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सीलिंग एक्ट में शासकीय घोषित अपनी ही 1200 एकड़ जमीनों पर कब्जा नहीं ले पायी सरकार

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इंदौर।
वर्ष2000 में राज्य शासन द्वारा जारी आदेश के तहत अतिशेष घोषित की गई शासकीय भूमियों पर 22 साल बाद भी जिला प्रशासन कब्जा नहीं ले पा रहा है। अपर कलेक्टर इंदौर द्वारा इंदौर में ही सिर्फ १२०० एकड़ भूमि शासकीय घोषित की गई थी और इसपर विधिवत कब्जा भी प्राप्त कर लिया था। कब्जा प्राप्त लगभग यह भूमि आवासीय, व्यवसायिक, औद्योगिक और कृषि उपयोग की है।

इनमे से कुछ पर अवैध कॉलोनी कट गई है। एक ओर जहां सरकार अपना राजस्व दुरुस्त करने के लिए शासकीय जमीनें बेच रहा है तो दूसरी ओर अरबों रुपए की यह जमीन यदि सर्वे करवा कर बेची जाए तो इससे मध्यप्रदेश सरकार को इंदौर से ही इतना पैसा मिल सकता है कि वह लिए गए कर्ज को आसानी से चुका सकता है।

इंदौर के अलावा भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर और उज्जैन में भी हजारों एकड़ जमीन शासकीय घोषित की गई थी। वर्ष2000 से 2003 के बीच संभागायुक्त की अध्यक्षता में समितियों की बैठक भी हुई थी जिसमे अधिकांश भूमि की प्रीमियम और जानकारी एकत्र की गई थी। इसी प्रकार की एक भूमि कनाड़िया रोड़ पर गार्डन के रुप में उपयोग आ रही थी। जिसे अतिक्रमण मानकर जिला प्रशासन ने खाली करवा कर कब्जा लिया था।
एक ओर जहां जिला प्रशासन नियम कायदों को लेकर पूरी ताकत से शहर में ऐसी भूमि खाली करवा रहा है जिन पर कब्जे किए गए हैं। दूसरी ओर शहरी सीलिंग एक्ट जैसे कानून के जरिए शासकीय घोषित की गई भूमि की स्थिति २२ साल बाद भी कोई अधिकारी जानने को तैयार नहीं है। प्रदेश के प्रमुख शहरों इंदौर, भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर और उज्जैन में नगर भूमि सीमा अधिनियम १९७६ के तहत वर्ष 2000 तक हजारों एकड़ भूमि शासकीय घोषित की गई।

इन भूमि पर कब्जा भी शासन ने प्राप्त कर लिया था। वही इस प्रकार की भूमि पर २००२-०३ तक सीलिंग से अतिशेष भूमियों पर निर्मित अवैध कॉलोनियों के भूखंडों का प्रीमियम और भूफाटक भी निर्धारित कर दिया गया था।

लेकिन इसके बाद पूरा सिस्टम ठंडा ुपड़ गया। आज भी शासकीय घोषित की गई भूमियों पर भूमि स्वामी के ही कब्जे बने हुए हैं। प्रशासन ने इतना समय और दे दिया कि भूमि स्वामी कोर्ट की शरण में चले जाए। इंदौर में 1200 एकड़ भूमि शासकीय घोषित की गई थी।

इसके लिए अपर कलेक्टर इंदौर द्वारा प्रत्र क्रमांक 864 शहरी सीलिंग 2001 दिनांक ३१-१२-२००१ को आयुक्त इंदौर संभाग इंदौर को भी सूचित किया गया था। कुल 237 प्रकरणों में कुल 1196 एकड़ भूमि पर कब्जा प्राप्त किया गया था और इसके अतिरिक्त वर्ष 2000 तक 58 एकड़ भूमि पर व्यवस्थापन भी कर दिया गया था।इनमे से अभी भी कुछ ही प्रकरण केवल अदालतों में उलझे हुए है शेष भूमि पर अब कब्जे होना शुरु हो गये हैं। आश्चर्य की बात यह है कि इन भूमि पर अतिक्रमण बगैर कोई मूल्य चुकाए किया जा रहा है। इस मामले में प्रत्येक शहर में संभागायुक्त की अध्यक्षता में एक समिति भी गठित की गई थी जिसमे कलेक्टर, नगर निगम आयुक्त भूमि की स्थिति के अनुसार बाजार दर भी तय करेंगे।
अरबों रुपए का राजस्व मिल सकता है
एक ओर जहां सरकार वित्तिय स्थिति से निपटने के लिए हर महीने कर्ज उठाकर अपना कामकाज चला रही है। दूसरी ओर इंदौर में ही खाली पड़ी ५०० एकड़ जमीन से ही इतने रुपए सरकार को मिल सकते हैं कि उसे अगले कई वर्ष तक कर्ज नहीं लेना होगा।
नगर निगम के भी शहर में प्लाट खाली
इंदौर शहर में नगर निगम के भी 500 से अधिक ऐसे प्लाट खाली पड़े हुए हैं जो बेचे जा सकते हैं। रिकार्ड में भी यह भूखंड नगर निगम के ही बताये जा रहे हैं। पिछले समय इन खाली प्लाटों को लेकर एक सर्वे भी वार्ड स्तर पर किया गया था। पर आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई।

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