विभाग के आंकड़ों के मुताबिक हर साल अवैध कटाई के चार हजार से लेकर पांव हजार तक मुकदमे दर्ज किए जाते हैं. इन आपराधिक घटनाओं में वन विभाग का निहत्था मैदानी अमला आठ हजार से अधिक घन मीटर तक लकड़ी जप्त कर लेता है, जिसकी कीमत करीब 80 करोड़ के आसपास होती है।
हर साल मारे जाते है वन कर्मी
गोली चलाने के अधिकार न होने की वजह से वनों की सुरक्षा करते हुए हर साल औसतन एक वन कर्मी की हत्या कर दी जाती है।  बीते सात सालों की बात की जाए तो  इन सालों में आठ वन कर्मियों की हत्या हो चुकी है। इसी अवधि में डेढ़ सौ कर्मचारी घायल हो चुके हैं।  वन कर्मियों की मौत पर पीड़ित परिवारों को न ही पर्याप्त मुआवजा मिलता है और न ही उनके परिजनों को सरकारी नौकरी मिलती है। बीते कई सालों से वन विभाग के कर्मचारियों एवं अधिकारियों द्वारा आधुनिक हथियारों की मांग करते हुए गोली चालन के अधिकार मांगे जा रहे हैं , लेकिन उस पर भी शासन गंभीरता नहीं दिखा रहा है।

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