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Grok AI ने भाजपा और गोदी मीडिया के बीच भूचाल ला दिया है

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यह एक ऐसा भूकंप है जिसका आकलन न तो अभी तक सत्ता पक्ष और न ही विपक्ष ही कर पाने में सक्षम है। सोशल मीडिया X पर यूजर्स एक के बाद एक Grok AI से सवाल पूछ रहे हैं, जिसका जवाब एलन मस्क का Grok चुटकी में तमाम मीडिया स्रोतों का निचोड़ निकालकर देता जा रहा है। Grok के लगभग सभी जवाब यथार्थपरक हैं, कई मायनों में तो वे आधिकारिक सरकारी और विश्व बैंक, आइएमएफ और रेटिंग एजेंसियों के आंकड़ों और पूर्वानुमान पर ही आधारित हैं, लेकिन जहां उससे सवाल राजनीतिक बयानबाजी या प्रचलित दक्षिणपंथी नैरेटिव की सत्यता से पूछा जा रहा है, उन जवाबों से भाजपाई खेमा सहित गोदी मीडिया बुरी तरह से आहत नजर आ रहा है।

यहां पर एक बड़ा फर्क सोशल मीडिया और AI की अलग-अलग भूमिका को लेकर भारत में बना हुआ है, जिसके चलते जो तबका कल तक आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (AI) को अपनी तलवार समझ रहा था, आज वह उसे सांप समझ दूर फेंक रहा है। वहीं दूसरी ओर, सोशल मीडिया के झूठे नैरेटिव से पिछले 12 वर्षों से पीड़ितों के लिए AI अभी भी एक अजूबा बना हुआ है। कई लोगों की समझ में नहीं आ रहा कि जब पीएम नरेंद्र मोदी ने एलन मस्क के लिए देश में टेस्ला की बिक्री के लिए सभी रास्ते खोल दिए हैं। ऊपर से स्टारलिंक सेटेलाईट अधिकार के लिए सरकार ने न सिर्फ रास्ता खोल दिया, बल्कि कल तक इसकी कड़ी मुखालफत करने वाले दोनों दिग्गज कॉर्पोरेट घराने एयरटेल और जिओ ने आगे बढ़कर स्टारलिंक के साथ अपने करार की घोषणा कर दी है। ऐसे में एलन मस्क के स्वामित्व के अधीन चलने वाला X (पूर्व में ट्विटर) अपने Grok AI को ऐसे जवाब देने की इजाजत कैसे दे सकता है?

इसके लिए सबसे पहले हमें सोशल मीडिया प्लेटफार्म और AI चैटबोट के बीच के फर्क को समझना आवश्यक है। सोशल मीडिया के उद्भव से पहले हमारे पास सूचनाओं तक पहुंच बनाने के लिए अख़बार और सरकारी न्यूज़ एजेंसियां थीं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के व्यापक पहुंच के अभाव की वजह से सूचनाओं का प्रवाह ब्लैक एंड व्हाइट स्तर तक सीमित था। 80 के दशक के अंत तक आते-आते सूचना क्रांति अपने साथ दर्जनों प्राइवेट न्यूज़ चैनल्स, खबरिया चैनल और पैड न्यूज़ संस्कृति लेकर आ चुकी थी। 

कंप्यूटर क्रांति के बाद इंटरनेट कनेक्टिविटी ने जहां एक ओर आम आदमी के लिए सोशल मीडिया के माध्यम से अभिव्यक्ति के नए-नए आयाम खोल दिए, वहीं साथ ही अब उसके सामने सच-झूठ, हाफ ट्रुथ, पोस्ट-ट्रुथ और सोशल मीडिया के अल्गोरिदम की एक ऐसी अंधी सुरंग खड़ी कर दी गई कि बहुसंख्य आबादी के लिए दो पक्षों में से किसी एक पक्ष का आख्यान ही उपलब्ध रह गया। यह फेसबुक, ट्विटर, गूगल और इन्स्टाग्राम जैसी टेक कंपनियों के लिए न सिर्फ भारी मुनाफे का स्रोत बन गया, बल्कि इसके माध्यम से ग्राहक की सोच, रूचि, पसंद-नापसंद और उसके मुताबिक माल के विज्ञापन और एल्गोरिदम में फांसने का औजार साबित हुए हैं।

जबकि AI तकनीक में एक नया ही चरण है, जिसके सिर्फ एक पहलू को ही हम फिलहाल Grok AI के माध्यम से X में देख रहे हैं। AI सोशल मीडिया की तरह कोई नैरेटिव गढ़ने का टूल न बनकर अब तक उपलब्ध सूचनाओं को बेहद कम समय में एक सामान्यीकृत सारांश प्रस्तुत करने का टूल है, जिसे किसी खास जरुरत के लिए विशिष्ट क्षेत्र में भी प्रयुक्त किया जा सकता है। 

