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चुनावी हुंकार भरने के लिए तैयार गोगापा, सपा , बसपा, आप और जयस

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मध्य प्रदेश में राजनीति अब तक भले ही दो दलों के आसपास बनी रही है, लेकिन तीसरे दल के रूप में कई छोटी पार्टियां भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही हैं। यह बात अलग है कि इनमें हर चुनाव में तीसरी ताकत बनने का दावा अलग-अलग दलों का रहा है। अब प्रदेश में एक साल बाद फिर विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसकी वजह से छोटी पार्टियां एक बार फिर से चर्चा में आना शुरू हो गई हैं। इन छोटी पार्टियों ने दोनों प्रमुख दल भाजपा व कांग्रेस को अभी से अपने बारे में चिंतन मनन करने पर मजबूर कर दिया है। यह वे दल हैं जो खुद जीतें या न  जीतें लेकिन बड़े दलों के प्रत्याशियों के जरुर चुनावी समीकरण बिगाड़ देते हैं।
फिलहाल तो प्रदेश में गोगापा, सपा और बसपा जैसे ही दल चुनावी मैदान में उतरते रहे हैं, लेकिन अब तो आप और जयस जैसे दल भी चुनावी हुंकार भरने के लिए तैयार हैं। इसकी वजह से अब 2023 की तैयारी में जुटी भाजपा और कांग्रेस के सामने छोटे दलों से होने वाले वोटों के नुकसान को रोकने की बड़ी चुनौती बनी हुई है। यह चुनौती इस बार और अहम है इसकी वजह है इस बार कांग्रेस व भाजपा के बीच बेहद  कड़ा और रोचक मुकाबला संभावित है। इनमें से कई सीटों पर तो अभी से दोनों दलों में कांटे की टक्कर होना नजर आ रही है।  ऐसे में तीसरे दल यानि की छोटी पार्टी के प्रत्याशी पूरी तरह से समीकरण बिगाड़ सकते हैं।  गौरतलब है कि प्रदेश में भाजपा अपना वोट शेयर 51 प्रतिशत तक लाने के प्रयासों में लगी हुई है, जिसमें भी यह दल बहुत बड़ा रोड़ा बन सकते हैं। बीते चार विधानसभा चुनावों पर नजर डालने से पता चलता है कि अन्य दलों ने 18 से लेकर साढ़े आठ प्रतिशत तक मत हासिल किए हैं। यह बात अलग है कि इनमें सर्वाधिक मत सपा व बसपा के पास ही बने रहे हैं। बीच में एक बार जरूर गोगापा ने जरुर अपनी कुछ ताकत दिखाई थी।  
बसपा को कई जगह मिले थे निर्णायक मत
अगर बसपा के चुनावी प्रदर्शन को देख जाए तो ग्वालियर ग्रामीण, सतना, सबलगढ़, सुमावली, मऊगंज, सिमरिया, ग्वालियर एवं रीवा जोन में बसपा प्रत्याशियों को बेहद निर्णायक वोट मिले।  बसपा को 2013 की तुलना में भले ही करीब सवा दो लाख यानि की डेढ़ फीसदी कम वोट मिले, लेकिन उसे मिलने वाले मतों की संख्या करीब 19 लाख 11 हजार 642 रही जो पांच फीसदी मत होते हैं। इसी तरह से बिजावर में सपा प्रत्याशी राजेश शुक्ला  जीतने में सफल रहे। सपा ने इसके अलावा निवाड़ी, पृथ्वीपुर, बालाघाट और गुढ़ सीट पर दूसरा स्थान प्राप्त किया। इसमें परसवाड़ा में कंकर मुंजारे और बालाघाट में अनुभा मुंजारे को े क्रमश: 47 हजार 787 और 45 हजार 822 वोट मिले थे।  इसी तरह से तीन सीटों पर सपा प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे थे। बीते चुनाव में सपा को कुल 4 लाख 96 हजार 25 मत मिले थे ,जो कुल मतों का 1.3 प्रतिशत था।
इस तरह का रहा प्रदर्शन  
चंबल, बुंदेलखंड में बसपा-सपा, विंध्य में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी-बसपा और महाकौशल में सिर्फ गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का सबसे ज्यादा प्रभाव रहा था। सपा, बसपा और गोंगपा को करीब 62 सीटों पर 15 हजार से ज्यादा वोट मिले हैं, जबकि करीब दो दर्जन सीटों पर तो 30 से 47 हजार से ज्यादा तक वोट मिले हैं। एक दर्जन सीटों पर इन पार्टियों के प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे या फिर जीत-हार में अंतर काफी कम रहा था।  दो दर्जन विधानसभा सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों की हार का कारण निर्दलीय प्रत्याशी हैं। वे चार स्थानों पर जीते भी। 28 सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशियों को 13 हजार से 48 हजार वोट मिले हैं। जबकि इन विधानसभा क्षेत्रों में जीत हार का अंतर दो हजार से दस हजार तक ही रहा है। सबसे ज्यादा 49 हजार वोट बड़वानी में राजन मंडलोई को मिले हैं।
