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पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एन पी प्रजापति का कटा टिकट,शेखर चौधरी को टिकट

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गोटेगांव । विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। भाजपा के बाद कांग्रेस ने भी रविवार को गोटेगांव विधानसभा के लिए अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है। गोटेगांव विधानसभा में अब तक का चुनावी इतिहास देखें तो मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होता रहा है। गोटेगांव से विधायक एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष रहे एन पी प्रजापति का टिकट काट दिया गया है। उनकी जगह पर शेखर चौधरी (पूर्व विधायक) को टिकट देकर भाजपा प्रत्याशी महेंद्र नागेश के सामने खड़ा किया है। शेखर पिछले 10 वर्षों से गोटेगांव में सक्रिय रहे है। जबलपुर निवासी शेखर चौधरी को कांग्रेस ने एक बार फिर भरोसा जाता कर गोटेगांव विधानसभा प्रत्याशी बनाया हैं। लिहाजा चौधरी लगातार गांव-गांव घूमकर अपने मतदातों को गोलबंद करने में लगे हुए है। शेखर चौधरी पिछली बार गोटेगांव की टिकट से वंचित रह गए थे। शेखर चौधरी पूर्व में गोटेगांव विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस की सीट पर विधानसभा का चुनाव जीते थे। वे 1998 से 2003 तक गोटेगांव विधानसभा सीट पर विधायक भी रहे चुके। – 2018 में भाजपा-कांग्रेस में रहा नजदीकी मुकाबला 2018 के चुनाव में दोनों पार्टियों के बीच नजदीकी मुकाबला हुआ था। जिसमें कांग्रेस से एन पी प्रजापति को 79,289 वोट पड़े थें और भाजपा के कैलाश जाटव को 66,706 वोट मिल पाने की वजह से गोटेगांव विधानसभा सीट कांग्रेस के खाते में पहुंची थी। पिछले बार की तरह ही इस बार भी मुकाबला नजदीक मन जा रहा है। इसी लिए दोनों दल चुनावी चौसर पर सधी चाल चल रहे हैं। -विरोध के स्‍वर थामने होंगे कांग्रेस की सूची घोषित होने के बाद अगर विरोध के स्वर उठते हैं तो कम समय में उसे थामकर पार्टी के अनुकूल करना भी बड़ी चुनौती होगी। पिछले चुनाव के इतिहास पर नजर डालें तो भाजपा को अंदरुनी विरोध का सामना कर भाजपा को हार का मुँह देखना पड़ा था। अगर इस बार ऐसा ही कांग्रेस में होता है तो यह सीट भाजपा के पाले में जा सकती है। – इनका भी चुनाव लड़ना माना जा रहा लगभग तय भाजपा-कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशियों के साथ आम आदमी पार्टी से गोरीशंकर सिलावट, संजय मेहरा, बहुजन समाज पार्टी से अनिल मेहरा, वास्तविक भारत पार्टी से ज्योति चौधरी सहित कई निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतरने की फिराक में है। विधानसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस के साथ ही निर्दलीय प्रत्याशी भी अपनी किस्मत आजमाने की कगार में है। यहां पर दो पार्टी मुख्य हैं जिसमें भाजपा-कांग्रेस के बीच मुकाबला होता है सूत्रों की मानें तो भाजपा एवं कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता में असंतुष्टों की खासी संख्या होने के कारण राजनीतिक दलों के नेताओं और पदाधिकारियों ने समन्वय बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

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