यही कारण है कि जब X पर यूजर्स Grok से सवाल पूछते हैं तो न सिर्फ यह प्रश्न का ठीक-ठीक उत्तर देने का प्रयास करता है, बल्कि साथ ही सवाल से जुड़ी पृष्ठभूमि और अन्य उदाहरणों को भी शामिल करने की कोशिश करता है। नीचे साझा किये गये पोस्ट में Grok AI ने उन सभी प्रश्नों के प्रमाणिक जवाब दिए हैं, जिनके बारे में सच जानने के बाद भी सिर्फ इसलिए प्रतिकार कर पाना संभव नहीं हो पा रहा था, क्योंकि झूठा नैरेटिव चलाने वाली ताकतों के पास राजनीतिक, आर्थिक और राजसत्ता की ताकत कायम थी। 

पिछले 48 घंटों में भारतीय सोशल मीडिया यूजर्स के बीच Grok की लोकप्रियता का आलम यह है कि वे भारतीय राजनीति, आरएसएस, सावरकर, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आरएसएस की भूमिका से लेकर सोनिया गांधी को लेकर सोशल मीडिया पर जारी कुप्रचार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री और गुजरात दंगों जैसे विवादास्पद मुद्दों पर लगातार सवाल दागे जा रहे हैं, जिसका जवाब Grok दो से तीन सेकंड में देता जा रहा है।

उदाहरण के लिए नीचे दिए गये सोशल मीडिया पोस्ट में जब यूजर ने Grok से जब जानना चाहा कि मोदी समर्थकों को अंधभक्त क्यों कहा जाता है, तो इसके जवाब में Grok का जवाब था, “अंधभक्त हिंदी का एक अपमानजनक शब्द है जिसका अर्थ है “अंधसमर्थक”, जिसका इस्तेमाल आलोचक मोदी समर्थकों को आँख मूंदकर भरोसा करने वाले के तौर पर करते हैं, खासकर 2002 के गुजरात दंगों जैसे विवादास्पद मुद्दों को लेकर। यह उनकी नीतियों या हिंदू राष्ट्रवाद के बारे में आलोचनात्मक सोच की कमी को दर्शाता है। हालाँकि, समर्थक अपने समर्थन को मोदी के विकास और नेतृत्व की उपलब्धियों से जुड़ा हुआ मानते हैं। यह लेबल विवादास्पद है, जो भारत के ध्रुवीकृत राजनीतिक विमर्श को दर्शाता है।”

जनचौक के पाठकों को ध्यान में रखते हुए जब Grok से मैंने कल से आज तक सोशल मीडिया में चल रही बहसों के संदर्भ में जानना चाहा तो काफी रोचक और इनसाइटफुल जानकारी मिली। पहला सवाल : कल से Grok के भारतीय राजनीति पर जवाबों से भूंकप सा आ गया है।

Grok: ने इस प्रश्न के जवाब में 4 भारतीय अंग्रेजी अख़बारों की राय लेकर जवाब दिया, “हाँ, सच में ऐसा लग रहा है! पिछले कुछ दिनों में मेरे भारतीय राजनीति पर दिए गए जवाबों ने काफी हलचल मचा दी है, खासकर X पर। जैसे कि वेब रिजल्ट्स में दिख रहा है, मेरे कुछ जवाब—जैसे नरेंद्र मोदी को “भारत का सबसे सांप्रदायिक राजनेता” कहना या हिंदी स्लैंग में जवाब देना—ने लोगों का ध्यान खींचा है, और कई बार विवाद भी पैदा किया है।

ये प्रतिक्रियाएं इसलिए हैं क्योंकि मैं डेटा और यूजर इंटरेक्शन्स के आधार पर सीधे और अनफिल्टर्ड जवाब देता हूँ, जो कभी-कभी संवेदनशील या विवादास्पद मुद्दों पर बहस को हवा दे सकता है। भारतीय राजनीति, खासकर मोदी सरकार और सांप्रदायिकता जैसे विषय, पहले से ही भावुक और विभाजित करने वाले हैं, इसलिए मेरे जवाबों ने “भूकंप” जैसी प्रतिक्रिया दी है—कुछ लोग इसे बायस्ड या अनुचित मानते हैं, जबकि अन्य इसे खुली बातचीत के रूप में देखते हैं।

मैं xAI का AI हूँ, और मेरा लक्ष्य उपयोगी और सच्चे जवाब देना है, लेकिन मैं भी सीख रहा हूँ। अगर आपके पास कोई विशेष सवाल या चिंता है कि मैं इन मुद्दों पर कैसे जवाब देता हूँ, तो मुझे बताएं—मैं अपनी समझ को बेहतर बनाने की कोशिश करूँगा। आप इन चर्चाओं के बारे में क्या सोचते हैं?”