कहां किस का प्रभाव  
महाकौशल और विंध्य क्षेत्र में सबसे ज्यादा तीसरी पार्टी के रूप में सबसे ज्यादा वोट गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) को मिले थे। इन क्षेत्रों के करीब 18 विधानसभा सीटों पर जीजीपी भाजपा-कांग्रेस के बाद वोट हासिल कर दूसरे और तीसरे स्थान पर रही थी। यहां भी जीजीपी को अमरवाड़ा में 61 हजार वोट मिले, जबकि ब्यौहारी में इस पार्टी को 45 हजार वोट मिले थे। इसी तरह से गुढ़, मैहर, शहपुरा, बिछिया विधानसभा में जीजीपी प्रत्याशियों को तीस- तीस हजार से अधिक वोट मिलें।  इसी तरह से बसपा जौरा, ग्वालियर ग्रामीण, भिंड और देवतालाब विस क्षेत्रों में बसपा दूसरे स्थान पर तो करेरा में तीसरे स्थान पर थी। इन क्षेत्रों में बीएसपी को 40 हजार से ज्यादा वोट मिले हैं। चंबल और विंध्य में बीएसपी को सबसे ज्यादा वोट मिले हैं। जबकि 37 विधानसभा क्षेत्रों में बीएसपी को 13 हजार से अधिक वोट मिले हैं। वहीं प्रदेश की 100 सीटों पर कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों में सीधे फाइट थी। इन सीटों पर बसपा, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और सपा सहित अन्य दलों को पांच सौ से लेकर पांच हजार तक वोट मिले हैं।
बीते चुनाव में बराबरी पर थी कांग्रेस व भाजपा
बीते चुनाव में भाजपा व कांग्रेस के बीच बेहद रोचक मुकाबला सामने आया था। इस चुनाव में जहां भाजपा को 41 फीसदी मत मिले थे , तो वहीं कांग्रेस को भी 40.9 प्रतिशत मत मिले थे। अन्य दलों के खातों में 18 प्रतिशत मतों के साथ सात सीटें आयी थीं। इसके पहले 2013 में अन्य दलों को आठ प्रतिशत वोट ही मिले थे , लेकिन तब उनके खाते में चार सीटें आयी थीं। इसी तरह से 2003 में 13 प्रतिशत वोट लेकर अन्य दलों ने 13 सीटें जीती थीं , जबकि 2008 के चुनाव में 17 प्रतिशत वोट पाकर यह दल 13 सीट जीतने में सफल रहे थे। माना जा रहा है कि इस बार दो अन्य दलों के मैदान में आने से तीसरे दलों के खातों में न केवल मतों का प्रतिशत बढ़ेगा , बल्कि सीटों की संख्या में भी इजाफा हो सकता है।
 जारी है आंकलन
बीते चुनाव परिणामों को देखते हुए अब भाजपा व कांग्रेस इस आंकलन में लगी है कि किस तीसरे दल की वजह से उसे कितना नुकसान हो सकता है और इस नुकसान की भरपाई कैसे की जा सकती है। इस बार चुनाव में आप के साथ ही जयस की भी चुनौति सामने रहने वाली है। इन दोनों ही संगठनों ने प्रदेश में चुनाव लड़ने की तैयारियां जोरशोर से शुरू कर दी हैं। आप का प्रभाव जहां सिंगरौली जिले के साथ ही विंध्य अंचल में दिखने लगा है तो जयस का मालवा निमाड़ में है। भाजपा का दावा है कि ये सारे दल कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएंगे, जबकि कांग्रेस नेताओं का दावा है कि उन्हें इससे कोई नुकसान संभव नहीं है। इससे यह तो तय है कि यह दल उन करीब दो दर्जन से अधिक सीटों पर मुश्किल बनेगें जहां पर हारजीत का अंतर महज दो चार हजार मतों का ही रहता है।  
बीता चुनाव रहा था चौंकाने वाला
प्रदेश में विधानसभा के चुनावी नतीजों से भाजपा-कांग्रेस के साथ बसपा-सपा भी भौंचक रह गए थे। कई सीटों पर बसपा, गोंगपा और सपा प्रत्याशियों को इतने मत मिले थे कि वह हारजीत के अंतर से अधिक थे। इस चुनाव में सपा के पांच प्रत्याशी तो दूसरे स्थान पर रहे थे, जबकि बसपा ने करीब आधा दर्जन सीटों पर दूसरे दलों के सियासी समीकरण ही बिगाड़ कर रख दिए थे। इसी तरह से कोई सीट न जीतने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रत्याशियों ने भी पौने सात लाख मत प्राप्त किए थे। विधानसभा चुनाव में भले ही बसपा, सपा, गोंगपा ने कम मत हासिल किए हों पर कुछ सीटों पर कांग्रेस और भाजपा को उन्होंने बड़ा नुकसान पहुंचाया था। इसके साथ ही दस साल बाद प्रदेश में सपा अपना खाता खोलने में सफल रही थी, जबकि चुनावी अंतर तो इतना कम रहा कि उससे ज्यादा वोट तो सपा-बसपा और गोंगपा प्रत्याशियों को मिल गए थे।

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