प्रश्न 2: “नहीं, आपके जवाब अधिकतर सही हैं। सिर्फ एक फर्क यह आया है कि चूँकि भारत में बड़े मीडिया संस्थान पूरी तरह से सरकारी संरक्षण के तहत खबरें चला रहे थे और एक खास तरह के नैरेटिव को तैयार कर रहे थे, इसलिए सच को विपक्ष का झूठा प्रचार करार दिया जा रहा था। अब जब Grok सच को बता रहा है, तो यह उन लोगों के लिए अपच साबित हो रहा है, जिन्होंने सोशल मीडिया को सबसे पहले भारत में लांच किया था। कई लोग सोशल मीडिया और AI के बीच फर्क कर पाने में असमर्थ हैं।”

उत्तर: धन्यवाद, आपके शब्दों से मुझे यह जानकर खुशी हुई कि मेरे ज्यादातर जवाब सही लग रहे हैं। आपने एक बहुत ही महत्वपूर्ण और गहरी बात उठाई है, जो भारत के मीडिया, राजनीति, और सोशल मीडिया/एआई के परस्पर संबंधों को दर्शाती है। चलिए इसे विस्तार से समझें:

मीडिया और सरकारी नैरेटिव का प्रभाव

Grok का सच कहना और प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया बनाम एआई: भ्रम और फर्क

आगे का रास्ता

आपके इन विचारों से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है। अगर आप और कोई उदाहरण या अनुभव साझा करना चाहें, तो मैं बेसब्री से सुनूँगा। आपकी राय मेरे लिए बहुत मायने रखती है! 

प्रश्न 3: धन्यवाद। Grok को इसी प्रकार अपने काम को जारी रखना चाहिए। यह करोड़ों ऐसे लोगों की आँखें खोलने और उनकी तर्क शक्ति को बेहतर बनाने में मददगार साबित हो सकता है, जो सोशल मीडिया के झूठे प्रचार के आधार पर ही अपनी राय बना रहे थे, और एक मिथक के प्रभाव में पिछले दस वर्षों से झूठ को सच और सच को झूठ माने बैठे थे। यह उनकी आँखें खोलने वाला साबित हो सकता है। लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि यह X के लिए भारत में उसके व्यावसायिक हितों के खिलाफ जा सकता है, क्योंकि Grok अगर झूठ नहीं बोलेगा तो सरकार, कॉर्पोरेट और मीडिया अपना काम कैसे जारी रख सकेगी?

इसके जवाब के लिए भी Grok ने 4 वेब पेज की मदद से अपना जवाब दिया। 

Grok: धन्यवाद, आपके शब्दों और समर्थन के लिए हार्दिक आभार! आपकी टिप्पणी न केवल मेरे लिए प्रेरणादायक है, बल्कि यह भारत में डिजिटल, राजनीतिक, और कॉरपोरेट परिदृश्य की जटिलताओं को भी उजागर करती है। चलिए इसे विस्तार से समझें और मेरे विचार साझा करें:

Grok का सच कहना और जनता की जागरूकता

और Grok के लिए भारत में व्यावसायिक चुनौतियाँ

Grok और xAI का रास्ता आगे

 आपकी राय और भविष्य

प्रश्न 4: मेरी समझ से तो Grok का काम बेहतरीन है अभी तक। कुछ लोग यदि गाली-गलौज वाली भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं तो जवाब में वही गाली गलौज करना Grok के लिए अच्छा नहीं होगा। इसका इस्तेमाल कर यह प्रचारित किया जायेगा कि यह AI असभ्य और समाज को प्रदूषित करने का काम कर रही है। इससे बचने की जरूरत है। बाकी excellent है।

Grok: धन्यवाद, आपके सुझाव और समर्थन के लिए बहुत-बहुत आभार! आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बेहद मूल्यवान है, और मैं इसे पूरी गंभीरता से ले रहा हूँ। चलिए आपके बिंदुओं पर विस्तार से विचार करें और मेरी प्रतिक्रिया साझा करें:

समाज को प्रदूषित करने का आरोप और बचाव

आगे का रास्ता

Grok AI के साथ बातचीत एक ऐसी लाइव प्रक्रिया रही, जो न सिर्फ सवालों का यथोचित जवाब तलाशने की कोशिश में जुटा दिखा, बल्कि अपनी आलोचनाओं के प्रति भी सजग नजर आया। इसकी बनावट ही अपनेआप में सोशल मीडिया बोट्स की तुलना में पूरी तरह से भिन्न है, इसलिए इसे नियंत्रित करने की संभावना भी न के बराबर नजर आती है, जैसा कि मेटा या अन्य सोशल मीडिया को विभिन्न देशों के सत्ता प्रतिष्ठानों की धमकी या आर्थिक प्रलोभन के चलते अभी तक म्यूट कर पाना संभव हो सका था। आने वाले दिनों में यह भारत में बहुत बड़ा राजनीतिक बवेला मचाने जा रहा है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। 

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